गृह मंत्रालय ने पूर्व आईएएस अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर के एनजीओ 'अमन बिरादरी' के खिलाफ सीबीआई जाँच की सिफारिश की है। एक रिपोर्ट के अनुसार विदेशी चंदा विनियमन अधिनियम यानी एफसीआरए के कथित उल्लंघन के लिए यह जाँच की सिफारिश की गई है।
प्रधानमंत्री मोदी के मुखर आलोचक रहे हर्ष मंदर पहले मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय की जांच के दायरे में थे। कई मामलों में मुखर रहने के लिए भी वह सुर्खियों में रहे हैं। मोदी सरकार के सीएए के ख़िलाफ़ बोलने पर उनपर नफ़रत फैलाने का आरोप लगा था। दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हिंसा की चार्जशीट में हर्ष मंदर का नाम भी जोड़ा दिया था। यह भी आरोप लगा था कि उन्होंने दिल्ली हिंसा की साज़िश रची थी।
वह यूपीए शासन के दौरान भारत सरकार की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य रहे थे। हर्ष मंदर ने साल 2002 के गुजरात दंगों से आहत होकर नौकरी छोड़ दी थी और बाद में वह सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम करने लगे।
दरअसल, पिछले दो दशक में हर्ष मंदर की छवि अल्पसंख्यक समर्थक की बन गई है। ख़ासकर गुजरात जनसंहार के समय से बहुसंख्यकवादी हिंसा के शिकार मुसलमानों के लिए और उनके साथ उन्होंने जो काम किया है, उसके कारण उनके ख़िलाफ़ घृणा का प्रचार किया गया है।
हर्ष मंदर ने अमन बिरादरी की स्थापना की, जो 'एक धर्मनिरपेक्ष, शांतिपूर्ण, न्यायपूर्ण और मानवीय दुनिया के लिए लोगों का अभियान' है। इसका उद्देश्य विभिन्न पृष्ठभूमियों और धर्मों से जुड़े अलग-अलग लोगों के बीच सहिष्णुता, बंधुत्व, सम्मान और शांति के आपसी संबंध को मज़बूत करना है।
इससे पहले हर्ष मंदर पर सितंबर 2021 में कार्रवाई की गई थी। ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मंदर से जुड़े परिसरों की तलाशी ली थी। 2021 की फ़रवरी में ही राष्ट्रीय बाल संरक्षण अधिकार आयोग यानी एनसीपीसीआर के निर्देशों के तहत उम्मीद अमन घर और खुशी रेनबॉ होम के ख़िलाफ़ महरौली थाने में केस दर्ज कराया गया था। आरोप लगाया गया था कि दोनों एनजीओ में मौजूद अनाथ बच्चों को सीएए और एनआरसी विरोधी आंदोलनों में इस्तेमाल किया गया था। इसी से जुड़े एक मामले में वित्तीय अनियमितताओं का भी आरोप लगाया गया था।
बता दें कि 2021 में हर्ष मंदर के ख़िलाफ़ ईडी की छापेमारी का शिक्षाविदों, पत्रकारों, फ़िल्म निर्माताओं, कार्यकर्ताओं और वकीलों सहित 600 शख्सियतों ने विरोध किया था। हर्ष मंदर का समर्थन करते हुए उन्होंने छापे की कार्रवाई को आलोचकों को धमकाने का प्रयास क़रार दिया था। उन्होंने यह भी कहा था कि यह लोगों के अधिकारों को रौंदने के लिए सरकारी संस्थाओं का दुरुपयोग है।
संयुक्त बयान जारी करने वाले हस्ताक्षरकर्ताओं में इतिहासकार राजमोहन गांधी, वकील प्रशांत भूषण और इंदिरा जयसिंह, कार्यकर्ता मेधा पाटकर और अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज जैसी शख्सियतें थीं। उन्होंने बयान में कहा था कि हर्ष मंदर और उनके नेतृत्व वाली संस्था सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज पिछले साल भर से 'कई सरकारी एजेंसियों द्वारा निरंतर उत्पीड़न के शिकार हैं'।
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