बीजेपी यह बात मानने को तैयार नहीं है कि कुंभ और चुनाव के आयोजनों की वजह से कोरोना के हालात बिगड़े हैं और बिगड़ रहे हैं। मानना तो दूर, बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय इस मान्यता के विरुद्ध आँकड़े रख रहे हैं।
आंबेडकर जयंती के मौके पर उन्होंने इन्हीं आँकड़ों के ज़रिए उन लोगों पर सवाल उठाए थे जो कोरोना से पैदा हुए बुरे हालात के लिए कुंभ और चुनाव को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं।
महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक जैसे राज्यों के भयावह कोराना संक्रमण के आँकड़ों से अमित मालवीय ने उत्तराखण्ड व पाँच चुनाव वाले राज्यों की तुलना की और अपनी बात रखी।
कुंभ स्नान, रैली से नहीं भागेगा कोरोना
आँकड़ों के ज़रिए बीजेपी जो भ्रम फैला रही है उसका जवाब सिर्फ एक सवाल है- क्या कुंभ स्नान और चुनावी रैलियों-रोड शो से कोरोना का संक्रमण घट जाएगा? या फिर क्या इन आयोजनों से कोरोना संक्रमण घट गये हैं? सच्चाई हम आगे बताएंगे कि कैसे इन आयोजनों ने उत्तराखण्ड और चुनाव संपन्न करा रहे पांच राज्यों में कोरोना का संक्रमण बढ़ गया है।
निश्चित रूप से चुनावी रैली और कुंभ स्नान से कोरोना का संक्रमण नहीं घटेगा। बल्कि, यह संक्रमण को तेज़ करेगा और महामारी को जानलेवा बनाएगा। यह ध्यान दिलाने वाली बात है कि हिन्दुस्तान में जिस दिन लॉकडाउन की घोषणा हो रही थी उस दिन कोरोना संक्रमण के सिर्फ 571 मामले थे।
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किस राज्य में ज्यादा, किस राज्य में कम कोई आधार नहीं था लॉकडाउन का। आज कुंभ का आयोजन कर रहा उत्तराखण्ड भी लॉकडाउन में शामिल था और वे प्रदेश भी, जहाँ ‘कम संक्रमण’ के आँकड़ों के बीच चुनाव हो रहे हैं।
कुंभ के बाद उत्तराखण्ड में 660% बढ़ा संक्रमण
आँकड़े खुद सबूत बनकर पेश हो रहे हैं। उत्तराखंड में 15 दिन में 660 फ़ीसदी बढ़ गए कोरोना संक्रमण के आँकड़े। कुंभ शुरू होने से पहले 31 मार्च को 293 नये कोरोना के मरीज मिले थे।
महज 15 दिन बाद यह आँकड़ा 2,225 हो चुका है। ऐसा तब है जब किसी भी कोविड सेंटर पर 120 या 150 लोगों से ज्यादा के टेस्ट एक दिन में नहीं हो रहे हैं।
कुंभ स्थल पर टेस्टिंग करा लिया जाए तो वास्तविक आँकड़ों का पता चले। कुंभ में आए लोगों को टेस्ट नहीं होना या सही आँकड़ों का पता नहीं चलना देशभर में कोरोना की स्थिति पर बुरा प्रभाव डालेगा। ये बातें आणकड़ों में कभी नहीं आ पाएगी।
चुनाव वाले पांच राज्य : 49 दिन में हुए हालात खराब
आँकड़े बता रहे हैं कि 26 फरवरी को चुनाव की घोषणा के बाद के 49 दिनों में पश्चिम बंगाल में 3,120% संक्रमण बढ़ा है। केरल में सबसे धीमा संक्रमण भी 121 फीसदी की बढ़ोतरी लिए हुए है। चुनाव में रैलियां, रोड शो का असर ये आँकड़े बता रहे हैं। स्थिति और भी भयावह है लेकिन तस्वीर इसलिए सामने नहीं आ पा रही है क्योंकि टेस्टिंग की प्रक्रिया ही धीमी है।
कुंभ से लौटे लोगों की टेस्टिंग क्यों नहीं?
बीते वर्ष 2020 में मार्च के अंत में दिल्ली में हुए मरकज़ में लगी जमघट से कोरोना फैलने का वाकया दर्ज़ किया गया था। तब निजामुद्दीन मरकज़ से देशभर में लौटे लोगों को खोज-खोज कर और उनके संपर्क में आए लोगों की टेस्टिंग कराकर यह साबित कर दिखाया गया था कि मरकज के लोगों ने ही देशभर में कोरोना फैलाया। आज क्यों नहीं कुंभ आ रहे या लौट रहे लोगों के कोरोना टेस्ट कराए जा रहे हैं? उनके संपर्क में आए लोगों की तो चर्चा तक नहीं हो रही है!
13 अप्रैल 2020 को दिल्ली सरकार की हेल्थ बुलेटिन बता रही थी कि बीते 24 घंटों में 356 नये मामलों में 325 का संबंध निजामुद्दीन मरकज से है। कुल 1510 मामलों में 1071 मामले तबलीगी जमात से जुड़े हुए हैं।
क्या आज उत्तराखण्ड की सरकार इसी तरह का हेल्थ बुलेटिन जारी कर बता पाएगी कि प्रदेश में बीते 24 घंटे के दौरान 2220 मामले सामने आए हैं। इनमें से कुंभ में स्नान करने वाले मरीज कितने हैं?
तब सरकारी स्वास्थ्य बुलेटिनों में, टीवी चैनलों पर और अखबारों में राष्ट्रीय स्तर पर निजामुद्दीन मरकज से संबद्ध मरीजों की संख्या खुलकर बतायी जाती थी।
झूठे ढांढस बंधाने से नहीं भागेगा कोरोना
नरेंद्र मोदी हों या अमित मालवीय या फिर हर्षवर्द्धन सबने समय-समय पर देश को झूठा ढांढस बंधाया है और तथ्यों को ग़लत तरीके से रखकर सच छिपाने की कोशिश की है। 21 दिसंबर 2020 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने यूके कोविड स्ट्रेन को लेकर जतायी जा रही चिंता के बारे में कहा था, “काल्पनिक स्थिति और विवरणों को लेकर बेचैन होने की ज़रूरत नहीं है। मुझे नहीं लगता कि डरने वाली स्थिति है।”
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जिस डर को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री नकार रहे थे आज वह सच्चाई बनकर सामने खड़ी है। कोरोना वायरस का उत्परिवर्तित रूप आज डर और बेचैनी की बड़ी वजह बन चुका है- चाहे वह यूके कोविड स्ट्रेन हो या फिर साउथ अफ्रीकन या कैलीफोर्नियन या कोई अन्य विदेशी वायरस स्ट्रेन।
भारत नये वायरस की चपेट में है। कोरे आश्वासनों के बजाए अगर ज़मीनी स्तर पर काम किया जाता तो उसके नतीजे बेहतर होते। मेडिकल स्टाफ की नियुक्ति, डॉक्टरों की बहाली, अस्पतालों का निर्माण, बेड बढ़ाना, दवाओँ की उपलब्धता, वैक्सीन निर्यात होने से रोकना जैसे उपाय किन्हीं दावों से अधिक ज़रूरी थे।
मौत के आँकड़े क्यों हुए भयावह?
भारत में कोविड के कारण मौत की बढ़ती संख्या अब पौने दो लाख पार कर चुकी है। यह अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया महादेश में हुई मौत के योग से भी ज्यादा है। भारत में हुई मौत एशिया में हुई मौत का 40 फ़ीसदी है जबकि दुनिया में हुई मौत का करीब 6 फ़ीसदी है। दुनिया में दूसरी बड़ी आबादी वाले हिन्दुस्तान के लिए यह संतोष की बात रही थी कि कोरोना संक्रमण के बीच मौत के मामले में हम बाकी देशों से बेहतर हैं। मगर, स्थिति तेजी से बदल रही है।
मौत के बढ़ते आंकड़े ने हिन्दुस्तान को उस मुकाम पर खड़ा कर दिया है जहां अब सवाल बदल जाएंगे। सवाल पूछा जाएगा कि जब वक्त था मौत से लड़ाई की तैयारी की, तब क्या कर रहे थे? मौत के आंकड़े क्यों इतने भयावह हुए? तब बीजेपी के आईटी सेल के लिए इस सवाल का जवाब देना मुश्किल हो जाएगा।
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