सरकार ने अब कोरोना की विदेशी वैक्सीन को आपात इस्तेमाल के लिए मंजूरी देने की प्रक्रिया में तेज़ी लाने का फ़ैसला किया है। सरकार की ओर से यह बयान तब आया है जब आज ही रिपोर्ट आई है कि रूस की कोरोना वैक्सीन स्पूतनिक-V को मंजूरी दी गई है और उम्मीद है कि पाँच अन्य वैक्सीन को इस साल मंजूरी मिल सकती है। इसमें जॉनसन एंड जॉनसन, ज़ायडस कैडिला, सीरम इंस्टीट्यूट-नोवावैक्स और भारत बायोटेक की नेजल वैक्सीन शामिल हैं।
विदेशों में विकसित वैक्सीन को मंजूरी देने की प्रक्रिया में तेज़ी लाने का फ़ैसला तब लिया गया है जब देश में रिकॉर्ड कोरोना संक्रमण के मामले आ रहे हैं, वैक्सीन का स्टॉक कम पड़ने की ख़बरें हैं और दो वैक्सीन पर ही निर्भर रहने के लिए सरकार की आलोचना की जा रही है। इस बीच सरकार ने 'टीका उत्सव' शुरू किया है। कुछ लोग यह कहकर भी आलोचना कर रहे हैं कि जब वैक्सीन ही नहीं है तो टीका उत्सव कैसे मनेगा!
कल तक देश में दो टीके को मंजूरी मिली थी। सरकार ने देश में कोरोना वैक्सीन की दो कंपनियों- एस्ट्राज़ेनेका से क़रार करने वाले सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक- को ही टीके के इस्तेमाल की मंजूरी दी थी। अब स्पूतनिक-V के भी भारत में इस्तेमाल किए जाने की मंजूरी मिल गई है।
देश में अब तक कोविशील्ड और कोवैक्सीन के जो दो टीके उपलब्ध रहे हैं उनकी भी उत्पादन की क्षमता सीमित है। निजी कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट महीने में 6.5 करोड़ कोविशील्ड वैक्सीन बना सकती है। भारत सरकार भी एक खरीदार है। यानी सीरम इंस्टीट्यूट दुनिया के दूसरे देशों की तरह ही भारत में वैक्सीन बेच सकता है। कोवैक्सीन अब तक देश में टीकाकरण में क़रीब 10 फ़ीसदी ही सहभागी है।
हाल के दिनों में कोरोना वैक्सीन पर बहस तेज़ हो गई। यह बहस यह थी कि देश में कोरोना वैक्सीन की कमी है या नहीं? यह तब शुरू हुई जब महाराष्ट्र ने सबसे पहले आगाह किया था कि उसके पास सिर्फ़ तीन दिनों के लिए ही वैक्सीन उपलब्ध है।
इसके बाद एक के बाद एक कई राज्यों से ख़बरें आईं कि वैक्सीन का स्टॉक कम पड़ गया है। कई राज्यों में तो टीकाकरण केंद्रों के बंद होने की ख़बर भी आई।
महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने पिछले हफ़्ते कहा था कि महाराष्ट्र के पास 14 लाख वैक्सीन के डोज बचे हैं जो तीन दिन के लिए ही था। कई टीकाकरण केंद्र बंद हुए तो केंद्र की ओर से वैक्सीन भेजी गईं।
कोरोना की दूसरी लहर पर शोर मचने से पहले कहा यह जा रहा था कि भारत की वैक्सीन डिप्लोमैसी शानदार है। लेकिन 7 अप्रैल तक स्थिति यह थी कि सिर्फ़ 1.05 करोड़ वैक्सीन ही ग्रांट के तौर पर दूसरे देशों को दी गई थी, 3.5 करोड़ वैक्सीन व्यावसायिक तौर पर बेची गयी और 1.8 करोड़ वैक्सीन विश्व स्वास्थ्य संगठन की कोवैक्स फैसिलिटी के तहत निर्यात की गई।
भारत की वैक्सीन नीति पर एक सवाल यह उठाया जा रहा है कि सरकार ने टीके के लिए प्राथमिकता समूह तय कर रखा है। अब तक यह इस आधार पर तय किया गया कि जो कोरोना से ज़्यादा प्रभावित होंगे, जैसे- स्वास्थ्य कर्मी, फ्रंट लाइन वर्कर्स और बुजुर्ग और कोमोर्बिडिटीज वाले मरीज़, उनको पहले टीका लगाया जाएगा। लेकिन अब इस पर सवाल उठ रहे हैं कि क्यों न कंटेनमेंट ज़ोन के आधार पर टीकाकरण अभियान चलाया जाए। यानी उस ज़ोन में सभी लोगों को टीके क्यों नहीं लगाए जा रहे हैं। मांग तो यह की जा रही है कि अब सभी उम्र के लोगों को टीकाकरण किया जाना चाहिए क्योंकि कोरोना नियंत्रित नहीं हो रहा है।
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