प्रवासी मज़दूरों की मौत का आँकड़ा नहीं होने की बात कहने के लिए विपक्ष की तीखी आलोचनाओं के बाद सरकार ने अब सफ़ाई दी है। इसने कहा है कि ऐसा आँकड़ा जुटाने के लिए ज़िलों में कोई मैकनिज़्म यानी तंत्र नहीं है। यह प्रतिक्रिया संसद में नहीं आई है, बल्कि आलोचनाओं के बाद श्रम मंत्रालय के अधिकारियों ने सफ़ाई दी है। अब ज़ाहिर है जब कोई तंत्र ही नहीं है तो फिर आँकड़ा कहाँ से इकट्ठा किया जाएगा।
एक दिन पहले जब संसद के मानसून सत्र में जब यह सवाल पूछा गया था कि क्या लॉकडाउन में अपने-अपने घर वापस जाने के दौरान मारे गए प्रवासी मज़दूरों के परिवार वालों को हर्जाना दिया गया है तो केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने कहा था कि प्रवासी मज़दूरों की मौत का आँकड़ा ही नहीं है तो हर्जाना देने का सवाल ही नहीं उठता है।
सरकार के इसी जवाब पर विपक्ष ने हमला किया। राहुल गाँधी ने भी सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने ट्वीट कर कहा, 'मोदी सरकार नहीं जानती कि लॉकडाउन में कितने प्रवासी मज़दूर मरे और कितनी नौकरियाँ गयीं। तुमने ना गिना तो क्या मौत ना हुई? हाँ मगर दुख है सरकार पे असर ना हुई, उनका मरना देखा ज़माने ने, एक मोदी सरकार है जिसे ख़बर ना हुई।'
सरकार की उस प्रतिक्रिया पर सवाल उठाए जा रहे थे कि क्या सरकार अपनी ज़िम्मेदारी लेने से पीछे हट रही है? क्या सरकार इसलिए मौत के ये आँकड़े नहीं दे रही है क्योंकि इन आँकड़ों के आधार पर सवाल ये उठाए जाते कि क्या मोदी सरकार का लॉकडाउन विफल साबित हुआ?
विपक्ष के हमले के बाद सरकार की तरफ़ से एक और ऐसा बयान आया जिस पर हंगामा मचा। कल शाम ही सरकार ने एक अन्य जवाब में कहा कि लॉकडाउन की अवधि को लेकर फ़ेक न्यूज़ के कारण बड़े स्तर पर प्रवासी मज़दूरों का पलायन हुआ। हालाँकि सरकार की यह सफ़ाई किसी के गले नहीं उतरी।
दरअसल, भारत में जब लॉकडाउन हुआ तो करोड़ों प्रवासी मज़दूरों की जान पर बन आई। भूखे रहे। हज़ारों किलोमीटर पैदल चले। कई लोगों ने तो रास्ते में दम तोड़ दिया। कई दुर्घटना में मारे गए। जब ट्रेनें शुरू हुईं तो ट्रेनों में भी मौत की रिपोर्टें आईं।
यह तब की बात है जब लाखों लोग शहरों में काम बंद होने के बाद जैसे-तैसे अपने घर पहुँचने की जद्दोजहद में थे। लॉकडाउन शुरू होने पर तो बड़ी संख्या में लोग पैदल ही अपने-अपने घरों के लिए निकल गए थे, लेकिन यह सख़्ती के बाद भी जारी रहा। काम बंद होने के कारण ग़रीब मज़दूरों को शहर में रहना ज़्यादा ही मुश्किल हो रहा था। ऐसे लोगों के पास सबसे बड़ा संकट खाने को लेकर था। भूखे रहने की नौबत आने पर कुछ लोग हज़ार-हज़ार किलोमीटर तक पैदल चलने के लिए जोखिम उठा रहे थे। हालाँकि, सरकारों ने अपनी-अपनी तरफ़ से खाने-पीने की व्यवस्था करने के दावे किए और सरकार ने राहत पैकेज की घोषणा भी की थी, लेकिन ऐसी लगातार रिपोर्टें आती रहीं कि ये नाकाफ़ी साबित हो रहे थे।
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