नोटबंदी पर पूछे गए सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने राज्यसभा में बताया है कि नोटबंदी में चार लोगों की जान गई थी। इसमें तीन भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के कर्मचारी थे और एक व्यक्ति की लाइन में लगे होने की वजह से जान गई थी।
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया कि बैंक ने मृतकों के परिजनों को मुआवजे के रूप में 44 लाख रुपये दिए। इसमें से तीन लाख रुपये लाइन में लगे व्यक्ति की मौत पर उसके परिजनों को दिए गए। जेटली के अनुसार बाक़ी बैंकों ने बताया कि उनकी शाखाओं के बाहर नोट बदलने के लिए लाइन में लगे किसी व्यक्ति की जान नहीं गई।
माकपा के ई. करीम ने नोटबंदी के दौरान बैंकों में नोट बदलने के लिए लाइन में लगने के दौरान या काम के तनाव के कारण मरने वालों की जानकारी माँगी थी जिसके जवाब में जेटली ने ये बातें कहीं।
जेटली ने जिन चार लोगों के मरने की बात कही है, उनमें तीन बैंककर्मी हैं। यानी सरकार के हिसाब से नोटबंदी की ख़बर के कारण या उस दौरान लाइन में खड़े होने से सामान्य जनों में से केवल एक व्यक्ति मरा जबकि यदि हम उन दिनों प्रकाशित ख़बरों पर नज़र दौड़ाएँ तो कम-से-कम सौ लोगों के मरने के समाचार मिले थे।
- 8 नवंबर को पीएम नरेंद्र मोदी के नोटबंदी की घोषणा करने के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश के फ़ैज़ाबाद में एक व्यक्ति के सीने में तेज़ दर्द हुआ और उसकी मौत हो गई। (पूरी ख़बर यहाँ पढ़ें)
- 11 नवंबर को 73 साल के विश्वनाथ वर्तक की मुलुंद के नवघर में स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के बाहर घंटों तक लाइन में खड़े रहने के कारण मौत हो गई थी। (पूरी ख़बर यहाँ पढ़ें)
- 12 नवंबर को विशाखापट्नम के गजुवाका में एक प्राइवेट अस्पताल के पुराने नोट लेने से इनकार करने पर 18 महीने की बच्ची कोमाली को इलाज नहीं मिल सका था। इससे उसकी मौत हो गई थी। (पूरी ख़बर यहाँ पढ़ें)
- 13 नवंबर को यूपी के बुलंदशहर में पुराने नोट न बदले जाने के कारण एक किसान की मौत हो गई थी। उसे अपनी बेटी की शादी के लिए रुपयों की ज़रूरत थी। (पूरी ख़बर यहाँ पढ़ें)
- 13 नवंबर को दिल्ली के खजूरी खास इलाके में 21 साल की रिज़वाना ने आत्महत्या कर ली थी। रिज़वाना के परिजनों का कहना था कि तीन दिन तक कोशिश करने के बाद भी वह अपने पुराने नोट नहीं बदलवा सकी थी और इस कारण बहुत परेशान थी। (पूरी ख़बर यहाँ पढ़ें)
इसके अलावा कई और ख़बरें सामने आई थीं कि नोटबंदी के कारण कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा था। इन ख़बरों को इकट्ठा करके कैच न्यूज़ ने रिपोर्ट तैयार की थी। इस रिपोर्ट को आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
जेटली के जवाब से स्पष्ट होता है कि सरकार ने ख़बरों की पुष्टि करने के लिए और पीड़ित लोगों को मुआवज़ा देने के लिए न तो आम जनता से कोई जानकारी माँगी न ही अपने स्तर पर सच्चाई पता लगाने का कोई प्रयास किया। सरकार ने केवल सार्वजनिक बैंकों से पूछा और बैंकों ने जो जवाब दिया, उसी को अंतिम सत्य मान कर अपने कर्तव्यों से हाथ धो लिया।
बता दें कि, मोदी सरकार ने 8 नवंबर, 2016 की आधी रात को 500 और 1,000 के नोटों को रद्द कर दिया था। इसकी घोषणा करते समय पीएम नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि नोटबंदी से जाली नोट और आतंकवाद की फ़ंडिंग पर लगाम लगेगी और काला धन पकड़ा जा सकेगा। हालाँकि, ख़बरों के मुताबिक़ नोटंबदी से कालेधन का कोई पर लगाम नहीं लगी, उल्टे अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई और लाखों लोगों की नौकरियाँ चली गईं।
इस साल नवंबर में केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने भी नोटबंदी के दुष्प्रभावों को स्वीकार किया था। मंत्रालय ने माना था कि नोटबंदी के बाद से नकदी की कमी के चलते लाखों किसान, रबी सीजन में बुआई के लिए बीज-खाद नहीं खरीद सके। इसका किसानों पर बहुत बुरा असर पड़ा था।
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