कांग्रेस नेता राहुल गांधी के मामले में जर्मनी ने गंभीर प्रतिक्रिया दिया है। जर्मनी ने बुधवार को कहा कि भारत के विपक्षी कांग्रेस नेता राहुल गांधी के मामले में "न्यायिक स्वतंत्रता और मौलिक लोकतांत्रिक सिद्धांतों के मानकों" को लागू होना चाहिए। अमेरिका ने मंगलवार को अपनी मामूली प्रतिक्रिया में कहा था कि वो अदालत में राहुल गांधी के मामले को देख रहा है।
जर्मनी की प्रतिक्रिया आने के बाद बीजेपी राहुल पर हमला और तेज कर सकती है। राहुल गांधी के लंदन भाषण पर ही बीजेपी ने शोरशराबा करते हुए माफी की मांग की थी। बीजेपी का आरोप है कि राहुल ने अमेरिका और ब्रिटेन से मदद मांग कर राष्ट्रद्रोह किया है। हालांकि राहुल ने लंदन में अपने भाषणों में यही कहा था कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है। लेकिन बीजेपी ने उनके बयान का अलग ही मतलब निकाला। जर्मनी यूरोपियन यूनियन का सदस्य है और उसकी प्रतिक्रिया मायने रखती है। उसने भी लोकतांत्रिक सिद्धांत की बात उठाई है।
तमाम मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि जर्मन विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बुधवार को कहा कि सरकार ने राहुल गांधी के खिलाफ "फैसले और "उनके संसद से अयोग्य ठहराने के मामले" का संज्ञान लिया है। किसी यूरोपीय देश की राहुल गांधी पर यह पहली प्रतिक्रिया है।
जर्मनी के प्रवक्ता के मुताबिक- हमारी जानकारी के अनुसार राहुल गांधी फैसले के खिलाफ अपील करने की स्थिति में हैं। इसके बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि क्या यह फैसला कायम रहेगा और क्या उनके शासनादेश के निलंबन का कोई आधार है।
केरल के वायनाड लोकसभा क्षेत्र से सांसद गांधी को मोदी उपनाम वाले लोगों के बारे में उनकी टिप्पणी पर दोषी ठहराए जाने के बाद लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। उन्होंने 2019 में कर्नाटक में एक चुनाव प्रचार रैली के दौरान यह टिप्पणी की थी। गांधी फिलहाल जमानत पर हैं।
एक मीडिया ब्रीफिंग में पूछे जाने पर कि क्या गांधी का संसद से निष्कासन लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप था, पटेल ने जवाब दिया: "कानून के शासन और न्यायिक स्वतंत्रता के लिए सम्मान किसी भी लोकतंत्र की आधारशिला है और हम भारतीय अदालतों में राहुल गांधी के मामले को देख रहे हैं। हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति हमारी साझा प्रतिबद्धता भारत सरकार के साथ है।
पटेल ने आगे कहा कि अमेरिका लोकतांत्रिक सिद्धांतों के महत्व और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित मानवाधिकारों की सुरक्षा को "हमारे दोनों लोकतंत्रों को मजबूत करने की कुंजी" के रूप में देखता है।
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