क्या थल सेना डैमेज कंट्रोल में लगी हुई है? क्या सेना प्रमुख जनरल एम. एम. नरवाने अपने पूर्ववर्ती जनरल बिपिन रावत के बयान से हुए नुक़सान की भरपाई करने की कोशिश कर रहे हैं?
जनरल नरवाने ने इस पर ज़ोर दिया कि सेना हमेशा अराजनीतिक रही है और भविष्य में भी रहेगी। यह इसलिए है कि हर सैनिक सबसे ऊपर संविधान को मानने की शपथ लेता है।
जनरल नरवाने ने कार्यभार संभालने के बाद नए साल के मौके पर एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि सेना पाकिस्तान स्थित आतंकवादी कैंपों पर नज़र रखे हुए है। उन्होंने यह भी कहा कि पूर्ववर्ती सेना प्रमुखों की तरह उनकी प्राथमिकता भी सेना को किसी भी तरह की स्थिति के लिए तैयार रखना है।
जनरल नरवाने की बात को जनरल रावत के बयान के परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है। जनरल रावत ने बीते दिनों नागरिकता संशोधन क़ानून पर जो कुछ कहा, उससे लगता था मानो वह सरकार का समर्थन कर रहे हैं और इस इस क़ानून के ख़िलाफ़ चल रहे आन्दोलन के ख़िलाफ़ बोल रहे हैं।
उन्होंने कहा था, ‘नेतृत्व कुल मिला कर अगुआई करने का मामला है। आप जब आगे बढ़ते हैं, लोग आपके पीछे चलते हैं। पर नेता वे नहीं होते हैं जो लोगों को ग़लत दिशा में ले जाते हैं, जैसा कि हम बड़ी तादाद में छात्रों के साथ देख रहे हैं।’
जनरल रावत के इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। राजनीतिक दलों ने ही नहीं, सैन्य बलों के शीर्ष अफ़सरों ने भी इसका विरोध किया था। यह कहा गया था कि यह धीरे धीरे सैन्य बलों का राजनीतिकरण होना है। सेना चुनी हुई सरकार के ही अधीन काम करती हैं और सेना को राजनीति से पूरी तरह तटस्थ रहना चाहिए।
चीनी सीमा पर शांति
जनरल नरवाने की दूसरी कुछ बातें भी जनरल रावत से उलट हैं। उन्होंने चीन से लगने वाली सीमा पर शांति होने की बात कही। जनरल नरवाने ने कहा, ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा के आसपास शांति का माहौल है, चिंता की कोई बात नहीं है। हम अपनी तरफ सड़कें बना रहे हैं, बुनियादी ढाँचा खड़ी कर रहे हैं, हवाई अड्डे बना रहे हैं, क्षमता बढ़ा रहे हैं। दोनों तरफ विकास हो रहा है।’
उन्होंने इसके पहले कहा था कि सीमा पर शांति बनी हुई है और इससे बाद में सीमा समस्या का निपटारा हो सकता है। एक तरह से जनरल नवराने ने चीन से शांति पर ज़ोर दिया।
लेकिन उसके ठीक पहले जनरल रावत ने कहा था कि सेना चीन और पाकिस्तान से निपटने के लिए बेहतर ढंग से तैयार है। ऐसा कह कर उन्होंने एक तरह से चीन को चेतावनी देने की कोशिश की, जबकि जनरल नवराने चीन से शांति की बात कर रहे हैं।
जनरल रावत ने बार-बार ऐसी बातें कहीं, जो यह जताता है कि वह तटस्ठ तो नहीं ही हैं, वह कम से कम इसका दिखावा ही करते रहें, वह भी नहीं करते। वह खुल कर सरकार के साथ खड़े दिखते हैं।
डोकलाम
जब डोकलाम का मामला गरमाया हुआ था और भारत सरकार किसी तरह वहाँ से चीनी सेना को वापस बुलाने के लिए बीजिंग से बात कर रही थी, रावत ने यह कह दिया कि डोकलाम चीन और भूटान का विवादित क्षेत्र है। सेनाध्यक्ष विदेश मामलों पर क्यों बोल रहा है और विदेश मंत्रालय क्या कर रहा है, यह सवाल उठना लाज़िमी था।असम
रावत ने भाषण देते हुए कहा था कि असम की जनसंख्या पूरी तरह बदल चुकी है। उनके कहने का आशय यह था कि जहाँ पहले हिन्दू बहुमत में थे, वहाँ मुसलमानों की आबादी ज़्यादा है। पहले पाँच जि़लोे में ऐसा था, फिर आठ और नौ ज़िलों में यह हो गया। इसे बदला नहीं जा सकता।सेनाध्यक्ष ने असम में मुसलमानों की बढ़ती आबादी पर चिंता जताते हुए इसे देश और राज्य के लिए ख़तरनाक क़रार दिया। उनका यह भी मानना है कि यह बांग्लादेश का 'प्रॉक्सी वॉर' है।
कश्मीर
कश्मीरी अलगाववादियों से बातचीत करने के मुद्दे पर उन्होंने केंद्र सरकार के राजनीतिक फ़ैसले का समर्थन किया था। जनरल रावत ने कहा था कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेताओं से सीधे बात न कर बिचौलिये के ज़रिए बात करने का सरकार का फ़ैसला सही है। रावत के कश्मीर पर विवादित बयान और भी हैं। उन्होंने पत्थर फेंकने वाले युवाओं को आतंकवादी क़रार देते हुए कहा था कि हम उन्हें नहीं छोड़ेंगे और वैसा ही व्यवहार करेंगे जैसा किसी आतंकवादी के साथ करते हैं।
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