हेमंत सोरेन
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वाराणसी की एक विशेष एमपी/एमएलए अदालत ने बुधवार को गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी को 36 साल पुराने फर्जी हथियार लाइसेंस मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई। मंगलवार को कोर्ट ने मुख्तार अंसारी को दोषी करार दिया था और मामले में सजा सुनाने के लिए 13 मार्च की तारीख तय की थी।
सुनवाई के दौरान दोषी मुख्तार अंसारी बांदा जेल से जहां वह बंद हैं, वीडियोकांफ्रेंसिंग के जरिए अदालत में पेश हुए। मामले की सुनवाई के बाद विशेष न्यायाधीश (एमपी-एमएलए) अवनीश गौतम की एमपी/एमएलए अदालत ने मामले में मुख्तार को धारा 428 (शरारत), 467 (मूल्यवान सुरक्षा की जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 120बी के तहत दोषी ठहराया। सिंह ने कहा, भारतीय दंड संहिता की (आपराधिक साजिश) और शस्त्र अधिनियम की धारा 30 में मुख्तार दोषी हैं।
10 जून 1987 को मुख्तार अंसारी ने डबल बैरल बंदूक के लाइसेंस के लिए जिला मजिस्ट्रेट, ग़ाज़ीपुर के यहां आवेदन किया था। बाद में जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक के फर्जी हस्ताक्षर से शस्त्र लाइसेंस प्राप्त कर लिया गया।
4 दिसंबर 1990 को जब इस धोखाधड़ी का खुलासा हुआ तो सीबी-सीआईडी ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और शिकायत के आधार पर मुख्तार अंसारी समेत पांच लोगों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत गाजीपुर के मोहम्मदाबाद पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया।
1997 में तत्कालीन शस्त्र लिपिक गौरीशंकर श्रीवास्तव और मुख्तार अंसारी के खिलाफ कोर्ट में आरोप पत्र भेजा गया था। मामले की सुनवाई के दौरान गौरीशंकर श्रीवास्तव की मौत हो गयी। मामले में सरकारी पक्ष की ओर से 10 गवाहों के बयान दर्ज किये गये थे।
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