सरकार ने अमेरिकी थिंकटैंक 'फ़्रीडम हाउस' की उस रिपोर्ट को खारिज कर दिया है, जिसमें कहा गया है कि भारत पहले से कम लोकतांत्रिक रह गया है। केंद्र सरकार ने इस रिपोर्ट को 'भ्रामक' और 'ग़लत' क़रार दिया है।
‘2021 में विश्व में आज़ादी- लोकतंत्र की घेरेबंदी’ शीर्षक से जारी की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा लगता है कि भारत ने वैश्विक लोकतांत्रिक नेता के रूप में नेतृत्व करने की क्षमता को त्याग दिया है और भारत के इस सूची में नीचे जाने से दुनिया भर के लोकतांत्रिक मापदंडों पर ख़राब असर हो सकता है। भारत की ओर से अभी तक इस बारे में कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
क्या कहना है सरकार का?
सरकार ने फ़्रीडम हाउस की उस रिपोर्ट का बिंदुवार जवाब देते हुए कहा है कि यह रिपोर्ट ग़लत है, यह इसी से ज़ाहिर होता है कि 'देश के कई राज्यों में उन दलों की सरकार है जो केंद्र के सत्तारूढ़ दल से अलग राय रखते हैं और ये सरकार निष्पक्ष चुनाव के ज़रिए चुनी गई हैं, यह चुनाव आयोजित कराने वाला निकाय पूरी तरह स्वतंत्र है।'
फ़्रीडम हाउस की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश अधिनायकवाद में धंसता जा रहा है। इसके लिए दिल्ली दंगों और मुसलमानों के ख़िलाफ़ भीड़ की हिंसा का हवाला दिया गया है। सरकार की आलोचना करने वालों पर राजद्रोह के मुक़दमे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लॉकडाउन का यकायक एलान और उसे बेहद सख़्ती से लागू करने की बात भी कही गई है।
हर नागरिक समान
सरकार ने इसके जवाब में कहा है कि 'वह हर नागरिक के साथ समान व्यवहार करती है जैसा कि संविधान में व्यवस्था है और हर क़ानून को बग़ैर किसी भेदभाव के सबपर समान रूप से लागू किया जाता है। क़ानून व्यवस्था के विषय में नियम क़ानून का पूरे सम्मान के साथ पालन किया जाता है और ऐसा उकसाने की कार्रवाई करने वाले की पहचान के बग़ैर किया जाता है।'
सरकार ने यह भी दावा किया है कि जहाँ तक 2020 में फरवरी में उत्तर-पूर्व दिल्ली के दंगों की बात है, क़ानून व्यवस्था के लिए ज़िम्मेदारी एजंसियों ने बगैर समय गंवाए पूरी मुस्तैदी से काम किया। फ़ोन पर जानकारी मिलते ही हर तरह के क़ानूनी कदम उठाए गए और कार्रवाई की गई।
राजद्रोह पर सरकार का तर्क
केंद्र सरकार ने आलोचकों पर राजद्रोह लगाने के मुद्दे पर भी सफाई दी। उसने कहा है कि क़ानून व्यवस्था राज्यों के अधीन है और संबंधित राज्य सरकारों ने क़ानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कदम उठाए, मामलों की जाँच की और दूसरी तरह की कर्रवाइयां कीं। इसलिए यह काम संबंधित एजंसियों का है और उन्हें जो ठीक लगा, उन्होंने किया।
सरकार ने असहमति रखने वाले अकदामिक लोगों, पत्रकारों और मीडिया को निशाना बनाने से साफ़ इनकार कर दिया और तर्क दिया है कि संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत हर किसी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।
सरकार ने कहा है, "परिचर्चा, बहस और असहमति भारतीय लोकतंत्र का हिस्सा है। सरकार पत्रकारों समेत हर नागरिक की सुरक्षा को सर्वोपरि मानती है। सरकार ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित क्षेत्रों को विशेष सलाह जारी कर कहा है कि वे पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए क़ानून व्यवस्था के उपायों को सख़्ती से लागू करें।"
समय-समय पर इंटरनेट कनेक्शन काट देने पर सफाई देते हुए सरकार ने कहा है कि यह क़ानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए खास मौकों पर ही किया गया है और उससे जुड़े दिशा-निर्देशों का पालन किया गया है।
सरकार ने मानवाधिकार के लिए काम करने वाली संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल पर लगे प्रतिबंध को भी जायज़ ठहराया है। इसने कहा है कि इस संस्था ने ग़ैरक़ानूनी तरीके से बहुत सारा पैसा विदेशों से ले लिया। इसने उस पैसे को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) के रूप में दिखाया।
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