किसानों और सरकार के बीच तनातनी बढ़ने के आसार हैं। किसानों ने सोमवार को फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की केंद्र सरकार की नई पेशकश को खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा है कि यह उनके हित में नहीं है। सरकार के प्रस्ताव को खारिज करने के बाद प्रदर्शनकारी किसानों ने कहा कि वे 21 फरवरी की सुबह अपना 'दिल्ली चलो' मार्च फिर से शुरू करेंगे। किसान नेताओं ने कहा कि केंद्र के प्रस्ताव में स्पष्टता नहीं है और वे सिर्फ दालों, मक्का और कपास की फसलों पर ही नहीं बल्कि सभी 23 फसलों पर एमएसपी चाहते हैं। किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल ने कहा, 'हमारे दो मंचों पर चर्चा करने के बाद यह निर्णय लिया गया है कि केंद्र का प्रस्ताव किसानों के हित में नहीं है और हम इस प्रस्ताव को अस्वीकार करते हैं।'
एमएसपी की क़ानूनी गारंटी सहित 12 मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे पंजाब और हरियाणा के क़रीब 200 संगठन अपनी मांगों को मनवाने में लगे हैं। ये किसान सरकार की पेशकश से संतुष्ट नहीं हैं। प्रदर्शन करने वाले किसानों से पहले आज दिन में ही संयुक्त किसान मोर्चा ने भी सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। पिछली बार तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसान संगठनों का नेतृत्व करने वाला संयुक्त किसान मोर्चा यानी एसकेएम इस बार प्रदर्शन में शामिल नहीं है। इसने पुराने एमएसपी पर दालें, मक्का और कपास खरीदने के लिए पांच साल के अनुबंध की पेशकश को खारिज कर दिया है। स्वामीनाथन कमेटी द्वारा की गई सिफारिश में लागत पर 50 फ़ीसदी मुनाफे की बात कही गई है, लेकिन अब तक चले आ रहे एमएसपी में इससे कमतर की बात की गई है।
फिलहाल, प्रदर्शन कर रहे पंजाब और हरियाणा के किसानों के नेताओं और केंद्र सरकार के बीच रविवार की देर रात तक चौथे दौर की वार्ता हुई थी। दोनों पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण माहौल में बातचीत हुई थी। केंद्र सरकार ने किसानों को मक्का, कपास, अरहर और उड़द दालों पर एमएसपी देने का प्रस्ताव दिया था।
चंडीगढ़ में किसान नेताओं के साथ हुई इस वार्ता में केंद्र सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा और गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने हिस्सा लिया था। इससे पहले दोनों पक्षों के बीच 8, 12, और 15 फरवरी को भी वार्ता हुई थी लेकिन तब सहमति नहीं बन पाई।
सरवन सिंह पंधेर ने कहा है कि 'एमएसपी पर मंत्रियों ने हमें जो प्रस्ताव दिया है उस पर हम अपने संगठनों के स्तर पर चर्चा करेंगे और विशेषज्ञों की भी राय लेंगे। 20 फरवरी तक अपना निर्णय बता देंगे।
बहरहाल, इस बीच एसकेएम ने सोमवार शाम को इस प्रस्ताव को किसानों की मुख्य मांगों को भटकाने वाला बताते हुए इसकी आलोचना की। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार एसकेएम ने भाजपा के 2014 के घोषणापत्र में किए गए वादे के अनुसार गारंटीशुदा खरीद के साथ सभी 23 फसलों की खरीद से कम कुछ भी नहीं स्वीकारने पर जोर दिया।
एसकेएम ने जोर देकर कहा कि यह खरीद स्वामीनाथन आयोग के सी2+50 प्रतिशत एमएसपी या न्यूनतम समर्थन मूल्य फार्मूले पर आधारित होनी चाहिए न कि मौजूदा ए2+एफएल+50 प्रतिशत पद्धति पर।
इसके साथ ही एसकेएम ने सरकार से अन्य मांगों पर भी आगे बढ़ने की मांग की है, जिसमें ऋण माफी, बिजली दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं और 2020/21 के विरोध प्रदर्शन के दौरान दर्ज किए गए पुलिस मामलों को वापस लेना शामिल है। एसकेएम ने कहा कि व्यापक सार्वजनिक क्षेत्र की फसल बीमा योजना और 60 वर्ष से अधिक उम्र के किसानों को 10,000 रुपये की मासिक पेंशन जैसी मांगों पर भी कोई प्रगति नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों की मौत के मामले में कनिष्ठ गृह मंत्री अजय मिश्रा टेनी पर मुकदमा चलाने की मांग का भी समाधान नहीं हुआ है।
हालाँकि, संयुक्त किसान मोर्चा इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व करने वाला किसान संगठन नहीं है, लेकिन समझा जाता है कि किसान यूनियनों के एक बड़े संघ के रूप में, यह उन किसानों को प्रभावित करता रहा है। अब सरकार के साथ रविवार की बैठक में भाग लेने वाले किसानों ने भी सरकार की पेशकश को ठुकरा दिया है।
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