कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन के 100 दिन पूरे होने के मौक़े पर आज किसान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर टोल प्लाजा को फ्री करेंगे और काला दिन मनाएंगे। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि डासना, दुहाई, बाग़पत, दादरी और ग्रेटर नोएडा में किसान टोल प्लाज़ा के कार्यक्रम में शामिल होंगे। इसके अलावा कुंडली मानेसर पलवल एक्सप्रेस वे को 5 घंटे के लिए जाम किया जाएगा।
किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि उनकी तैयारी पूरी है और जब तक सरकार उनकी मांगों को नहीं मान लेती वे यहां से नहीं जाएंगे। योगेंद्र यादव ने कहा कि इस आंदोलन ने नेताओं को सिखा दिया है कि वे किसानों से पंगा न लें। उन्होंने कहा कि किसान कभी इतना एकजुट नहीं था, जितना आज है।
किसान गर्मी से बचने के लिए अपने साथ पंखे, कूलर भी ले आए हैं और बिजली के कनेक्शन का इंतेजाम कर इन्हें तमाम बॉर्डर्स पर चालू किया जा रहा है। इसका मतलब साफ है कि आंदोलन अभी लंबा चलेगा।
बीजेपी को वोट न देने की अपील
संयुक्त किसान मोर्चा ने बीजेपी नेताओं की नींद उड़ा रखी है। मोर्चा के नेताओं ने कहा है कि वह पांच चुनावी राज्यों में रैलियां कर लोगों से अपील करेगा कि वे बीजेपी को वोट नहीं दें। उन्होंने कहा कि लोग जिस किसी दल को वोट देना चाहते हैं, दे सकते हैं लेकिन बीजेपी को वोट नहीं दें। मोर्चा की ओर से 12 मार्च को कोलकाता में रैली कर इसकी शुरुआत की जाएगी। इसके अलावा केरल, बंगाल में भी किसानों की टीमें जाएंगी।
'वोट की चोट' देंगे
संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि सत्ताधारी दलों को उसी के अंदाज में जवाब दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि सत्ता में बैठे लोगों को 'वोट की चोट' से समझाया जाएगा। योगेंद्र यादव ने कहा कि पूरे देश के मज़दूर और कर्मचारी 15 मार्च को सड़क पर उतरेंगे और किसान उनका साथ देंगे। मज़दूर और कर्मचारी निजीकरण, कार्पोरेटाइजेशन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करेंगे। ट्रेड यूनियन धरना-प्रदर्शन करेंगी और किसान भी इस प्रदर्शन में शामिल होंगे।
इसके अलावा किसानों ने 'प्रधानमंत्री एमएसपी दिलाओ' का अभियान छेड़ दिया है। कर्नाटक के बाद बाक़ी राज्यों में भी इस अभियान को चलाया जाएगा। किसानों ने कहा है कि इसमें प्रधानमंत्री को उनका भाषण याद दिलाया जाएगा जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘एमएसपी था, है और रहेगा’।
इससे पहले 18 फरवरी को किसानों ने रेल रोको और 5 फरवरी को चक्का जाम का आह्वान किया था और यह शांतिपूर्ण रहा था। कई राज्यों में प्रदर्शनकारी सड़क पर उतरे थे और यहां आंदोलन का ख़ासा असर देखने को मिला था। 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के दौरान जिस तरह कुछ उपद्रवी तत्वों ने हिंसा का सहारा लिया, उसके बाद किसान संगठन बेहद सतर्कता बरत रहे हैं।
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