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जश्न मनाते हुए घरों को निकले किसान, खाली होने लगे बॉर्डर

कृषि क़ानूनों को रद्द करने सहित कुछ और मांगों को लेकर एक साल से ज़्यादा वक़्त से धरने पर बैठे किसानों ने आज से घर वापसी शुरू कर दी है। इस बीच, सिंघु, टिकरी और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर किसानों ने अपने टैंटों और तंबुओं को उखाड़ना शुरू कर दिया है और माना जा रहा है कि अगले कुछ दिनों में इन बॉर्डर्स पर यातायात पूरी तरह सामान्य हो जाएगा। इससे पहले किसानों ने तमाम बॉर्डर्स पर अपनी जीत का जश्न मनाया। किसान आज विजय दिवस मना रहे हैं। 

गुरूवार को किसानों ने आंदोलन को स्थगित करने का एलान किया था। सिंघु बॉर्डर पर हुई संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में यह फ़ैसला लिया गया था। 

मोर्चा की बैठक में यह सहमति बनी थी कि 11 दिसंबर से किसान बॉर्डर्स को छोड़ना शुरू कर देंगे। किसान नेताओं ने कहा था कि सरकार ने उनकी सभी मांगें मान ली हैं और वे हर महीने इनकी समीक्षा करते रहेंगे। 

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इससे पहले केंद्र व राज्य सरकारें किसानों पर दर्ज सारे मुक़दमे तुरंत प्रभाव से रद्द करने के लिए तैयार हो गई थीं। इसमें किसान आंदोलन के दौरान और पराली जलाने को लेकर दर्ज हुए मुक़दमे भी शामिल हैं। किसान आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के मुआवज़े को लेकर भी सहमति बन गई थी। एमएसपी को लेकर कमेटी सहित बाक़ी मांगों पर भी किसानों और सरकार के बीच सहमति बन गई थी। 

संयुक्त किसान मोर्चा ने केंद्र सरकार के संशोधित प्रस्ताव पर मुहर लगा दी थी। 

किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा था कि अगर सरकार अपने वादों से इधर-उधर होगी तो किसान फिर से आंदोलन शुरू करेंगे। 

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चुनावी हार का डर

बीजेपी और मोदी सरकार को संघ परिवार, तमाम एजेंसियों से यह फीडबैक मिल चुका था कि किसान आंदोलन से उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के चुनाव में बड़ा नुक़सान हो सकता है और पंजाब में बची-खुची सियासी जमीन भी ख़त्म हो सकती है। किसानों और विपक्ष के बढ़ते दबाव और चुनावी हार के डर से 19 नवंबर के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि क़ानूनों की वापसी का एलान कर दिया। 

सरकार ने थोड़ी ना-नुकुर के बाद इनमें से अधिकतर मांगों को मान लिया और किसानों ने भी आंदोलन स्थगित करने का एलान कर दिया। 

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क़मर वहीद नक़वी
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