कृषि कानूनों के मामले में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा बनाई गई कमेटी की रिपोर्ट सामने आ गई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकतर किसान संगठनों ने तीनों कृषि कानूनों का समर्थन किया था। इन कृषि कानूनों को लेकर दिल्ली के बॉर्डर्स पर 1 साल तक आंदोलन चला था और किसानों के जबरदस्त विरोध के कारण मोदी सरकार को पीछे हटना पड़ा था और उसने कृषि कानून वापस ले लिए थे।
कृषि कानूनों को लेकर विवाद बढ़ने पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से तीन सदस्यों की यह कमेटी बनाई गई थी। इस कमेटी में किसान नेता अनिल घनावत, कृषि विशेषज्ञ अशोक गुलाटी और प्रमोद जोशी भी थे।
अनिल घनवत ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा कि यह रिपोर्ट किसानों और नीति निर्माताओं के लिए बेहद अहम है और इसलिए उन्होंने इसे लोगों के बीच में रखने का फैसला किया।
61 संगठनों ने किया समर्थन
रिपोर्ट के मुताबिक, 73 किसान संगठनों ने कमेटी के सदस्यों से बात की और इनमें से 61 किसान संगठनों ने कृषि कानूनों का समर्थन किया। ये 61 किसान संगठन 3.3 करोड़ किसानों का प्रतिनिधित्व करते हैं। कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक, 4 किसान संगठनों ने तीन कृषि कानूनों का विरोध किया और 7 किसान संगठनों ने इनमें संशोधन करने की बात कही।
कमेटी के सदस्यों ने किसान संगठनों से सीधे या वीडियो लिंक के जरिए बातचीत की। रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों के किसान संगठनों से जुड़े किसानों ने कमेटी के सदस्यों से बातचीत नहीं की। जबकि कमेटी की ओर से इन्हें बातचीत करने के लिए कई बार निमंत्रण भेजा गया था।
रिपोर्ट कहती है कि केवल 27.5 फीसद किसानों ने अपने अनाज को सरकार के द्वारा घोषित किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचा और यह किसान छत्तीसगढ़ पंजाब और मध्य प्रदेश के थे।
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कमेटी की सिफारिशें
कमेटी ने कुछ सिफारिशें भी दी हैं। एक सिफारिश यह है कि बड़े पैमाने पर अनाज की खरीद करने के बजाए तिलहन और दालों की खरीद में नेशनल को-ऑपरेटिव एग्रीकल्चर मार्केटिंग फेडरेशन (नेफेड) के द्वारा अपनाए गए मॉडल को लागू किया जाए।
घनवत ने बीते साल कहा था कि अगर एमएसपी को लेकर कोई कानून बनाया जाता है तो भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने कहा था कि कृषि कानूनों को रद्द करने का निर्णय विशुद्ध रूप से राजनीतिक है और इसका उद्देश्य उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनाव में जीत हासिल करना है।
झेलना पड़ा था विरोध
तीन कृषि क़ानूनों के कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को किसानों के पुरजोर विरोध का सामना करना पड़ा था। हालांकि केंद्र सरकार ने चुनाव से ठीक पहले कृषि कानून वापस ले लिए और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को उतना नुकसान नहीं हुआ जितना होने की बात कही जा रही थी। देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा गठित की गई इस कमेटी की रिपोर्ट पर किसान संगठन क्या प्रतिक्रिया देते हैं।
किसान संगठनों ने कहा था कि केंद्र सरकार ने उन्हें आश्वासन देकर धरना तो खत्म करवा लिया लेकिन उसने अपने वादों को पूरा नहीं किया।
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