किसानों के आंदोलन की अगुवाई कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने शनिवार को एक बार फिर हुंकार भरी और सरकार से कहा है कि वह कृषि क़ानूनों को तुरंत रद्द करे। कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल की ओर से 24 दिसंबर को किसानों को पत्र भेजा गया था और आंदोलनकारी किसानों से अगले दौर की बातचीत के लिए तारीख़ और वक़्त तय करने का अनुरोध किया था।
अग्रवाल के पत्र का जवाब देते हुए संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने कहा, ‘हम हर दौर की बातचीत में सरकार से लगातार मांग करते रहे हैं कि वह इन कृषि क़ानूनों को वापस ले। जबकि सरकार इसे इस तरह पेश कर रही है कि जैसे हम इन क़ानूनों में संशोधन की मांग कर रहे हैं।’ किसान नेताओं ने अगले दौर की बातचीत के लिए 29 दिसंबर को 11 बजे का वक़्त सुझाया है। इससे पहले कई दौर की बातचीत बेनतीजा हो चुकी है।
किसान नेताओं का कहना है कि आंदोलन शुरू होने के बाद से अभी तक 40 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें से अधिकतर की मौत का कारण ठंड है।
फायदे बताने में जुटी सरकार
दूसरी ओर, कृषि क़ानूनों को लेकर बीजेपी और मोदी सरकार देश भर में लोगों के बीच पहुंच रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर तमाम नेता अलग-अलग जगहों पर किसानों को कृषि क़ानूनों के बारे में बता रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को किसानों को संबोधित किया और कई राज्यों के किसानों से बात की।
किसानों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, ‘किसानों को फसल बेचने के लिए बाज़ार मिलना चाहिए। सरकार ने मंडियों को ऑनलाइन किया है। आज देश में 10 हज़ार से ज़्यादा किसान उत्पादक संघ को मदद दी जा रही है। देश भर में कोल्ड स्टोरेज बनाने के लिए सरकार करोड़ों रुपये ख़र्च कर रही है।’
उन्होंने कहा कि सरकार किसानों के दरवाजे तक पहुंची है। छोटे किसानों को सरकार बिजली और गैस के मुफ़्त कनेक्शन के साथ ही आयुष योजना के तहत पांच लाख रुपये का मुफ़्त इलाज भी दे रही है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली के द्वारका में आयोजित कार्यक्रम में आंदोलनकारी किसानों से कहा कि नए कृषि क़ानूनों को एक साल के लिए लागू होने दें, अगर ये किसानों के लिए फ़ायदेमंद नहीं होते हैं तो हम इनमें संशोधन के लिए तैयार हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने भी इन क़ानूनों को किसानों के हक में बताया।
किसान को डर है कि नए कृषि क़ानूनों के जरिये उसकी ज़मीन पर कॉरपोरेट्स का कब्जा हो जाएगा, इसलिए वह दिन-रात ठंड में धरने पर बैठा है। और बार-बार कह रहा है कि चाहे जान चली जाए इन क़ानूनों को हटाए बिना वह यहां से नहीं जाएगा। बारी अब सरकार की है कि वह इस बात को समझे बजाए इसके कि किसानों को यह बताया जाए कि ये कृषि क़ानून उसके फ़ायदे में हैं और वह बिचौलियों से आज़ाद हो जाएगा। किसान की आशंका, किसान का डर अपनी जगह वाजिब है क्योंकि वह नहीं चाहता कि उसकी ज़मीन पर कोई पांव भी रखे।
खेती में कॉरपोरेट्स की घुसपैठ, मंडियों के ख़त्म होने की आशंका, एमएसपी, पराली और बिजली अध्यादेश के अलावा किसानों की आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं से अन्नदाता बुरी तरह डरा हुआ है, लेकिन सरकार और बीजेपी इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं।
सिर्फ़ पंजाब का आंदोलन!
बीजेपी ने अपनी पूरी ताक़त ये साबित करने में लगाई हुई है कि देश के दूसरे राज्यों में किसानों का आंदोलन नहीं हो रहा है और यह आंदोलन सिर्फ़ पंजाब के किसानों का है। इसे खालिस्तान समर्थकों से लेकर वामपंथियों का आंदोलन बताने तक के बयान बीजेपी के आला नेताओं की ओर से आ चुके हैं।
किसान आंदोलन पर देखिए वीडियो-
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