सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म फ़ेसबुक पर बेहद गंभीर आरोप लगे हैं। ताजा विवाद इस आरोप को लेकर है कि मुसलिम विरोधी सामग्री डालने और आरएसएस की ओर से मुसलमानों के ख़िलाफ़ प्रचार चलाने की जानकारी इस सोशल मीडिया कंपनी को थी, लेकिन उसने इसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया।
फ़ेसबुक की पूर्व कर्मचारी फ्रांसिस हॉजन ने अमेरिकी के सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज कमीशन को यह जानकारी दी है। हॉजन ने फेसबुक में काम करते हुए दसियों हज़ार फाइलों को कॉपी कर अपने पास रख लिया और बाद में उन्हें इस कमीशन व अमेरिकी कांग्रेस को सौंप दिया।
गंभीर आरोप
हॉजन ने फ़ेसबुक की इन अंदरूनी फ़ाइलों के आधार पर कहा है कि कंपनी को भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े संगठनों, समूहों और लोगों की ओर से मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने वाली सामग्री इस सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म पर डालने की जानकारी थी।
हॉजन ने कहा,
“
मुसलमानों को अमानवीय करने, उनकी तुलना कुत्तों और सूअरों से करने और यह ग़लत जानकारी कि क़ुरान में अपने ही परिवार की महिलाओं के साथ बलात्कार करने को कहा गया है, पोस्ट किए गए थे।
फ्रांसिस हॉजन, पूर्व कर्मचारी, फ़ेसबुक
क्यों नहीं लगाई रोक?
उन्होंने कहा कि इस तरह के कन्टेन्ट पर रोक नहीं लगाई गई क्योंकि हिन्दी व बांग्ला जैसी भाषाओं के क्लासीफायर्स पर्याप्त तादाद में नहीं थे। क्लासीफ़ायर उस अलगोरिदम को कहा जाता है जो नफ़रत फैलाने वाली सामग्री का पता लगाता है।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा राजनीतिक कारणों से भी आरएसएस को उस समूह में वर्गीकृत नहीं किया गया, जिसके तहत उसे नफ़रत फैलाने वालों की श्रेणी में डाला जा सकता था।
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हॉजन ने यह भी कहा है कि भारत को 'शून्य टीयर' में रखा गया है। इसका मतलब यह कि इसकी सामग्री पर नज़र सिर्फ उस समय रखी जाएगी जब वहां चुनाव होंगे।
अमेरिका और ब्राज़ील को भी इसी श्रेणी में रखा गया है। लेकिन हेट स्पीच पर नज़र रखने के लिए जो संसाधन हैं, उसका 87 प्रतिशत इस्तेमाल सिर्फ अमेरिका में होता है।
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इंस्टाग्राम पर आरोप
पर्यवेक्षकों का कहना है कि इसकी वजह यह है कि अमेरिका में नियम क़ानून कड़े हैं और वहां हेट स्पीच को लेकर प्रशासन सख़्त रहता है, जबकि भारत में इस ओर बहुत ध्यान नहीं दिया जाता है।
फ़ेसबुक पर इससे भी अधिक गंभीर आरोप लगे हैं। अमेरिकी टेलीविज़न सीबीएस के अनुसार, फ़ेसबुक को 2019 में यह पता था कि मानव तस्करी में इंस्टाग्राम का इस्तेमाल हो रहा है, पर उसने इसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया।
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इसी तरह 2020 में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने के बाद कैपिटल हिल पर हुई हिंसा के समय भी ग़लत जानकारी फैलाने मे फ़ेसबुक का इस्तेमाल हुआ था और कंपनी उस पर भी चुप रही थी।
फ़ेसबुक की इस पूर्व कर्मचारी ने अमेरिकी कांग्रेस से कहा कि इन सब कारगुजारियों की ज़िम्मेदारी चीफ़ एग्ज़क्यूटिव ऑफ़िसर यानी सीईओ मार्क ज़करबर्ग पर ही है, पर उन्हें कोई ज़िम्मेदार नही ठहरा रहा है।
मार्क जकरबर्ग ने इन तमामों आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कर्मचारियों को चिट्ठी लिखी है। उन्होंने इस चिट्ठी में नफ़रती सामग्री को बढ़ावा देने, किशोरों की सुरक्षा खतरे में डालने के आरोपों से इनकार किया है।
ठप क्यों रहा फ़ेसबुक?
याद दिला दें कि सोमवार की रात लगभग छह घंटे तक फ़ेसबुक, वॉट्सऐप और इंस्टाग्राम बंद पड़े हुए थे। यह कारण बताया गया था कि डोमेन नेम सिस्टम में गड़बड़ी के कारण ऐसा हुआ था। पर्यवेक्षकों का कहना था कि अलगोरिदम बदलने के कारण यह गड़बड़ी हुई थी।
उसके बाद फ़ेसबुक के कामकाज पर सवाल उठे थे।
फ़ेसबुक पर पहले भी आरोप लग चुके हैं कि उसने सत्तारूढ़ दल बीजेपी के एक विधायक के हेट स्पीच को जानबूझ कर नहीं हटाया था क्योंकि तत्कालीन पब्लिक पॉलिसी डाइरेक्टर आंखी दास ने कहा था कि ऐसा करने से कंपनी के सरकार के साथ रिश्ते खराब होंगे और उसके व्यवसाय पर असर पड़ेगा।
आंखी दास का वह आंतरिक मेल भी सामने आया था जिसमें उन्होंने कहा था कि किस तरह उन्होंने नरेंद्र मोदी को आगे बढ़ाया और वे भारत के प्रधानमंत्री बने।
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