भारत में जिन वैक्सीन को दुनिया में सबसे सस्ती वैक्सीनों में से एक बताया जा रहा है उनकी क़ीमतों पर विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया और भारत बायोटेक की वैक्सीन की ज़्यादा क़ीमतें वसूली जा रही हैं। जबकि दोनों कंपनियों की ओर से कहा जा रहा है कि वे सरकार को मामूली क़ीमतों पर वैक्सीन उपलब्ध करा रहे हैं क्योंकि वे भी अपनी ज़िम्मेदारी समझते हैं। लेकिन वे यह भी कह रहे हैं कि आम लोगों के लिए वे क़ीमतें क़रीब 1000 रुपये वसूलेंगे। इसी क़ीमत को लेकर पहली बार सवाल उठा, लेकिन बाद में सरकार को जिस क़ीमत पर वैक्सीन मुहैया कराई जा रही है उस पर भी सवाल उठे।
सरकार की ओर से सीरम इंस्टीट्यूट को जब कोविशील्ड की पहली खेप के लिए 1.10 करोड़ वैक्सीन का ऑर्डर दिया गया तो हर वैक्सीन के लिए 200 रुपये क़ीमत वसूली गई। जीएसटी के अलग से 10 रुपये जोड़े गए। सीरम इंस्टीट्यूट ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका कंपनी द्वारा विकसित वैक्सीन तैयार कर रहा है। ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका कंपनी द्वारा विकसित वैक्सीन को ही यूरोप में प्रति डोज 1.78 यूरो यानी क़रीब 160 रुपये में बेचा गया है।
न्यूज़ पोर्टल 'पोलिटिको' ने बेल्जियम की समाचार वेबसाइट एचएलएन के हवाले से ख़बर दी है कि बेल्जियम के बजट स्टेट सेक्रेटरी ईवा डी ब्लीकर ने गुरुवार को यूरोपीय संघ द्वारा खरीदे गए प्रत्येक टीके की क़ीमत के साथ एक टेबल को ट्वीट किया। हालाँकि, बाद में ट्वीट को हटा दिया गया। लेकिन वेबसाइट ने इसकी स्क्रीनशॉट को प्रकाशित कर दिया।
इसी आधार पर तुलना कर कहा जा रहा है कि जब बेल्जियम में ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन क़रीब 160 रुपये की पड़ रही है तो भारत सरकार को 200 रुपये की क्यों पड़ रही है। कहा तो यह जा रहा है कि क़ायदे से बेल्जियम में इसकी क़ीमत भारत से ज़्यादा होनी चाहिए थी।
भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को लेकर भी ऐसे ही सवाल उठाए जा रहे हैं। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार कोवैक्सीन के एक डोज की सरकारी ख़रीद 295 रुपये की पड़ रही है। वह भी तब जब इस वैक्सीन को क्लिनिकल ट्रायल मोड में अनुमति दी गई है क्योंकि तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल के आँकड़े के बिना ही इसके आपात इस्तेमाल को मंजूरी दी गई है।
बता दें कि कोवैक्सीन पर विवाद के बाद 'द इंडियन एक्सप्रेस' से बातचीत में एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा था, 'यह बैक-अप की तरह है। अगर हमें लगता है कि केस नहीं बढ़ रहे हैं तो हम अगले महीने की शुरुआत में भारत बायोटेक का डेटा आने तक सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन का ही इस्तेमाल करेंगे। यदि वह डेटा पर्याप्त रूप से ठीक पाया जाता है तो सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन की तरह ही स्वीकृति मिल जाएगी। परोक्ष रूप से सुरक्षा प्रोफ़ाइल को देखते हुए यह (कोवैक्सीन) एक सुरक्षित टीका है, हालाँकि हम नहीं जानते कि यह कितना प्रभावशाली है।'
इन्हीं विवादों के बीच वैक्सीन पर सवाल उठाए जा रहे हैं। 'टीओआई' के अनुसार, दवाओं के क्षेत्र में काम करने वाले एक एनजीओ ऑल-इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क के एस श्रीनिवासन ने कहा, 'सरकार को बेहतर क़ीमत के लिए बातचीत करनी चाहिए थी और सभी को मुफ्त में वैक्सीन की पेशकश करनी चाहिए थी। लागत लगभग 100 रुपये होनी चाहिए, जो कि इस पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं के साथ होती है। छोटा मार्जिन लेकर भी चलें तो वे संभवतः 60-60 रुपये ज़्यादा भुगतान कर रहे हैं।'
सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा सरकार को 200 रुपये में दी जाने वाली वैक्सीन की क़ीमत खुले बाज़ार में 1000 रुपये रखने पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
टीओआई के अनुसार, सार्वजनिक स्वास्थ्य में विशेषज्ञता प्राप्त वकील लीना मेंघेनी ने कहा, 'सरकार उत्पादन की लागत, लाइसेंस की शर्तों और इस तरह के विवरण के मामले में कंपनियों से पारदर्शिता की माँग कर सकती है। लाभ मार्जिन अनुचित नहीं हो सकता है- सार्वजनिक क्षेत्र की क़ीमत के चार से पाँच गुना ज़्यादा।'
बता दें कि सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला ने कहा था, 'हमने पहली 1 करोड़ कोरोना वैक्सीन को विशेष दाम 200 रुपये प्रति डोज में दिया। भारत सरकार ने इसके लिए हमसे गुजारिश की थी कि वह आम लोगों, ग़रीबों और स्वास्थ्य कर्मियों की मदद करना चाहती है। इसके बाद हम खुला बाज़ार में टीके को 1000 रुपये प्रति डोज के हिसाब से बेचेंगे।'
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