दिल्ली में लगातार दो विधानसभा चुनाव में शून्य पर सिमटी कांग्रेस पार्टी को आगे का रास्ता समझ नहीं आ रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के पास स्थायी अध्यक्ष तक नहीं है। पार्टी के नेताओं के लाख मनाने के बाद भी राहुल अध्यक्ष बनने के लिये तैयार नहीं हैं और सोनिया गाँधी की लगातार अस्वस्थता के बाद सवाल यह है कि पार्टी कैसे चलेगी? दिल्ली में क़रारी हार के बाद देश भर में पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर बुरा असर पड़ा है और पार्टी के सामने नया अध्यक्ष चुनने से लेकर बूथ स्तर तक संगठन को फिर से खड़ा करने सहित कई चुनौतियां हैं। इन्हीं चुनौतियों को लेकर अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने पूर्व सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित से बातचीत की है।
‘बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा’
संदीप दीक्षित ने अख़बार के साथ बातचीत में कहा कि पार्टी के सामने सबसे बड़ा संकट नेतृत्व का है। उन्होंने पार्टी नेताओं पर नया अध्यक्ष चुनने में नाकाम रहने का आरोप लगाया। संदीप ने कहा कि पार्टी नेता इस बात से डरते हैं कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा। दीक्षित ने कहा कि पार्टी में 6-8 नेता ऐसे हैं जो पार्टी का नेतृत्व कर सकते हैं।
दीक्षित ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर हमला बोलते हुए कहा कि कभी-कभी आप निष्क्रियता को पसंद करते हैं क्योंकि आप नहीं चाहते कि कुछ होना चाहिए।
दीक्षित ने कहा, ‘हमारे वरिष्ठ नेताओं को आगे आना चाहिए, जो राज्यसभा में हैं, पूर्व मुख्यमंत्री रहे हैं, कुछ वर्तमान में मुख्यमंत्री हैं, उन्हें पार्टी को आगे ले जाना चाहिए।’ कांग्रेस नेता ने कहा, ‘अमरिंदर सिंह, अशोक गहलोत, कमलनाथ, ये लोग साथ क्यों नहीं आते। ए.के.एंटनी, पी. चिदंबरम, सलमान खुर्शीद, अहमद पटेल, इन लोगों ने कांग्रेस के लिये बहुत काम किया है और इन सभी के पास 4-5 साल बचे हैं, ऐसे में उन्हें बौद्धिक रूप से पार्टी का सहयोग करना चाहिए। ये लोग नेताओं के चयन में भी पार्टी की मदद कर सकते हैं।’
दीक्षित ने कहा कि हमें राहुल गाँधी के अध्यक्ष न बनने के फ़ैसले का स्वागत करना चाहिए। उन्होंने याद दिलाया कि किस तरह भूपेंद्र सिंह हुड्डा और शीला दीक्षित को राज्यों का नेतृत्व करने के लिये लाया गया था। उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि पार्टी अपने अच्छे नेताओं का इस्तेमाल ही नहीं करेगी।
‘फ़ैसला लेने से डरते हैं’
दीक्षित ने राहुल के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़े को लेकर कहा, ‘किसी नेता पर उंगली उठाना आसान है। लेकिन बाक़ी 30, 40 और 50 नेता क्या कर रहे हैं। यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप लोगों को जोड़ें, लोगों को साथ लायें और कांग्रेस का नया अध्यक्ष चुनें। यह दिखाता है कि हम किसी भी स्तर पर कोई भी फ़ैसला लेने से डरते हैं, इसका मतलब यह है कि क्या कांग्रेस में नेता नहीं हैं, हमारे पास नये लोग नहीं हैं।’
पूर्व सांसद ने कहा, ‘सोनिया गाँधी पार्टी के काम के लिये वापस लौटीं लेकिन दूसरे लोग ऐसा क्यों नहीं कर रहे हैं। वे लोग आर्टिकल लिखते हैं, किताबें लिखते हैं, बैठकों और कॉन्फ़्रेंस में फुसफुसाते हैं क्या आप में हिम्मत नहीं है कि आप साथ आएं और कुछ करें। आप किस बात से डरते हैं, राज्य सभा सीट जाने से, इनमें से कई लोग तीन से चार बार राज्यसभा जा चुके हैं। कई लोग राज्य सभा सांसद के अलावा कुछ नहीं बन सकते। क्या वे पार्टी को कुछ नहीं दे सकते।’
अख़बार की ओर से यह पूछे जाने पर कि क्या पार्टी नेता अपने बीच में से ही किसी को अध्यक्ष नहीं बनते देखना चाहते, दीक्षित ने कहा, ‘तो कौन अध्यक्ष बनेगा, बीजेपी, सीपीएम और मॉरीशस से? आपमें से ही अध्यक्ष बनेगा या आप यह सोचते हैं कि आप इस योग्य नहीं हैं। फिर आप कहिये कि आप कांग्रेस कार्यसमिति, राज्यसभा में जाने लायक नहीं हैं, मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष बनने लायक नहीं हैं।’
थरूर ने किया समर्थन
दीक्षित के बयान पर पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने प्रतिक्रिया दी है। थरूर ने कहा है कि जो बात संदीप दीक्षित ने खुलकर कही है, वही बात पूरे देश भर से पार्टी के नेता दबी-छुपी जबान में कह रहे हैं और इनमें वे लोग भी शामिल हैं जो पार्टी में जिम्मेदार पदों पर बैठे हैं। थरूर ने कहा कि वह कांग्रेस कार्यसमिति से फिर से अपील करते हैं कि वह कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार करने के लिये और मतदाताओं को प्रेरित करने के लिये नेतृत्व का चुनाव कराये।कब मिलेगा नया अध्यक्ष?
दीक्षित से पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने भी पार्टी को असहज करने वाले सवाल खड़े किये थे। दिल्ली में हार के बाद जिस तरह केजरीवाल को बधाई देने को लेकर पार्टी नेता आपस में भिड़े उससे निश्चित तौर पर पार्टी की छीछालेदार हुई है। पार्टी को अगर बीजेपी के सामने चुनौती पेश करनी है और अपने सहयोगियों के सामने भी सियासी प्रतिष्ठा बचानी है तो सबसे पहले उसे स्थायी अध्यक्ष के चयन के मसले को सुलझाना होगा क्योंकि पार्टी का अध्यक्ष न होने के कारण विरोधी दल भी उस पर सवाल उठाते हैं कि देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल के पास गाँधी-नेहरू परिवार के अलावा कोई नेता ऐसा नहीं है जो पार्टी के अध्यक्ष की कुर्सी को संभाल सके। ऐसी स्थिति में कांग्रेस लुंज-पुंज और दिशाहीन दिखाई देती है। दीक्षित के सवालों के बाद क्या पार्टी अध्यक्ष के चयन के मसले पर आगे बढ़ेगी?
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