सीबीआइ निदेशक आलोक वर्मा को पद से हटाए जाने के बावजूद यह विवाद थम नहीं रहा है और नई-नई जानकारियाँ सामने आ रही हैं, जो देश की प्रतिष्ठित संस्थानों के कामकाज पर सवालिया निशान लगाती हैं और नरेंद्र मोदी सरकार की मंशा पर अंगुलियाँ उठाती हैं। वर्मा ने मुख्य सतर्कता आयुक्त पर गंभीर आरोप लगाए हैं और सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा है कि सीवीसी के. वी. चौधरी ने राकेश अस्थाना के मामले में पंच की भूमिका निभाने और सीबीआई के इस आला अफ़सर को बचाने की कोशिश की थी।
'अस्थाना के अप्रेज़ल को लेकर चिंतित'
इंडियन एक्सप्रेस ने रेजिडेंट एडिटर सीमा चिश्ती की एक ख़बर छापी है जो इस पूरे मामले में कई चौकाने वाले तथ्य सामने रखती है।ख़बर के मुताबिक़, पूर्व सीबीआई निदेशक ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस ए. के. पटनायक को दिए लिकित सबमिशन में अपना पक्ष रखा। इसमें उन्होंने लिखा कि चौधरी ने उनसे उनके घर पर मुलाक़ात की और पंच बन कर मामले को सुलझाने की कोशिश की ताकि राकेश अस्थाना को बचाया जा सके। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अस्थाना के कामकाज की सालाना समीक्षा (एनुअल अप्रेज़ल) पर प्रतिकूल टिप्पणी न की जाए। उन्होंने 23 अक्टूबर की रात हुई इस बैठक का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने अपनी टिप्पणी में इसका उल्लेख किया था। उन्होंने यह सबमिशन दूसरे दो सतर्कता आयुक्त टी. एम. भसीन और शरद कुमार को भी दिया था। वर्मा ने इससे भी अधिक गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि सीवीसी चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी 59 पेज की रिपोर्ट में इस सबमिशन का ज़िक्र तक नहीं किया था। सीवीसी की रिपोर्ट के आधार पर ही वर्मा के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई थी। उन्हें अंत में पद से हटाने का निर्णय भी उस रिपोर्ट के आधार पर ही किया गया था।यह भी पढ़ें: किन वजहों से हटना पड़ा आलोक वर्मा को?
तथ्यों से छेड़छाड़ का आरोप
बात यहीं ख़त्म नहीं हुई। सीबीआई के पूर्व निदेशक ने मुख्य सतर्कता आयुक्त पर इससे भी अधिक संगीन आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा है कि चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट को दी अपनी रिपोर्ट में तथ्यों को ग़लत ढंग से पेश किया, बैठक की कार्यवाही के रेकर्ड में छेड़छाड़ की और उनकी शिकायत की जाँच करने के बजाय पंच बन कर मामले को सुलटाने की कोशिश की। वर्मा ने आगे बढ़ कर जो आरोप लगाए हैं, वे और भी ख़तरनाक हैं। उन्होंने कहा है कि जब उन्होंने पाया कि जस्टिस ए. के. पटनायक उस कमरे में मौजूद थे तो उन्होंने राहत की सांस ली क्योंकि वे जानते थे कि सीवीसी का मूल मक़सद अस्थाना को किसी तरह बचाना था।वर्मा ने अपने सबमिशन में लिखा है कि वे यह देख कर ठगा सा महसूस करने लगे कि किस तरह सीवीसी के कुछ लोग एक व्यक्ति विशेष को बचाने के लिए किस हद तक जा सकते हैं और तमाम नियम क़ानूनों को ताक पर रख कर उसे बचाने की कोशिश में क्या कुछ कर सकते हैं।
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