इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के जरिए मतदान को लेकर पेश किए गए तर्कों पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सवाल उठाय़ा। अदालत ने कहा- निजी आंकड़े ईवीएम पर अविश्वास का आधार नहीं हो सकते। याचिकार्ताओं ने सीएसडीएस डेटा के आधार पर कहा कि ज्यादातर मतदाता ईवीएम पर भरोसा नहीं करते। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) के साथ ईवीएम वोटों के 100 फीसदी सत्यापन की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। यह सुनवाई गुरुवार को भी होगी।
लाइव लॉ के मुताबिक अदालत ने दलील पेश करने वाले वकील प्रशांत भूषण से डेटा के स्रोत के बारे में पूछा। इस पर प्रशांत भूषण ने जवाब दिया कि यह सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (सीएसडीएस) द्वारा आयोजित एक सर्वे है, इस पर जस्टिस दत्ता ने कहा, “इस निजी सर्वे पर यकीन न करें।”
जस्टिस खन्ना ने कहा- ''इस तरह का तर्क मंजूर नहीं किया जा सकता। क्योंकि इसके बारे में कोई डेटा नहीं है। किसी प्राइवेट सर्वे से ऐसा पता नहीं चल पाएगा। यह संभव है कि कोई और इसके विपरीत जनमत संग्रह कराएगा। हम लोग उस सब में न जाएं।”
जस्टिस दत्ता ने कहा, “यह एक बहुत बड़ा काम है। किसी भी यूरोपीय देश के लिए इसका संचालन करना संभव नहीं है। जर्मनी और अन्य देशों की तुलना न करें। भूषण ने जर्मनी की आबादी के बारे में जो कहा, उससे अधिक आबादी मेरे गृह राज्य पश्चिम बंगाल की है। बहुत छोटा राज्य है... हमें किसी पर कुछ भरोसा रखना होगा। बेशक, जवाबदेही है।...लेकिन इस तरह सिस्टम को गिराने की कोशिश न करें।''
लाइव लॉ के मुताबिक जस्टिस खन्ना ने ईवीएम लागू होने से पहले बैलेट पेपर का दौर याद दिलाया। उन्होंने कहा- “हमने देखा है कि पहले क्या होता था। क्या आप यह भूल गये? यदि आप यह भूल गए हैं तो मुझे माफ करें, मैं नहीं भूला हूँ।” भूषण ने हैरानी जताते हुए पूछा कि क्या यह बूथ कैप्चरिंग की बात है, जिसका आप जिक्र कर रहे हैं। इस पर जस्टिस खन्ना ने कहा, 'बूथ कैप्चरिंग के बारे में भूल जाइए। क्या होता था जब मतपत्र होते थे...वैसे भी। ठीक है, बहस में न पड़ें।”
इस दौरान ईवीएम का निर्माण सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (पीएसयू) द्वारा करने की बात भी उठाई गई। इस पर अदालत ने कहा- “अगर यह प्राइवेट कंपनी द्वारा किया जाता है, तो क्या आप खुश हो जाते? ... यदि प्राइवेट कंपनी बना रही होती, तो आप यहां आते और कहते कि इसे प्राइवेट कंपनी द्वारा नहीं बनाया जाना चाहिए।“
लाइव लॉ के मुताबिक अदालत ने कहा- ''हमें इसकी जांच करनी है कि ईवीएम ठीक से काम कर रही हैं या नहीं, हमें डेटा के आधार पर जाना होगा। इस संबंध में कि किसी विशेष वर्ष में डाले गए वोटों की कुल संख्या साल-दर-साल कितनी है और क्या उन्होंने बाद में गिने गए वोटों की कुल संख्या के साथ इसका मिलान किया है, कितने मामलों में विसंगतियां थीं? कितने मामलों में उम्मीदवारों द्वारा पर्चियों की गिनती के अनुरोध पर अंततः कार्रवाई की गई? उसमें कितनी विसंगतियां पाई गईं? इससे हमें सही तस्वीर मिलेगी कि क्या ईवीएम में हेरफेर किया जा रहा है या हेरफेर की संभावना है या नहीं। वो डेटा वे उपलब्ध कराएंगे। हम उनसे वह डेटा मांगेंगे।” सुनवाई गुरुवार को जारी रहेगी।
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