अभी तक तो देश में कई राज्यों की विधानसभाओं में नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में प्रस्ताव लाये जा रहे थे। लेकिन अब यूरोप की संसद में भी इसके विरोध में प्रस्ताव लाया गया है। इस प्रस्ताव में नागरिकता क़ानून को ‘भेदभाव पर आधारित’ और ‘ख़तरनाक रूप से विभाजन’ करने वाला बताया गया है। प्रस्ताव में भारत सरकार से मांग की गई है कि वह इस क़ानून के विरोध में प्रदर्शन कर रहे आंदोलनकारियों से बात करे और इस क़ानून को वापस लिये जाने की उनकी मांग को सुने। प्रस्ताव सोशल और डेमोक्रेट सांसदों की ओर से लाया गया है। प्रस्ताव को 24 देशों के 154 सांसदों का समर्थन मिला है। बताया जा रहा है कि 29 जनवरी को इस पर चर्चा हो सकती है और 30 जनवरी को इस पर वोटिंग होने की संभावना है।
प्रस्ताव में आरोप लगाया गया है कि इस क़ानून में भारत की नागरिकता देने के लिये धर्म को आधार बनाया गया है। प्रस्ताव में नागरिकता क़ानून के अलावा नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस को लेकर भी चिंता जताई गई है। कहा गया है कि इससे कई मुसलिम नागरिकों की नागरिकता चली जाएगी।
प्रस्ताव में भारत से अपील की गई है कि वह लोगों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार का समर्थन करे और भारत को कई अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों के लिए उसके संकल्पों की याद दिलाते हुए कहा गया है कि ये संकल्प जाति, रंग, वंश के आधार पर किसी को नागरिकता देने से रोकते हैं। इस प्रस्ताव को तैयार करने वाले सांसदों ने नागरिकता क़ानून की पुरजोर निंदा की है।
नागरिकता संशोधन क़ानून की अमेरिका में भी निंदा की गई है। अमेरिकी संसद में राशिदा और प्रमिला जयपाल की ओर से नगारिकता क़ानून के विरोध में प्रस्ताव लाया गया था हालांकि ये प्रस्ताव पास नहीं हो सके थे। डेमोक्रेट्स ने भी इसे लेकर चिंता जाहिर की थी।
पिछले महीने अमेरिका के विदेश विभाग ने भारत को नसीहत देते हुए कहा था कि वह संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करे। इसके अलावा ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक कॉपरेशन (ओआईसी) ने भी इस क़ानून को लेकर चिंता जताई थी और कहा था कि यह भारतीय मुसलमानों के साथ भेदभाव करने वाला है। इस क़ानून के विरोध में दुनिया में कई जगहों पर प्रदर्शन हुए हैं।
अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग यानी यूएससीआईआरएफ़ ने भारत सरकार द्वारा नागरिकता विधेयक को संसद में लाये जाने पर कहा था कि यह विधेयक 'ग़लत दिशा में एक ख़तरनाक मोड़' है। यूएससीआईआरएफ़ ने कहा था कि यह भारत के धर्मनिरपेक्ष बहुलवाद और भारतीय संविधान के उस समृद्ध इतिहास के ख़िलाफ़ है, जो आस्था की परवाह किए बिना समानता की गारंटी देता है।’
भारत में विपक्षी दलों की कुछ राज्य सरकारों ने इस क़ानून के विरोध में अपनी विधानसभाओं में प्रस्ताव पास किया है। केरल, छत्तीसगढ़ की सरकार ने इस क़ानून के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है।
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