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मस्क के DOGE की कॉस्ट-कटिंग पड़ेगी भारतीय IT कंपनियों पर भारी? 

अमेरिका में डॉनल्ड ट्रम्प के दूसरी बार राष्ट्रपति बनते ही और कुछ भले ही न हुआ हो, एलन मस्क की तूती जरूर बोलने लगी है। मस्क की इस तूती की कीमत इन्फोसिस, टीसीएस, विप्रो जैसी भारतीय कंपनियों को चुकाना पड़ सकता है। इन कंपनियों को तगड़ा झटका लग सकता है। कैसे?
मामला कुछ यूं है कि एलन मस्क को ट्रम्प ने DOGE यानी डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी की कमान सौंपी है। इस विभाग का मकसद है सरकारी खर्चों में कटौती करना, साथ ही कामकाज को बेहतर बनाना। यानि सीधे सरल शब्दों में कहें तो कॉस्ट कटिंग करना।  मस्क के विभाग की इसी कॉस्ट कटिंग वाली खासियत ने भारतीय आई टी कंपनियों की नींद उड़ा दी है। 
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अमेरिका भारत की आई टी कंपनियों का सबसे बड़ा बाजार है। भारत की आई टी कंपनियां बहुत हद अमेरिकी प्रोजेक्ट्स पर निर्भर रहती हैं। इन प्रोजेक्ट्स से ही भारत की अधिकांश आई टी कंपनियों मसलन नारायण मूर्ति वाली इन्फोसिस, टीसीएस, एच सी एल, विप्रो इत्यादि अपना ग्रोथ चार्ट तैयार करती हैं।
साल 2025 की शुरुआत ही खराबः 2025 का साल इन भारतीय आईटी कंपनियों के लिए पहले ही मुश्किल भरा रहा है। शेयर बाजार में गिरावट देखने को मिली है। भारतीय आईटी इंडेक्स इस साल 15.3% तक लुढ़क चुका है। माना जा रहा है कि जून 2022 के बाद ये सबसे खराब तिमाही हो सकती है। शेयर बाज़ार की इस तबाही में टीसीएस, इन्फोसिस, विप्रो और एचसीएल टेक जैसे दिग्गजों के शेयरों में 11.2% से 18.1% की गिरावट दर्ज की गई है।"
अमेरिका में सरकारी खर्चों में कटौती का मतलब है कि क्लाइंट्स नए प्रोजेक्ट्स पर पैसा खर्च करने से बच रहे हैं। बजट में बढ़ोतरी नहीं हो रही, और इसका असर टीसीएस, इन्फोसिस जैसी कंपनियों पर पड़ रहा है। ये सिलसिला आगे भी जारी रह सकता है।
इस बाबत रॉयटर्स की एक रिपोर्ट भी आई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक आईटी दिग्गज कंपनी एक्सेंचर पहले ही मस्क के विभाग DOGE की कॉस्ट कटिंग का शिकार हो गई है। इस कंपनी की तिमाही रिपोर्ट ने साफ कर दिया है कि मांग में कमी और विवेकाधीन खर्च यानी डिस्क्रेशनरी स्पेंडिंग में गिरावट आ रही है। डिस्क्रेशनरी स्पेंडिंग का मतलब उन खर्चों से होता है जो आवश्यक नहीं होते, बल्कि व्यक्ति या सरकार की पसंद और प्राथमिकताओं के आधार पर किए जाते हैं। ये खर्च आम तौर पर मनोरंजन, यात्रा, लक्ज़री सामान, और गैर-जरूरी सेवाओं पर होते हैं।
हाल ही में, एक्सेंचर की सीईओ जूली स्पेलमैन स्वीट ने निवेशकों को सूचित किया कि सरकारी खर्च में कटौती के कारण कंपनी की बिक्री और राजस्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। ​उनका कहना था कि “अमेरिकी सरकार की कॉस्ट कटिंग नीतियों की वजह से कुछ अनुबंध रद्द किए गए हैं, जिससे कंपनी के राजस्व में कमी आई है।“
गौरतलब है कि एक्सेंचर ने चालू वित्त वर्ष के राजस्व अनुमान  को घटाकर 5-7% कर दिया है। इन घटनाओं का प्रभाव भारतीय आईटी कंपनियों पर भी पड़ने की संभावना इसलिए जताई जा रही है क्योंकि भारतीय कंपनियां मुख्यतः अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं। उदाहरण के लिए, इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो जैसी कंपनियों का 60% से अधिक राजस्व अमेरिका से आता है।
इस बात पर भारतीय कंपनियों में खलबली मची हुई है। वे आने वाले समय कॉ लेकर सुनिश्चित नहीं नज़र आ रहे हैं। इस पर HDFC सिक्योरिटीज के डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट अमित चंद्रा का कहना है, 'पिछले दो महीनों में जो कुछ हुआ, उसने वित्त वर्ष 2025-26 की पहली छमाही को और अनिश्चित बना दिया है।'

कैसा हो सकता है आने वाला साल?

वहीं शोध कंपनियों का अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष में आईटी कंपनियों की आय में सिर्फ 4% की बढ़ोतरी होगी, जो इस साल जितनी ही है। हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि वैश्विक मंदी में भारतीय कंपनियों की हिस्सेदारी यूं तो कम है पर यह कॉस्ट कटिंग प्रतिस्पर्धा को और बढ़ा सकती है। इसके साथ इस बिन्दु पर भी ध्यान देना होगा कि एलन मस्क की कॉस्ट कटिंग अमेरिका के लिए भले ही फायदेमंद हो, लेकिन भारतीय आईटी सेक्टर के लिए ये चुनौतियां लेकर आई है।
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इन परिस्थितियों में, भारतीय आईटी कंपनियों को सतर्क रहना होगा और संभावित चुनौतियों के लिए तैयार रहना होगा, क्योंकि अमेरिकी सरकारी खर्च में कटौती उनके राजस्व और विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। क्या भारतीय कंपनियां इन चुनौतियों से उबर कर अपने लिए नये मौके और नया बाज़ार तलाश पाएंगी?
रिपोर्टः अणुशक्ति सिंह
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क़मर वहीद नक़वी
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