क्या है फॉर्म 17 सी
फॉर्म 17सी भारतीय चुनावी प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण वैधानिक दस्तावेज है, जो हर मतदान केंद्र पर महत्वपूर्ण विवरण दर्ज करता है। इनमें इस्तेमाल की गई इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की पहचान संख्या, मतदान केंद्र को सौंपे गए पंजीकृत मतदाताओं की कुल संख्या और रजिस्टर (फॉर्म 17 ए) के अनुसार वास्तव में मतदान करने वाले मतदाताओं की कुल संख्या शामिल होती है। इसके अतिरिक्त, यह उन मतदाताओं की संख्या को नोट करता है जिन्होंने रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने के बाद मतदान नहीं करना चुना या नोटा किया। हर ईवीएम में दर्ज किए गए कुल वोट फॉर्म 17सी का भाग II विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें मतगणना के दिन दर्ज किया गया अंतिम गणना डेटा होता है। चुनाव आयोग न तो यह डेटा देना चाहता है, न वेबसाइट पर सार्वजनिक करना चाहता है।
VERY important & concerning:
— Saket Gokhale MP (@SaketGokhale) May 23, 2024
How the Election Commission is OPENLY LYING in the Supreme Court
On the issue of not disclosing total voter turnout (Form 17) data, the SC asked ECI as to why it was not being done in this election.
Note that these numbers have been provided… pic.twitter.com/g5lRXWfEhb
Election Commission :
— Kapil Sibal (@KapilSibal) May 23, 2024
Tells Supreme Court :
No legal mandate to upload Form 17 which is the record of votes polled at a polling station
Truly shocking !
If the votes counted are uploaded why not the votes polled ?
How do we trust such a Commission !
सुप्रीम कोर्ट के सामने फॉर्म 17 C डेटा का खुलासा करने की मांग बड़ी सरल है-
— Congress (@INCIndia) May 23, 2024
1. 17 C जो फॉर्म है, जिसमें दर्ज होता है कि एक पोलिंग स्टेशन में कितने वोट दिए गए
2. कौन सी मशीन, किस सीरियल नंबर वाली कौन से पोलिंग स्टेशन में लगाई है
3. हर मशीन पर कितने वोट पड़े.. ये सारी बातें चुनाव… pic.twitter.com/J9FStfSbvE
फॉर्म 17 सी का मामला वाकई गंभीर है
सुप्रीम कोर्ट के वकील महमूद प्राचा से लेकर सिविल सोसाइटी के तमाम लोगों ने इस संबंध में चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट को लेकर तमाम जानकारियां दी हैं लेकिन बुधवार को चुनाव आयोग का जो हलफनामा आया, उससे साफ हो गया कि चुनाव आयोग तथ्यों को छिपा रहा है। वकील महमूद प्राचा ने रामपुर लोकसभा क्षेत्र से आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। उन्होंने आरोप लगाया कि संबंधित रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ) ने चुनाव संचालन नियम, 1961 (1961 नियम) के तहत उनके निर्वाचन क्षेत्र में डाले गए वोटों के फॉर्म 17सी रिकॉर्ड की प्रतियां उपलब्ध नहीं कराईं।“
फॉर्म 17सी में डेटा का इस्तेमाल उम्मीदवारों द्वारा ईवीएम के कुल वोटों के साथ मिलान करके मतगणना के दिन नतीजे को सत्यापित करने के लिए किया जाता है। इसके बाद, किसी भी गड़बड़ी के मामले में संबंधित हाईकोर्ट में चुनाव याचिका भी दायर की जा सकती है। यानी जिस फॉर्म 17 सी का डेटा इतना महत्वपूर्ण है, चुनाव आयोग उसी को सार्वजनिक करने से बचना चाहता है।
किस वजह से और किसके लिए यह डेटा महत्वपूर्ण है
द हिंदू अखबार की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि एक लोकसभा क्षेत्र में लगभग 2,000-2,200 बूथ होते हैं, इसलिए एक उम्मीदवार को फॉर्म 17सी की कॉपी पाने के लिए हर लोकसभा क्षेत्र में लगभग 6,000 बूथ एजेंटों की जरूरत होती है। कैसे तमाम निर्दलीय या क्षेत्रीय पार्टियों के प्रत्याशी इतनी बड़ी संख्या में बूथ एजेंट नियुक्त कर पाएंगे। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद शक्ति सिंह गोहिल का कहना है कि "इससे पता चलता है कि छोटी पार्टियों और कई निर्दलीय उम्मीदवारों के लिए सभी बूथों पर पोलिंग एजेंट रखना नामुमकिन है।" अगर यह डेटा चुनाव आयोग मुहैया करा देगा तो जो प्रत्याशी साधन संपन्न नहीं हैं, उन्हें भी ये डेटा मिल जाएगा।भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जा रहा है। सात चरणों में होने वाला मौजूदा लोकसभा चुनाव यकीनन इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा चुनाव है। लेकिन लोकतंत्र और इसकी संवैधानिक संस्थाओं की आजादी दांव पर लगी हुई है। भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) की विश्वसनीयता सामने है। एक तरफ तो भारतीय चुनाव प्रक्रिया की स्वतंत्रता और निष्पक्षता देखने के लिए दूसरे देश के चुनाव आयोगों या वहां की संस्थाओं, बड़ी संख्या में विदेशी लोगों को आमंत्रित किया गया है। लेकिन तमाम आरोप कह रहे हैं कि ईसीआई वास्तव में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्था नहीं है। उसकी असलियत सामने आ चुकी है।
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