नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि बेहतर हो कि मातृ भाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का काम 8वीं कक्षा तक किया जाए। पर कक्षा 5 तक तो करनी ही होगी।
संस्कृत पर ज़ोर
यह भी कहा गया है कि संस्कृत की पढ़ाई प्राथमिक से लेकर हर स्तर पर की जाए, इसकी व्यवस्था की जाएगी। यह भी कहा गया है कि संस्कृत की पढ़ाई प्राथमिक से लेकर हर स्तर पर की जाए, इसकी व्यवस्था की जाएगी।दक्षिण भारत को किया आश्वस्त
नई शिक्षा नीति में यह भी जोड़ा गया है कि कोई भाषा किसी पर लादी नहीं जाएगी। यह महत्वपूर्ण इसलिए है कि दक्षिण भारत के लोगों को डर हमेशा सताता रहता है कि उन पर हिन्दी थोपी जाएगी।शिक्षा नीति के मसौदे में इस पर कुछ स्पष्ट नहीं होने के कारण दक्षिण भारत में इसका विरोध हुआ था। अब सरकार ने यह साफ़ कर दिया है कि वह हिन्दी किसी पर थोपने नहीं जा रही है।
5+3+3+4 क्या है?
नई शिक्षा नीति में यह बेहद अहम फ़ैसला किया गया है कि 10+2 पद्धति की जगह 5+3+3+4 कर दिया जाए। इसे हम इस तरह समझ सकते हैं। तीन साल की उम्र से 8 तक फाउंडेशन, 8 से 11 तक प्री-प्राइमरी,11 से 14 तक प्रीपेरेटरी और 14 से 18 तक सेकंडरी।इसकी खूबी यह है कि इसके तहत 3 से 6 साल की उम्र अब तक शिक्षा के दायरे में नहीं आती थी, जबकि यह बच्चों के मानसिक विकास के लिए ज़रूरी है।
बदलेंगी बोर्ड परीक्षाएं
इसके अलावा बोर्ड परीक्षाओं का स्वरूप बदला जाएगा। ये परीक्षाएं 10वीं और 12वीं में अभी की तरह होती रहेंगी, पर उनका स्वरूप बदलेगा।उच्च शिक्षा
अब छात्र चार साल का डिग्री प्रोग्राम, फिर एमए और उसके बाद बिना एम फिल के सीधे पीएचडी कर सकते है। फ़िलहाल डीम्ड यूनविर्सिटी, सेंट्रल यूनिवर्सिटीज और स्टैंडअलोन इंस्टिट्यूशंस के लिए अलग-अलग नियम हैं। नई एजुकेशन पॉलिसी के तहते सभी के लिए नियम समान होगा।
एक अहम बात यह है कि उच्च शिक्षा विभाग ने लक्ष्य निर्धारित किया है कि सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 6% शिक्षा में लगाया जाए। अभी यह 4.43%ही है।
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