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ईडी को ज्यादा पावरः क्या सुप्रीम फैसला बदलेगा?

सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस की बेंच क्या मनी लॉन्ड्रिग कानून में जांच एजेंसियों को असाधारण अधिकार देने के अपने ही फैसले को पलटेगा। पीएमएलए केस में सुनवाई करते हुए जस्टिस (रिटायर्ड) खानविलकर की बेंच ने 27 जुलाई को दिए गए फैसले से ईडी और अन्य जांच एजेंसियों को असाधारण अधिकार मिल गए थे।
कार्ति चिदंबरम ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। चीफ जस्टिस एन वी रमना रिटायर होने से पहले इस मामले में महत्वपूर्ण आदेश दे सकते हैं। उनकी बेंच में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार भी हैं। इसकी सुनवाई बुधवार को हो रही है।

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जस्टिस खानविलकर की बेंच ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम, 2002 में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को दी गई गिरफ्तारी, कुर्की और तलाशी और जब्ती की शक्ति को बरकरार रखा गया था। इसमें ईडी को तमाम तरह की सख्ती करने की छूट दी गई थी।  
हाल ही में, चीफ जस्टिस रमना की अगुआई वाली बेंच ने उस फैसले (27 जुलाई वाले) के बारे में चिंता व्यक्त की थी, क्योंकि यह ईडी को असाधारण परिस्थितियों में मुकदमे से पहले संपत्ति पर कब्जा करने की अनुमति देता है। चीफ जस्टिस ने कहा था कि उक्त निर्णय को पढ़ने के बाद, हमारी राय है कि उपरोक्त प्रावधान को एक उपयुक्त मामले में और अधिक विस्तार की आवश्यकता है, जिसके बिना, मनमाने ढंग से इसके इस्तेमाल की गुंजाइश बची है।
जस्टिस एएम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार की पीठ ने 27 जुलाई के अपने फैसले में पीएमएलए के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था, इसे "अद्वितीय और विशेष कानून" कहा था और ईडी की जांच, गिरफ्तारी की शक्तियों को रेखांकित किया था। कई राजनीतिक दलों ने ईडी को मनमानी पावर देने पर आपत्ति जताई थी।
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पीएमएलए के कुछ प्रावधानों की वैधता और व्याख्या को चुनौती देने वाली 241 याचिकाओं पर पिछला फैसला आया था। खानविलकर ने रिटायर होने से महज एक दिन पहले यह फैसला दिया था। 545 पेज के फैसले के विभिन्न प्रावधान पर ऐतराज उठा था।कई आलोचकों ने तर्क दिया था कि इस फैसले ने ईडी को बेलगाम शक्तियां दीं।

देखना है कि जस्टिस रमना की बेंच अब उस फैसले को पलटती है या उसमें कुछ बदलाव करती है या फिर पूरी तरह निरस्त कर देती है।

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क़मर वहीद नक़वी
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