क्या देश की जाँच एजेंसियां इतनी लापरवाह हो सकती हैं कि वे किसी राज्य के पूर्व मंत्री को देश का पूर्व गृह व वित्त मंत्री बता दें। क्या वे देश की सर्वोच्च अदालत के सामने किसी केस को ले जाते समय इस कदर लापरवाही कर सकती हैं। इस पर भरोसा करना तो आसान नहीं है लेकिन देश की प्रतिष्ठित जाँच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने ऐसा कर दिखाया है।
अंग्रेजी अख़बार ‘द टेलीग्राफ़’ के मुताबिक़, कर्नाटक सरकार के पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के जज उस वक्त हैरान रह गये, जब ईडी ने कांग्रेस नेता को देश का पूर्व वित्त और गृह मंत्री बताया। शिवकुमार को ईडी ने सितंबर में गिरफ़्तार किया था और इन दिनों वह न्यायिक हिरासत में हैं। कांग्रेस नेता पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप है। ईडी डीके शिवकुमार की जमानत रद्द करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट गई थी। दिल्ली हाई कोर्ट ने मनी-लॉन्ड्रिंग मामले में कांग्रेस नेता को जमानत दे दी थी।
मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस फ़ली नरीमन और जस्टिस रविन्द्र भट ने ईडी की याचिका में इस बहुत बड़ी ग़लती को तुरंत पकड़ लिया। माना यह जा रहा है कि ईडी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम के ख़िलाफ़ पूर्व में लगाई गई याचिका में से कुछ हिस्सों को कट और पेस्ट करके डीके शिवकुमार की याचिका में लगा दिया।
जस्टिस नरीमन ने इस ग़लती पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पर नाराज़ होते हुए कहा, ‘यह याचिका पी. चिदंबरम की याचिका से कुछ हिस्सा कट और पेस्ट किये जाने का मामला लगती है और इसमें शिवकुमार को पूर्व वित्त और गृह मंत्री बताया गया है।’ जस्टिस नरीमन ने कहा, ‘यह देश के किसी नागरिक के साथ व्यवहार करने का तरीक़ा नहीं है।’ इसके बाद बेंच ने ईडी की याचिका को खारिज कर दिया।
डीके शिवकुमार की जमानत के ख़िलाफ़ दायर याचिका में ईडी ने लिखा था, ‘अपराध में बेशर्मी के साथ देश के वित्त मंत्री जैसे उच्च पद का दुरुपयोग किया गया था।’ याचिका में यह भी कहा गया था कि अगर शिवकुमार को जमानत मिल जाती है वे भाग सकते हैं। इसमें कहा गया था कि डीके शिवकुमार देश के वित्त और गृह मंत्री रह चुके हैं और यह संभावना है कि वह अपने ख़िलाफ़ हो रही जाँच को बाधित करने के लिए हर साधन का इस्तेमाल करेंगे। हैरानी की बात यह है कि बिलकुल ऐसे ही बयानों को आईएनएक्स मीडिया केस में चिदंबरम के ख़िलाफ़ दायर याचिका में भी आधार बनाया गया था। चिदंबरम भी इन दिनों जेल में हैं। डीके शिवकुमार की ओर से अदालत में हाजिर हुए अभिषेक मनु सिंघवी और मुकुल रोहतगी ने भी जाँच एजेंसी की इस ग़लती पर सवाल उठाया।
जस्टिस नरीमन ने एक और गड़बड़ी के लिए जाँच एजेंसी को दोषी ठहराया। ईडी ने अपनी याचिका में धन शोधन निवारण अधिनियम की कठोर धारा 45 (1) का फिर से उल्लेख कर दिया था जबकि शीर्ष अदालत 2017 में ही इसे असंवैधानिक करार दे चुकी है। जस्टिस नरीमन ने सुनवाई के दौरान कहा कि हमारे फ़ैसलों के साथ न खेला जाए, अपनी सरकार को बताइए कि हम अपने फ़ैसलों के साथ मजबूती से खड़े रहते हैं। जस्टिस नरीमन ने अटार्नी जनरल से कहा कि सबरीमला मंदिर में उनके द्वारा दिए गए फ़ैसले को भी पढ़ लें।
जस्टिस नरीमन ने सबरीमला मंदिर मामले में 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के पिछले फ़ैसले के बाद हुए विरोध-प्रदर्शनों की निंदा करते हुए कहा था कि शीर्ष अदालत का आदेश सभी पर लागू होता है और इसके पालन करने को लेकर कोई विकल्प वाली स्थिति नहीं थी। उन्होंने कहा था कि सरकार को संवैधानिक मूल्यों के पालन के लिए क़दम उठाने चाहिए। जस्टिस नरीमन ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को विफल करने के लिए सुनियोजित प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
अपनी राय बतायें