द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति पद की शपथ ले ली है। उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में कुछ विपक्षी दलों के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को शिकस्त दी थी। देश की आजादी के बाद वह पहली आदिवासी महिला हैं जो इस सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंची हैं। उन्हें सीजेआई एन. वी. रमना ने राष्ट्रपति भवन में शपथ दिलाई। वह देश की 15वीं राष्ट्रपति बनी हैं। शपथ से पहले वह राजघाट पहुंचीं और महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी।
इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू, लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला सहित कई मंत्री और बड़े नेता संसद के सेंट्रल हॉल में मौजूद रहे।
द्रौपदी मुर्मू दूसरी महिला हैं जो इस पद पर पहुंची हैं। इससे पहले प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति बनी थीं।
'प्रत्येक गरीब की उपलब्धि'
शपथ लेने के बाद अपने संबोधन में उन्होंने सभी सांसदों का आभार जताया और कहा कि उन्हें राष्ट्रपति के रूप में एक बड़ी जिम्मेदारी मिली है। मुर्मू ने कहा कि उन्होंने अपना जीवन ओडिशा के छोटे से आदिवासी गांव से शुरू किया था और यह हमारे लोकतंत्र की शक्ति है कि एक गरीब आदिवासी घर में पैदा हुई बेटी भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंची है। उन्होंने कहा कि यह भारत के प्रत्येक गरीब की उपलब्धि है। राष्ट्रपति ने कहा कि गरीब, दलित, पिछड़े समुदाय उनमें अपना प्रतिबिंब देख सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सभी के प्रयास से ही उज्जवल भारत का निर्माण होगा और इस पद पर कार्य करते हुए उनके लिए लोगों के हित सर्वोपरि होंगे।
64.03 प्रतिशत वोट मिले
राष्ट्रपति के चुनाव में 776 सांसद और 4033 विधायक मिलाकर कुल 4809 मतदाता थे। कुल 4,754 वोट पड़े जिनमें से 4,701 वोट वैध पाए गए थे। द्रौपदी मुर्मू को कुल 64.03 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए जबकि यशवंत सिन्हा को 35.97 प्रतिशत वोट मिले थे। द्रौपदी मुर्मू की जीत के बाद बीजेपी व आदिवासी समुदाय ने देश भर में जश्न मनाया था।
चुनाव के प्रचार के दौरान ही ऐसा साफ़ दिखाई दे रहा था कि मुर्मू बड़े अंतर से जीत हासिल करेंगी। क्योंकि एनडीए गठबंधन के अलावा भी तमाम विपक्षी दल उनके समर्थन में आगे आ गए थे। इन दलों में बीएसपी, बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल, तेलुगू देशम पार्टी, जनता दल (सेक्युलर), शिवसेना, झारखंड मुक्ति मोर्चा आदि शामिल थे।
जबकि कुछ विपक्षी दलों के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के साथ कांग्रेस, एनसीपी, टीआरएस, आरजेडी, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल, सपा, एआईएमआईएम, नेशनल कॉन्फ्रेन्स आदि का समर्थन था।
विपक्षी एकता ढही
चुनाव प्रचार के दौरान यह साफ दिखाई दिया कि एनडीए की ओर से द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनाने के बाद विपक्षी एकता ढह गई थी। अब सवाल ये है कि उपराष्ट्रपति के चुनाव में भी क्या विपक्षी एकता भरभरा कर गिर जाएगी। क्योंकि विपक्ष शासित राज्य ओडिशा में सरकार चला रही बीजेडी और तमिलनाडु में सरकार चला रही डीएमके ने एनडीए के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ का समर्थन किया है जबकि पश्चिम बंगाल में सरकार चला रही टीएमसी ने कहा है कि वह वोटिंग में हिस्सा नहीं लेगी और यह विपक्षी एकता में एक बड़ी दरार है।
ऐसे में जब 2024 के लोकसभा चुनाव नजदीक हैं तो राष्ट्रपति के चुनाव से बीजेपी को बूस्ट मिला है जबकि विपक्ष बुरी तरह बंटा हुआ दिखाई दिया है।
कौन हैं द्रौपदी मुर्मू?
द्रौपदी मुर्मू ने भुवनेश्वर के रमा देवी महिला कॉलेज से बी.ए. किया है। द्रौपदी मुर्मू ने 1979 से 1983 तक ओडिशा सरकार के सिंचाई और ऊर्जा महकमे में जूनियर असिस्टेंट के रूप में काम किया। 1994 से 1997 तक रायरंगपुर में श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर में बतौर शिक्षक भी उन्होंने काम किया है।
द्रौपदी मुर्मू ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1997 में रायरंगपुर में काउंसलर का चुनाव जीतकर की और वह वाइस चेयरपर्सन भी बनीं। वह 1997 में बीजेपी की एसटी मोर्चा की प्रदेश उपाध्यक्ष बनीं।
साल 2000 से 2004 तक वह रायरंगपुर सीट से विधायक रहीं और उस दौरान बीजेडी-बीजेपी की सरकार में परिवहन और वाणिज्य मामलों सहित कई मंत्रालयों की स्वतंत्र प्रभार की मंत्री भी रहीं।
साल 2002 से 2009 तक द्रौपदी मुर्मू बीजेपी के एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य रहीं। 2004 से 2009 तक भी वह रायरंगपुर सीट से विधायक रहीं। 2006 से 2009 तक वह ओडिशा बीजेपी एसटी मोर्चा की अध्यक्ष रहीं।
2010 में वह ओडिशा के मयूरभंज पश्चिम जिले में बीजेपी की अध्यक्ष बनीं और 2013 में इस पद पर फिर से चुनी गईं और अप्रैल 2015 तक रहीं। साल 2015 में उन्हें झारखंड का राज्यपाल बनाया गया।
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