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क्या किसान स्टार्टअप ‘किसानी’ को ज़िन्दा कर पाएँगे?

मोदी सरकार ने 2014 में पहली बार सरकार में आने पर घोषणा की थी की 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर दी जाएगी, वहीं इसके लिए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने की बात भी कही थी। अपने कार्यकाल का आखिरी पूर्ण बजट पेश कर रही मोदी सरकार ने किसानों की आय कितनी बढ़ी इस पर कोई बात नहीं कही। न स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बारे में कुछ कहा। जबकि आयोग की सिफारिशें लागू कर दी जाएं तो किसानों की आय में निश्चित रूप से बढ़ोत्तरी का सास्ता खुल जाएगा।
सरकार ने अपने आखिरी बजट में भी किसानों को लुभाने के लिए ही बड़ी-बड़ी घोषणायें की हैं, जिनमें से ज्यादातर तो निकट भविष्य को ध्यान में रखकर की गईं हैं। किसानों को इससे त्वरित कोई लाभ मिलेगा ऐसा कोई प्रावधान बजट में नहीं दिखाई देता है।
इस बजट की सबसे बड़ी घोषणा किसानों के लिए स्टार्टअप फंड की स्थापना है। जिसके लिए बजट और उससे जुड़े प्रावधानों की घोषणा नहीं की गई है। यह किसानों के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है। इसको कैसे शुरु किया जाएगा और इसके लिए क्या नीति रहेगी यह देखना बहुत जरूरी है। भारत दुनिया भर में सबसे ज्यादा स्टार्टअप वाले देशों में से एक है। बड़ी-बड़ी घोषणाओं और तमाम तरह की सरकारी सहायता के बाद भी आज इनकी क्या हालत है, यह किसी से छुपा नहीं है। पिछले कुछ सालों में शुरु हुए स्टार्टअप बुरी तरह से हांफ रहे हैं, औऱ अपने घाटे को कम करने के लिए नौकरियों में लगातार छंटनी करते जा रहे हैं। ऐसे में कृषि स्टार्टअप कितने सफल हो पाएंगे और सरकार कितनी सहायता दे पाएगी यह बड़ा सवाल है, क्योंकि किसान के पास बहुत सीमित जीचें जिसको वह बाजार के अनुरूप बना सकता है।
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दूसरी बड़ी घोषणा ग्रीन क्रेडिट कार्ड की है जो किसानों के लिए जारी किए जाएंगे। किसानों की सहायता के लिए किसान क्रेडिट कार्ड पहले से ही चलन में हैं। लेकिन इसका लाभ बहुत कम किसानों को मिलता है। जिसमें छोटे और भूमिहीन किसान इसकी पहुंच से लगभग बाहर हैं। ऐसे में देखना होगा कि इसका क्या उपयोग होगा और कौन इसका लाभार्थी होगा।
सरकार ने इस साल के लिए कृषि ऋण के लक्ष्य को बढ़ाकर 20 लाख करोड़ रुपये कर दिया है जोकि किसानों के लिहाज से बढ़िया कदम है। लेकिन पहले से घाटे में चल रहे किसान की आय कितनी बढ़ेगी यह बड़ा सवाल है।
किसानों के लिए जो प्रमुख घोषणाएं की गई हैं उनमें से एक, एक लाख किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने में आर्थिक मदद करना, जोकि महंगी खाद-दवाओं पर निर्भर खेती के लिए लिहाज से एक बेहतर कदम है। लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इसके लिए किस प्रकार और कितना सहायता देगी। ऐसा तो नहीं कि इसका फाएदा बड़े किसानों तक ही सीमित रह जाए, क्योंकि बड़े किसान इस विकल्प को अपनाने के बाद सर्वाइव कर सकते हैं, लेकिन छोटे किसानों का क्या होगा जो पूरी तरह से खेती पर ही आधारित हैं।
इस बजट की सबसे बेहतर घोषणाओं से एक है भारत के मोटे अनाज के हब के रूप में विकसित करना। अगर सरकार इसको बढ़ावा दे तो यह बहुत आसानी से इसको बढ़ाया जा सकता है। इसको लिए सबसे बड़ी जरूरत तो बाजार उपलब्ध कराना है, जोकि पिछले दशकों में सिमटता चला गया है। इसके लिए प्रस्तावित राष्ट्रीय मिलेट संस्थान एक बेहतर कदम है। यह भारत में ही गेहूं और चावल पर बढ़ती निर्भरता को कम करेगा। और जो लोग इसकी खेती में लगे हुए हैं उन्हें इसका लाभ मिलेगा। यह परंपरागत खेती को भी जिंदा करेगा। यह हर लिहाज से बेहतर कदम है।
सरकार के पास किसी भी सरकारी काम को करने के लिए पीपीपी मॉडल के अलावा कोई और विकल्प नहीं नजर आता है। कपास की खेती के लिए अगर इस मॉडल को बढ़ावा दिया जाता है तो यह किसानों के लिए नुकसानदेह हो सकता है। क्योंकि कपास का पूरा उत्पादन बाजार की जरूरतों के हिसाब से किया जाता है और इसमें लगी कुछ बड़ी कंपनियां अपने हिसाब से इसके तय करेंगी की कौन सा बीज बोया जाएगा क्या खाद डाली जाएगी। यह किसानों को कंपनियों के भरोसे पर छोड़ देगा। कृषि कानूनों के विरोध का एक आधार यह भी था।
भारत फूलों की खेती में उभरता हुआ बाजार है, जिसकी खेती कुछ खास हिस्सों में ही की जाती है। इस लिहाज इसके लिए अलग से बजट प्रावधान बढ़िया कदम हो सकता है लेकिन सवाल यह है कि इसको खर्च कैसे किया जाएगा? कहीं ऐसा न हो इस बजट का बड़ा हिस्सा इंफ्रास्ट्रकचर बनाने में खर्च हो जाए। दूसरा फूलों की खेती कुछ चुनिंदा जगहों तक सीमित है, और जहां इसकी खेती की जाती है वहां संसाधन पहले से हैं। ऐसे में इसको दूसरी जगहों पर विस्तारित करने की है जिसको व्यापक स्तर पर बढ़ावा दिया जा सके।
सरकार ने इस बजट में मछुआरों के लिए विशेष पैकेज की घोषणा की है जोकि बेहतर कदम है। लेकिन मछुआरों को पैकैज से ज्यादा इस बात की जरूरत है कि मछली पकड़ने और बेचने के व्यापार में बड़ी-बड़ी कंपनियों का जो हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है उसको खत्म कर दिया जाए और वे स्वतंत्र रूप से मछली पकड़ सकें। इससे उनकी आधी से ज्यादा मुश्किलें आसान हो जाएंगी।
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क़मर वहीद नक़वी
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