मीडिया में और चुनाव प्रचार से भले ही एकतरफा माहौल बनाने की कोशिश की गई है, लेकिन चुनाव पूर्व सर्वेक्षण ने चौंकाने वाले नतीजे आने के संकेत दिए हैं। राम मंदिर, भ्रष्टाचार जैसे जिन मुद्दों की दिनरात चर्चा कर माहौल बनाने की कोशिश की गई है, वे मतदाताओं के लिए बड़े मुद्दे नहीं हैं। सीएसडीएस-लोकनीति ने द हिंदू के साथ मिलकर जो सर्वे किया है उसमें मतदाताओं की सबसे बड़ी तीन चिंताएँ- रोज़गार, महंगाई और विकास उभरी हैं। सर्वेक्षण के अनुसार नौकरियों और महंगाई की चिंताओं के लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों को जिम्मेदार ठहराया गया है। इस सर्वे ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह किसी प्रकार की सत्ता विरोधी लहर में तब्दील होगा? और यदि ऐसा होगा तो यह किसके खिलाफ होगा- राज्यों, केंद्र या मौजूदा सांसदों के खिलाफ?
चुनाव पूर्व इस सर्वेक्षण से पता चला है कि बेरोजगारी और महंगाई सर्वे किए गए लोगों में से क़रीब आधे मतदाताओं की प्रमुख चिंताएं हैं। सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से लगभग दो तिहाई यानी क़रीब 62% ने कहा है कि नौकरियां पाना अधिक मुश्किल हो गया है। ऐसा मानने वाले शहरों में 65% हैं। गाँवों में 62% और कस्बों में 59% लोग ऐसा मानते हैं। 59% महिलाओं की तुलना में 65% पुरुषों ने ऐसी ही राय रखी है। केवल 12% ने कहा कि नौकरी पाना आसान हो गया है।
सर्वे के अनुसार मुसलमानों में यह चिंता सबसे अधिक थी। 67% ने कहा कि नौकरी पाना मुश्किल हो गया है। यह संख्या अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के हिंदुओं में 63% है और अनुसूचित जनजाति में 59% है। जब लोगों से यह सवाल पूछा गया कि क्या नौकरियाँ पाना आसान था? हिंदू उच्च जातियों के 17% लोगों ने कहा कि यह आसान है। यहाँ तक कि उनमें से 57% ने महसूस किया कि नौकरियाँ पाना अधिक मुश्किल हो गया है।
महंगाई के मामले में भी मतदाताओं की चिंताएँ बेहद गंभीर हैं। उन्होंने बेरोज़गारी की तरह ही महंगाई को बड़ा मुद्दा माना है। संपर्क किए गए लोगों में से 71% ने कहा कि महंगाई बढ़ी है। गरीबों में यह संख्या बढ़कर 76%, मुसलमानों और अनुसूचित जातियों में 76% और 75% हो गई है।
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महंगाई के मुद्दे पर भी केंद्र को 26%, राज्य को 12% और दोनों को 56% लोग ज़िम्मेदार मानते हैं।
सर्वे में 55% ने कहा कि भ्रष्टाचार बढ़ गया है, केवल 19% ने कहा कि इसमें कमी आई है। 2019 के लोकनीति प्री-पोल सर्वेक्षण में 40% ने कहा था कि भ्रष्टाचार बढ़ा है, 2019 में भ्रष्टाचार में गिरावट आने की बात करने वाले 37% थे। भ्रष्टाचार के लिए 25% लोगों ने केंद्र को, 16% ने राज्यों को, जबकि 56% ने भ्रष्टाचार के लिए उन दोनों को दोषी ठहराया।
इन चिंताओं के बावजूद सर्वेक्षण में शामिल लगभग आधे लोगों ने कहा कि पिछले पांच वर्षों में विकास समावेशी रहा है।
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