27 सितंबर को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने डिबेट का आयोजन किया था। डिबेट का विषय था - ‘मानवाधिकारों का पालन करते हुए देश में आतंकवाद और उग्रवाद से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है।’ इसमें कांस्टेबल ख़ुशबू चौहान ने विषय के विपक्ष में अपनी बात रखी थी अपनी स्पीच में कहा था कि 2001 में संसद में हमले के दोषी अफ़ज़ल गुरु को जन्म देने वाली कोख को उजाड़ दिया जाना चाहिए और जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार की छाती में तिरंगा गाड़ देने की भी बात कही थी।
कांस्टेबल ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को आतंकवादियों, पत्थरबाज़ों का संरक्षक बताते हुए उन पर जमकर हमला बोला था। कांस्टेबल ने अपने भाषण में कहा था कि उस घर में घुसकर मारेंगे, जिस घर से अफ़ज़ल निकलेगा और न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल खड़े करते हुए मुंबई हमले को अंजाम देने वाले आतंकवादी अज़मल कसाब के लिए रात को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने के मुद्दे को भी उठाया था।
जैसे ही यह वीडियो वायरल होना शुरू हुआ, सोशल मीडिया पर लोग दो हिस्सों में बंट गए। कुछ लोगों ने ख़ुशबू के बयान की तारीफ़ की तो कुछ ने कहा कि सीआरपीएफ़ में कांस्टेबल के पद पर तैनात लोग क्या मानवाधिकार का समर्थन करने वालों के लिए इस तरह की सोच रखते हैं। विवाद बढ़ता देख सीआरपीएफ़ को इस मामले में बयान जारी कर स्पष्टीकरण देना पड़ा।
सीआरपीएफ़ की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ‘ख़ुशबू चौहान डिबेट में विषय के विपक्ष में बोल रही थीं। सीआरपीएफ़ में बिना शर्त मानवाधिकारों का पूरा सम्मान किया जाता है। ख़ुशबू ने अच्छी स्पीच दी लेकिन उन्हें भाषण में कुछ बातों को नहीं कहना चाहिए था। ख़ुशबू को इस बारे में सही सलाह दे दी गई है और हम सीआरपीएफ़ के लिए उसके आदर का सम्मान करते हैं।’
ख़ुशबू को डिबेट में दी गई स्पीच के लिए सांत्वना पुरस्कार मिला है। निश्चित रूप से ख़ुशबू के भाषण के बाद सीआरपीएफ़ जैसी प्रतिष्ठित संस्था को लेकर सवाल खड़े होने शुरू हो गए थे क्योंकि ख़ुशबू ने फ़ोर्स की वर्दी पहनकर यह भाषण दिया था और उनकी बातों को लेकर समाज के एक वर्ग ने तीख़ी प्रतिक्रिया दी थी। लोगों का कहना था कि आख़िर कोई कैसे कन्हैया कुमार की छाती में तिरंगा गाड़ने की बात कह सकता है जबकि कन्हैया के ख़िलाफ़ चार्जशीट फ़ाइल करने में दिल्ली पुलिस को तीन साल लग गए और इस बात के कोई भी पुख़्ता सबूत नहीं हैं कि कन्हैया ने देशद्रोही नारे लगाये थे।
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