देश भर में नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी को लेकर बवाल मचा हुआ है। कोई उसके समर्थन में तो कोई उसका विरोध कर रहा है। लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि इस मुद्दे को हिन्दू -मुसलिम, भारतीय -पाकिस्तानी या बांग्लादेशी के नज़रिये से देखने के पहले इस बात पर भी विचार हो कि देश में जन्म और जन्म प्रमाण पत्र के आँकड़े क्या कह रहे हैं।
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भारतीयों, ख़ासतौर पर बुज़ुर्ग नागरिकों के पास जन्म प्रमाण पत्र हैं क्या? सच तो यह है कि देश में 5 साल से छोटे बच्चों के जन्म प्रमाण पत्र भी बड़ी संख्या में नहीं हैं।
क्या कहना है नेशनल हेल्थ सर्वे का?
बच्चों के जन्म पंजीयन के आधिकारिक आँकड़े नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-4) के मुताबिक़, 2015-16 में 5 साल से कम उम्र के हर पांच में से तीन बच्चों (62.3%) के जन्म को रजिस्टर कराया गया और उनके पास जन्म प्रमाण पत्र है। 2005-06 में यह आंकड़ा मात्र 26.9% था। इन आंकड़ों से पता चलता है कि 2005 से पहले जन्मे बच्चों के पास जन्म प्रमाण पत्र (एक व्यक्ति की क़ानूनी पहचान का पहला प्रमाण) होने की संभावना बहुत कम है, क्योंकि पंजीकरण की दरों में सुधार, हाल के कुछ साल में हुआ है।इसमें भी सबसे ग़रीब तबकों, अनुसूचित जातियों और आदिवासियों या फिर अशिक्षित परिवारों के बच्चों के पास जन्म प्रमाण पत्र होने की संभावना और भी कम है। जन्म पंजीकरण में तेज़ी 2000 के दशक में अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में बच्चों के जन्म के बढ़ने के बाद से ही आई है।
सीआरएस के आँकड़े
सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (सीआरएस) के आंकड़ों के मुताबिक़, भारत में 2017 में जन्म पंजीकरण 84.9% था, जो 2008 के 76.4% से अधिक है। साल 2000 में यह दर 56.2% थी, जिसका अर्थ है कि साल 2000 में जन्मे बच्चों में से आधे से कुछ अधिक के जन्म का पंजीकरण हुआ है। नौ राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं जिनमें जन्म के पंजीकरण की दर राष्ट्रीय दर से कम है।इनमें से चार बड़े राज्य हैं। यह दर उत्तर प्रदेश में 61.5%, बिहार में 73.7%, मध्य प्रदेश में 74.6% और तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य में 78.8% है।2017 सीआरएस रिपोर्ट में केवल 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्रों को जारी करने के बारे में जानकारी दी है। जानकारी नहीं देने वाले राज्यों ने इसके पीछे कर्मचारियों की कमी, सॉफ़्टवेयर और नेटवर्क में समस्याएं जैसे कारण बताए गए।
एनएफ़एचएस-4 के मुताबिक़, 2015-16 तक पांच साल से कम उम्र के 79.4% बच्चों के जन्म का पंजीकरण हुआ था, लेकिन इसमें पांच बच्चों में से केवल तीन (62.3%) के पास जन्म प्रमाण पत्र के तौर पर उस पंजीकरण का सबूत था।
इससे पता चलता है कि पांच साल से कम उम्र के हर छह बच्चों में से एक (17.4%) के जन्म का पंजीकरण तो हुआ था, लेकिन उनके पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं था।
गाँव के ग़रीबों के पास नहीं होता जन्म प्रमाण पत्र
एनएफ़एचएस-4 के मुताबिक़ भारत में शहरी क्षेत्रों में रहने वाले पांच साल से कम उम्र के सभी बच्चों में से 77% के जन्म का पंजीकरण हुआ था और उनके पास जन्म प्रमाण पत्र थे। इसकी तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा 56.4% था। परिवार की संपत्ति के मुताबिक़ भी इस आंकड़े में बड़ा अंतर हैः सबसे धनी समूह में पांच साल से कम उम्र के 82.3% बच्चों के जन्म का पंजीकरण हुआ था और उनके पास जन्म प्रमाण पत्र था, जबकि सबसे निर्धन समूह में यह आंकड़ा केवल 40.7% का था।अनुसूचित जातियों में 60.2% और अनुसूचित जनजातियों में 55.6% के जन्म का पंजीकरण हुआ था और उनके पास जन्म प्रमाण पत्र थे। इसकी तुलना में समाज में बेहतर दर्जे वाली ‘अन्य’ जातियों जिन्हें अगड़ी जाति कहा जाता है, में यह आंकड़ा 71.9% था।इसके साथ ही, अशिक्षित माताओं वाले पांच में से केवल दो (41.4%) बच्चों के जन्म का पंजीकरण हुआ था और उनके पास जन्म प्रमाण पत्र था। इसकी तुलना में जिन बच्चों की मां शिक्षित थीं उनमें चार में से तीन (77.6%) के पास जन्म प्रमाण पत्र था।
आज बड़ी संख्या में देश में ऐसे बच्चे हैं, जिनके पास जन्म का प्राथमिक प्रमाण पत्र भी नहीं है। ऐसे में जो बच्चे जो बच्चे स्कूल नहीं जा पाए या 10 वीं तक की पढ़ाई नहीं कर पाए उनके स्कूल प्रमाण पत्र में भी जन्म तिथि नहीं होने की वजह से जन्म तारीख के प्रमाण का दूसरा महत्वपूर्ण दस्तावेज़ भी नहीं रहेगा।
ऐसे में जब नागरिकता क़ानून में जन्म प्रमाण पत्र की बात कही जाएगी तो एक बहुत बड़ा वर्ग उसके दायरे में आ जाएगा। और यह संख्या कई करोड़ में पँहुच जाएगी! ऐसे नागरिकों के साथ सरकार क्या व्यवहार करने वाली है?
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