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कोरोना की टेस्टिंग क्यों कम की गयी?

हर रोज़ कोरोना संक्रमण के मामले जब 97 हज़ार से घटकर 75 हज़ार आ जाएँ तो निश्चित ही अच्छी ख़बर कही जा सकती है, लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि टेस्टिंग ही कम हुई हो इस वजह से संक्रमण के मामले कम हो गए हैं? 21 सितंबर को 9 लाख 33 हज़ार टेस्टिंग की गई जबकि 20 सितंबर को 7 लाख 31 हज़ार टेस्टिंग की गई थी। हाल के दिनों में सामान्य तौर पर 10-12 लाख टेस्टिंग होती रही थी। संक्रमण के मामले कम आने लगे हैं या नहीं, इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी, लेकिन टेस्टिंग के जो आँकड़े आए हैं वे एक ख़राब स्थिति की ओर इशारा करते हैं। ऐसी स्थिति जो शायद कोरोना संक्रमण के मामले कम होने के दावों को खारिज कर दे। 

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साफ़-साफ़ कहें तो यदि कोरोना की टेस्टिंग कम होगी तो कोरोना संक्रमण के मामले भी कम आएँगे। ऐसे में एक तर्क यह भी दिया जा सकता है कि यदि किसी व्यक्ति में कोरोना के लक्षण नहीं दिखेंगे तो टेस्टिंग की क्या ज़रूरत है और फिर संक्रमितों की संख्या तो कम होगी ही। लेकिन यह तर्क सही नहीं जान पड़ता है। यह इसलिए कि इतनी बड़ी आबादी में सर्दी-जुकाम और बुखार के ही लक्षण हर रोज़ लाखों लोगों में दिखते होंगे और यही लक्षण कोरोना संक्रमितों में भी होते हैं। ऐसे में टेस्टिंग कम किए जाने का कोई कारण ही नहीं होता है।  

सबसे अहम बात यह है कि कोरोना को नियंत्रित करने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा टेस्टिंग की ज़रूरत होती है, वैसे लोगों में भी जिनमें कोरोना का कोई लक्षण नहीं हो। ऐसे में कोरोना की टेस्टिंग क्या कम की जानी चाहिए? नहीं न? लेकिन ऐसा हो रहा है।

टेस्टिंग कम होने के बीच ही हर रोज़ संक्रमित लोगों की संख्या में कमी आ रही है। जब हर रोज़ टेस्टिंग 10 लाख से 12 लाख के बीच की जा रही थी तब कोरोना संक्रमण के मामले हर रोज़ 92 हज़ार से 97 हज़ार तक आ रहे थे। यह आईसीएमआर के आँकड़े ही बताते हैं। लेकिन हाल के दिनों में टेस्टिंग में कमी आई है और कोरोना संक्रमण के मामलों में भी। 21 सितंबर को 9 लाख 33 हज़ार टेस्टिंग की गई और क़रीब 75 हज़ार संक्रमण के मामले आए। 20 सितंबर को 7 लाख 31 हज़ार टेस्टिंग की गई थी और क़रीब 86 हज़ार मामले आए थे। 

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19 सितंबर को जब टेस्टिंग ज़्यादा यानी 12 लाख 06 हज़ार थी तो संक्रमण के मामले भी 92 हज़ार से ज़्यादा आए थे। हालाँकि, 18 सितंबर को 8 लाख 81 हज़ार टेस्टिंग की गई थी फिर भी 93 हज़ार संक्रमण के मामले आए थे। इससे पहले 17 सितंबर को 10 लाख 6 हज़ार टेस्टिंग की गई थी उसकी रिपोर्ट 18 सितंबर को जारी की गई थी और उसमें क़रीब 98 हज़ार संक्रमण के मामले आए थे। 

29 अगस्त के बाद से सामान्य तौर पर हर रोज़ 10 से 12 लाख के बीच टेस्टिंग की जाती रही है। इस बीच केवल तीन बार ऐसा हुआ कि टेस्टिंग 10 लाख से कम हुई- 13 सितंबर को 9 लाख 78 हज़ार, 6 सितंबर को 7 लाख 20 हज़ार और 30 अगस्त को 8 लाख 46 हज़ार टेस्टिंग की गई थी। इससे पहले 29 अगस्त को 10 लाख 55 हज़ार टेस्टिंग की गई थी। 

संक्रमण को नियंत्रित करने का एकमात्र तरीक़ा अभी भी यही माना जा रहा है कि जितनी जल्दी कोरोना संक्रमित व्यक्ति की पहचान हो जाए व उसे अलग-थलग कर दिया जाए उतना ही बेहतर होगा। यानी टेस्टिंग, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और आइसोलेशन। यही वह तरीक़ा है जिसे दक्षिण कोरिया ने पहले पहल अपनाया और शानदार तरीक़े से कोरोना को नियंत्रित किया। कोई दवा बनी नहीं है तो दुनिया भर में इसे बेहतर तरीक़ा माना गया। दुनिया भर में इसी बात पर ज़ोर है कि ज़्यादा से ज़्यादा और जल्दी टेस्टिंग की जाए। 

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अब अमेरिका में जब कोरोना संक्रमण के मामले पहले की अपेक्षा कम हो गए हैं, फिर भी वहाँ ज़्यादा से ज़्यादा टेस्टिंग पर ज़ोर दिया जा रहा है। हालाँकि अमेरिका भी टेस्टिंग के मामले में पहले फिसड्डी साबित हुआ था, लेकिन दुनिया भर में सबसे ज़्यादा टेस्टिंग भी अमेरिका में ही हुई है। 9 करोड़ 81 लाख टेस्टिंग हो चुकी है। इसके बाद भारत में क़रीब 6 करोड़ टेस्टिंग हुई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने मार्च में ही कहा था कि 'यदि कोई कोराना जाँच कराना चाहता है तो वह करा सकता है'। लेकिन यह लक्ष्य अभी तक नहीं पाया जा सका है। दो दिन पहले ही यानी 20 सितंबर को अमेरिका में रिकॉर्ड 10 लाख सैंपल की टेस्टिंग हुई है। रायटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका में कोरोना संक्रमण को तभी नियंत्रित किया जा सकता है जब हर रोज़ 60 लाख से 1 करोड़ के बीच टेस्टिंग हो। 

इस हिसाब से देखें तो भारत में कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए कहीं ज़्यादा टेस्टिंग की ज़रूरत होगी। ऐसा इसलिए कि भारत की आबादी अमेरिका से 4 गुना से भी ज़्यादा है। ऐसे में भारत में कोरोना जाँच काफ़ी ज़्यादा बढ़ाए जाने की ज़रूरत है।

लेकिन फ़िलहाल भारत में जो जाँच की जा रही है उसमें भी एक बहुत बड़ी दिक्कत यह है कि एंटीजन टेस्ट का सहारा लिया जा रहा है। जबकि पीसीआर टेस्ट का परिणाम सटीक होता है। एंटीजन टेस्ट की रिपोर्ट उतनी सटीक नहीं है। एंटीजन टेस्ट में कोरोना संक्रमित व्यक्ति की रिपोर्ट नेगेटिव भी आ जाती है। हाल के दिनों में हर रोज़ जो क़रीब 10 लाख टेस्टिंग की जा रही है उसमें से क़रीब 5 लाख तो एंटीजन टेस्टिंग ही की जा रही है। 

कोरोना संक्रमितों की संख्या कम आने पर निश्चिंत होने से ज़्यादा टेस्टिंग कम होने के बारे में चिंतित होना चाहिए।

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क़मर वहीद नक़वी
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