जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की बेंच ने कहा, "अनुच्छेद 15(4) और 15(5) वास्तविक समानता के पहलू हैं। प्रतियोगी परीक्षा आर्थिक सामाजिक लाभ को नहीं दर्शाती है जो कुछ वर्गों को अर्जित किया जाता है। योग्यता को सामाजिक रूप से प्रासंगिक बनाया जाना चाहिए। आरक्षण योग्यता के साथ नहीं है, लेकिन इसके प्रभाव को आगे बढ़ाता है।" कोर्ट ने आज अपने आदेश में कहा कि नीट एंट्रेस परीक्षा की योजना सरकारी चिकित्सा संस्थानों में सीटें आवंटित करने के लिए बनाई गई थी।
अदालत ने स्पष्ट तौर पर कहा -
“
सामाजिक न्याय के लिए आरक्षण जरूरी है। प्रतियोगी परीक्षाएं आर्थिक सामाजिक लाभ को नहीं दर्शाती हैं जो कुछ वर्गों के लिए अर्जित किया जाता है।
उधर
निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के तीन टेस्ट
सुप्रीम कोर्ट की दूसरी बेंच ने एक अलग आदेश में निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर भी स्थिति साफ की है। उसने इस संबंध में मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र सरकार की याचिकाओं पर कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को कोटा प्रदान करने के लिए उसके द्वारा निर्धारित ट्रिपल टेस्ट का पालन किया जाना जरूरी है।
बुधवार को, जस्टिस ए एम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सी.टी. रविकुमार की बेंच ने आदेश दिया कि यदि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ओबीसी श्रेणी के लिए आरक्षण प्रदान करने वाले स्थानीय निकाय चुनाव कराने का इरादा है तो ट्रिपल टेस्ट का पालन करना होगा। कोर्ट ने कहा -
“
यदि राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ट्रिपल टेस्ट की आवश्यकता को पूरा करने की स्थिति में नहीं है तो किसी भी स्थानीय निकाय के चुनाव को वैधानिक अवधि से आगे स्थगित नहीं किया जा सकता है, तो (राज्य) चुनाव आयोग (संबंधित) को खुली श्रेणी की सीटों के रूप में सीटों के बारे में स्थिति स्पष्ट करना होगी।
- सुप्रीम कोर्ट, बुधवार को
अपनी राय बतायें