भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण अब ख़तरनाक स्थिति में पहुँच गया है। यह सिर्फ़ इसलिए नहीं कि भारत में हर रोज़ संक्रमण के मामले दुनिया में सबसे ज़्यादा आ रहे हैं या फिर दुनिया में तीसरा सबसे ज़्यादा प्रभावित देश है। यह उससे कहीं ज़्यादा घातक इसलिए है कि देश में संक्रमण वहाँ फैल रहा है जहाँ स्वास्थ्य सुविधाएँ न के बराबर हैं। गाँवों-कस्बों और छोटे शहरों में। एक तो कोरोना संक्रमण का इलाज नहीं और दूसरे वहाँ दूसरी स्वास्थ्य सुविधाएँ भी नहीं। जागरूकता की भी ऐसी ही स्थिति है जो कोरोना के संदर्भ में बेहद ज़रूरी है। अब ऐसे में क्या संक्रमण के ख़तरनाक स्थिति में होने की चिंता नहीं होनी चाहिए?
देश की 60 करोड़ से ज़्यादा आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के अनुसार ग्रमीण क्षेत्रों में सिर्फ़ 25 फ़ीसदी लोग ही सार्वजनिक ओपीडी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच रखते हैं।
ऐसे में एक बड़ी चिंता यह है कि गाँवों में संक्रमण फैलने पर जाँच और इलाज के बिना शायद लोगों को पता भी नहीं चले कि उन्हें कोरोना संक्रमण हुआ है और उनकी मौत हो जाए।
गाँवाों में डॉक्टर-अस्पताल
वैसे तो पूरे देश में ही डॉक्टर और अस्पताल की काफ़ी कमी है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में तो और भी ज़्यादा दुर्दशा है। कई रिपोर्टों में कहा गया है कि क़रीब 80 फ़ीसदी डॉक्टर और 60 फ़ीसदी अस्पताल शहरी क्षेत्रों में हैं। जबकि क़रीब 70-80 फ़ीसदी आबादी गाँवों में रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल के नाम पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र या ज़िला अस्पताल हैं, वे तो बस राम भरोसे ही हैं, ऐसी रिपोर्टें आती रही हैं।
गाँव की दुर्दशा को छोड़िए शहरों की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर होने पर भी पूरे देश की स्थिति को ही देखिए। देश भर में कितने आईसीयू हैं, इसकी सटीक जानकारी तो नहीं है, लेकिन एक अनुमान है कि 80 हज़ार से लेकर एक लाख आईसीयू बेड होंगे। बेड की यह संख्या कोरोना संक्रमण से पहले की है, कोरोना संक्रमण के बाद कई मेकशिफ़्ट कोविड केयर सेंटर बनाए गए हैं और बेडों की संख्या कुछ बढ़ी है। हालाँकि 1.3 अरब की जनसंख्या में ये भी नाकाफ़ी साबित हो रहे हैं।
यही हाल वेंटिलेटर और आईसीयू यूनिट को लेकर भी है और कोरोना संक्रमण के तेज़ी से फैलने के बाद तात्कालिक तौर पर कुछ उपाय किए गए हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी स्वास्थ्य व्यवस्था के बीच अब यदि संक्रमण का पीक आना बाक़ी हो तो स्थिति कैसी होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है।
एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक़ जब भारत में रिकवरी दर 75 फ़ीसदी पार हो जाएगी, तब कोरोना अपने पीक पर होगा। अभी भारत की रिकवरी रेट क़रीब 72 फ़ीसदी है। हालाँकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि रिकवरी रेट और संक्रमण के पीक पर आने में कोई ठोस संबंध नहीं मिला है।
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