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रेनकोट, हेलमेट पहनकर डॉक्टर कैसे करेंगे कोरोना के मरीजों का इलाज?

ऐसी रिपोर्टें हैं कि डॉक्टरों को कोरोना वायरस के मरीजों का इलाज रेनकोट और हेलमेट पहनकर करना पड़ रहा है। क्या कोरोना जैसे वायरस से इसका बचाव संभव है? क्या इससे डॉक्टर और नर्स की सुरक्षा को ख़तरा नहीं है?

दरअसल, ऐसी स्थिति इसलिए हुई है क्योंकि स्वास्थ्य कर्मियों को उपलब्ध कराए जाने वाले पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट यानी पीपीई किट की कमी है। डॉक्टर, नर्स या बाक़ी स्टाफ़ द्वारा कोरोना जैसे वायरस से बचने के लिए पहने जाने वाले ग्लव्स, मास्क, चश्मे, कवरॉल यानी सूट पीपीई किट में शामिल होते हैं। अब सरकार दक्षिण कोरिया, सिंगापुर जैसे देशों से इसको आयात करने जा रही है। इसका मतलब साफ़ है कि कोरोना वायरस से निपटने की तैयारी पहले से नहीं हुई और जब इसकी ज़रूरत आन पड़ी तो इसकी व्यवस्था की जा रही है। 

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तैयारी की स्थिति कैसी है यह जानने के लिए कोरोना टेस्ट किट की स्थिति देख लीजिए। 30 जनवरी को देश में पहला मामला आया था। इसके बाद से मामले तेज़ी से बढ़े हैं। लेकिन जाँच की स्थिति ऐसी है कि 21 मार्च तक सरकार ने कोरोना जाँच को उन लोगों तक सीमित रखा था जो या तो विदेश से आ रहे थे या फिर सीधे उनके संपर्क में आए थे और जिन्हें संदिग्ध माना जा रहा था। यानी उन लोगों की जाँच नहीं की जा रही थी जिनमें कोरोना के लक्षण तो थे लेकिन वे सीधे संपर्क में नहीं आए थे। अब जाँच का दायरा बढ़ाया गया है। हालाँकि पीपीई सूट की कमी की शिकायतें अभी भी आ रही हैं और स्वास्थ्य कर्मियों को ख़तरा महसूस हो रहा है। 

यही वह डर है जिससे डॉक्टर, नर्स और दूसरे स्वास्थ्य कर्मी इलाज करने से कतरा रहे हैं। कई जगहों पर विरोध की ख़बरें भी आ रही हैं। हालाँकि कई जगहों पर कार्रवाई के डर से शिकायतें भी नहीं की जा रही हैं। उत्तर प्रदेश के क़रीब 4700 एंबुलेंसों के ड्राइवर मंगलवार को इसलिए हड़ताल पर चले गए क्योंकि उन्हें लगा कि पर्याप्त सुरक्षा के उपाय नहीं किए गए हैं। वे प्रोटेक्टिव गियर और स्वास्थ्य बीमा की माँग कर रहे हैं। एंबुलेंस वर्कर्स एसोसिएशन के हनुमान पांडे ने 'रायटर' से कहा कि जब तक हमारी माँग पूरी नहीं की जाती है तब तक हम अपनी जान पर ख़तरा नहीं उठाएँगे।

एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले हफ़्ते ही कोलकाता में बेलियाघाट इन्फ़ेक्शस डिजीज हॉस्पिटल में मरीजों का इलाज करने के लिए जूनियर डॉक्टरों को प्लास्टिक रेनकोट दिए गए थे। इसकी कुछ तसवीरें भी आई थीं।

 'रायटर' की रिपोर्ट के अनुसार, हरियाणा में ईएसआई हॉस्पिटल के डॉ. संदीप गर्ग एन95 मास्क नहीं होने की वजह से मोटरसाइकिल वाला हेलमेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसी रिपोर्टें हैं कि रोहतक के एक सरकारी हॉस्पिटल में कुछ जूनियर डॉक्टर मरीजों का इलाज करने से इसलिए इनकार कर रहे हैं क्योंकि उन्हें सुरक्षा के पर्याप्त उपाए मुहैया नहीं कराए गए हैं। अब रिपोर्ट है कि डॉक्टरों ने एक कोविड-19 फंड बनाया है जिसमें प्रत्येक डॉक्टरों ने 1000 रुपये का सहयोग दिया है ताकि मास्क और फ़ेस कवरिंग ख़रीदे जा सकें। 

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स्वास्थ्य कर्मियों के लिए सुरक्षा के उपाए पर्याप्त नहीं होने की ऐसी ही शिकायतों के बीच सरकार ने सोमवार को एक बयान जारी किया है। बयान में कहा गया है कि 60 हज़ार कवरॉल खरीदे जा चुके हैं और क़रीब 60 लाख पीपीई किट के ऑर्डर दिए जा चुके हैं। इसमें से क़रीब आधे घरेलू निर्माता पूरी करेंगे और बाक़ी सिंगापुर और दक्षिण कोरिया से आयात किए जाएँगे। बयान में यह भी कहा गया है कि पूरे देश भर में क़रीब 4 लाख पीपीई स्टॉक में हैं। लेकिन सवाल है कि जब पीपीई स्टॉक में पड़े हुए हैं तो फिर कमी की शिकायतें क्यों आ रही हैं? 

मास्क की कमी की भी ऐसी ही शिकायतें आ रही हैं, लेकिन सरकारी बयान में कहा गया है कि देश के हॉस्पिटलों में क़रीब 11.95 लाख एन95 मास्क स्टॉक में हैं और दो घरेलू आपूर्तिकर्ता हर रोज़ 50 हज़ार मास्क सप्लाई करने की स्थिति में हैं। रिपोर्ट के अनुसार ये अपनी क्षमता को बढ़ा रहे हैं और एक हफ़्ते के भीतर हर रोज़ एक लाख मास्क बनाने की स्थिति में होंगे। 

सवाल इसलिए भी कि सिर्फ़ एक राज्य तमिलनाडु ने ही 25 लाख एन95 मास्क का ऑर्डर दे दिया है। यह संख्या देश भर में मौजूदा 11.95 लाख के स्टॉक से दोगुनी से भी ज़्यादा है। 

पहले से तैयारी नहीं होने का नतीजा अब यह है कि इन सुरक्षा के उपायों के ऑर्डर देने पर भी समय पर नहीं मिल पा रहे हैं।

प्रोटेक्टिव गियर को खरीदने और केंद्र व राज्य सरकारों को आपूर्ति करने के लिए बनाई गई सरकारी नोडल एजेंसी एचएलएल लाइफ़केयर ने ही यह साफ़ किया है कि आपूर्ति में देरी होगी। एचएलएल लाइफ़केयर ने 28 मार्च को दक्षिणी-पश्चिमी रेलवे के मुख्य चिकित्सा निदेशक (प्रोक्योरमेंट) को ईमेल लिखकर कहा है कि प्रोटेक्टिव गियर की सप्लाई एक महीने में होगी। दक्षिणी-पश्चिमी रेलवे की ओर से रेलवे के हॉस्पिटलों के लिए 13 हज़ार पीपीई किट की माँग की गई थी।

अब सवाल है कि जब एक महीने में इस ऑर्डर की आपूर्ति होगी तब तक देश में क्या हालत होगी? एक महीने में जब वायरस काफ़ी ज़्यादा फैल जाएगा, जैसी कि संभावाना जताई जा रही है, तो माँग भी काफ़ी ज़्यादा होगी। फिर क्या होगा? क्या तैयारी है?

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