दुनिया के अलग-अलग देशों में बैठे अनजान लोगों ने इंटरनेट के महासागर को मथ कर जो साक्ष्य जुटाए हैं और हज़ारों की संख्या में मिली फ़ाइलों को खंगाल कर इन लोगों ने जो साक्ष्य पेश किए हैं, उनसे इस आशंका को बल मिला है कि चीन स्थित वुहान इंस्टीच्यूट ऑफ वायरोलॉजी से कोरोना वायरस निकला है।
इसमें कम से कम तीन भारतीय हैं जो वैज्ञानिक नहीं हैं, किसी प्रयोगशाला से जुड़े हुए नहीं है, लेकिन जिनके अपने स्तर पर किए गए खोज ने लोगों को चौंका दिया है।
अमेरिकी पत्रिका 'न्यूज़वीक' के अनुसार, जिन लोगों ने इंटरनेट के महाजाल में घुस कर सबूत एकत्रित किए हैं, वे पत्रकार, गुप्तचर या ख़ुफ़िया एजंसियों के लोग भी नहीं हैं। वे अनजान लोग हैं, जिनका मुख्य स्रोत ट्विटर और दूसरे ओपन सोर्स हैं। इन लोगों ने अपने समूह को 'ड्रैस्टिक' यानी 'डीसेंट्रलाइज़्ड रेडिकल ऑटोनॉमस सर्च टीम इनवेस्टिगेटिेंग कोविड-19' का नाम दिया है।
इन अनजान लोगों की अटूट मेहनत से ही पता चला कि चीनी वैज्ञानिकों ने गुफाओं के अंतरजाल में घुस कर चमगादड़ों पर अध्ययन किया, जिसका नतीजा यह हुआ कि उन चमगादड़ों में पाया जाने वाला वायरस SARS-CoV-2 का संक्रमण उन लोगों को हो गया जो उन गुफाओं के अंदर बार-बार आते जाते रहते थे।
साल 2012 में इसे छह लोग संक्रमित हो गए, जिनमें से तीन की मौत हो गई। यह वायरस मौजूदा महामारी फैलाने वाले वायरस से बहुत ही मिलता जुलता था।
बंगाल में बैठ कर चीन पर शोध?
पश्चिम बंगाल में रहने वाले एक अनजान युवक ने ट्विटर पर एक अकाउंट खोला, जिसका नाम 'द सीकर' (@TheSeeker268) दिया और उस पर एक लोगो लगाया जो कबिलाई नृत्य शैली छऊ से मिलता जुलता है। यह नृत्य शैली पुरुलिया ज़िले में प्रचलित है।
UPDATED🧵: A lot of new facts have emerged since I last did a thread on a possible lab escape of Covid-19, so I'm compiling some of the latest findings on the subject.
— The Seeker (@TheSeeker268) April 8, 2021
*All these are factual information which makes an unfettered investigation paramount*https://t.co/XuPtitvjNk pic.twitter.com/ATTnTg23wV
फ़ॉची ने मानी बात?
'द सीकर' ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के मुख्य स्वास्थ्य सलाहकार एंथीन फॉची को भी एक बार संपर्क किया था और अपने ग्रुप से जुड़ने का आग्रह किया था। उसके बाद ही फ़ॉची ने यह माना था कि वुहान (ऊहान) इंस्टीच्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी से ही कोरोना वायरस निकला है, लेकिन वे चुप रहे।
बाद में यह मामला इतना बढ़ा कि अमेरिकी सीनेट के एक सदस्य ने फ़ॉची पर यह मामला छुपाने और एक तरह से चीन की मदद करने तक का आरोप मढ़ दिया।
Welcome to the club, Faucihttps://t.co/qvJEfBf1ND pic.twitter.com/btID4eFCK9
— The Seeker (@TheSeeker268) June 4, 2021
इकोहेल्थ अलायंस
'द सीकर' ने जीवाणुओं पर शोध करने वाली संस्था इकोहेल्थ अलायंस के अध्यक्ष पीटर डैस्ज़ैक से भी संपर्क कर उन्हें बताया कि वुहान से ख़तरनाक वायरस लीक हुआ है। डैस्ज़ैक वुहान इंस्टीच्यूट की शी झेंगली के संपर्क में थे और दोनों ने मिल कर एक शोध पत्र भी तैयार किया था।
लेकिन डैस्ज़ैक ने 'द सीकर' के दावे को बेबुनियाद, मनगढंत और बढा- चढ़ा कर कही गई बात क़रार दिया।
The full NIH letter to EcoHealth has now been made public.https://t.co/uQS8HifnL6 https://t.co/7BZVOO7WDi pic.twitter.com/yl4o9LmOUr
— The Seeker (@TheSeeker268) May 28, 2021
कौन हैं शी झेंगली?
शी झेंगली ने 'द नेचर' पत्रिका के 3 फरवरी 2020 के अंक में एक नए वायरस RaTG13 के बारे में जानकारी दी। वैज्ञानिक यह देक कर चौंक गए कि इस वायरस की बनावट SARS-CoV-2 से काफी मिलती थी। यह वही वायरस था जिसके संक्रमण से 2002 से 2004 के बीच 774 लोगों की मौत हो गई थी।
'द न्यूज़वीक' का कहना है कि कनाडा के यूरी डेइजिन ने यह आशंका जताई कि जेनेटिक इंजीनियरिंग की तकनीक का इस्तेमाल कर RaTG13 वायरस में कुछ उलटफेर कर और कुछ परिवर्तन कर SARS-CoV-2 वायरस बनाया गया।
'द सीकर' ने सोशल मीडिया साइट रेडिट पर यहा जानकारी साझा की तो उनके अकाउंट को बंद कर दिया गया।
लेकिन 'ड्रैस्टिक' टीम ने यह दावा किया कि शी झेंगली ने RaTG13 वायरस के जीन्स का दावा किया था, वह बिल्कुल चीन के युन्नान प्रांत में पाए जाने वाले चमगादड़ों के जीन्स जैसा ही था।
चीनी वैज्ञानिक शी झेंगली ने 'साइंटिफिक अमेरिकन' पत्रिका में यह स्वीकार किया था कि उन्होंने मोजियांग काउंटी स्थित चमगादड़ों की गुफा में काम किया था।
कुनिमंग विश्वविद्यालय का शोध
'द सीकर' ने इंटरनेट को खूब खंगाला तो उन्हें 60 पेज का एक शोध प्रबंध हाथ लगा, जिसे कुनमिंग मेडिकल यूनिवर्सिटी ने 2013 में छापा था। इसका नाम था, 'द एनलिसिस ऑफ़ सिक्स पेशेंट्स विद सीवियर न्यूमोनिया कॉज्ड वाई अननोन वायरस'।
यह शोध चीनी संस्था सेंटर फ़ॉर डिजीज़ कंट्रोल (सीडीसी) के एक पीएचडी छात्र के उस शोध प्रबंध से एकदम मिलता जुलता था जिसमें सार्स वायरस से संक्रमित लोगों पर शोध कर लिखा गया था।
इसके बाद चीन के युन्नान प्रांत स्थित मोजियांग के गुफाओं की खोज शुरू हुई, जिसमें बड़ी तादाद में चमगादड़ पाए जाते हैं।
मोजियांग गुफाओं का रहस्य?
इस दिशा में बीबीसी के चीन संवाददाता जॉन सडवर्थ ने पहल की, लेकिन उन्हें चीनी अधिकारियों ने गुफा तक जाने नहीं दिया। कई लोगों ने कोशिशें की, 'द वॉल स्ट्रीट जर्नल' का एक संवाददाता उन गुफाओं के मुँह तक पहुँच भी गया, लेकिन इस दिशा में कोई ख़ास कामयाबी नहीं मिली।
लेकिन भारत के दो लोगों ने मोजियांग गुफाओं पर काम किया और उसके बारे में कई जानकारियाँ जुटाईं। ये हैं पुणे के रहने वाले डॉक्टर मोनाली सी. राहुलकर और डॉक्टर राहुल बाहुलिकर। ये दोनों भी ड्रैस्टिक के सदस्य हैं और इन्होंने भी इस दिशा में बहुत काम किया है।
'द सीकर' का दावा
'द सीकर' का दावा है कि वे वुहान इंस्टीच्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी के डेटाबेस में सेंध लगाने में कामयाब रहे। उन्हें वहाँ कई शोध पत्र मिले, कई परियोजनाओं की रिपोर्ट मिली। उनका दावा है कि उन्हें वहाँ वायरस के म्यूटेट कराने के तरीकों के बारे में पता चला।यह भी दावा है कि वुहान इंस्टीच्यूट के वैज्ञानिकों ने गुफाओं के चमगादड़ से वायरस को अलग कर और दूसरे वायरसों के साथ दोनों के जीन्स को मिला कर एक नया वायरस तैयार किया। लेकिन इस प्रक्रिया में यह वायरस 'लीक' हो गया।
'ड्रैस्टिक' को दुनिया ने माना
बाद में 'ड्रैस्टिक' ने एक वेबसाइट बनाई और अपने सभी सदस्यों द्वारा एकत्रित की गई सभी जानकारियों को इस पर डाल दिया।
मेसाच्युसेट्स इंस्टीच्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी और हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने यह माना है कि 'ड्रैस्टिक' की वेबसाइट पर बहुत जानकारियाँ हैं और उन्हें झुठलाना चीन के लिए मुमकिन नहीं होगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस पूरे मामले की जाँच करने की ज़िम्मेदारी सीआईए को दी है। सीआईए के लिए बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि यह नए किस्म की खुफ़िया पड़ताल होगी।
यह मुमकिन है कि वे 'द सीकर', डॉक्टर मोनाली सी. राहुलकर, डॉक्टर राहुल बाहुलिकर और 'ड्रैस्टिक' के दूसरे सदस्यों की सेवाएं लें।
सच सामने आएगा?
इसके पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वुहान जाकर जाँच-पड़ताल की और कहा कि उन्हें ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि कोरोना वायरस मानव निर्मित या वुहान की प्रयोगशाला में ही बनाया गया है या वहीं से लीक हुआ है।
अतीत का अनुभव बताया है कि इस बारे में किसी तरह की जल्दबाजी ठीक नहीं है, ठोस सबूतों पर ही बात की जानी चाहिए। अमेरिका के नेतृत्व में दुनिया के देशों के बड़े हिस्से ने सद्दाम हुसैन के नेतृत्व वाले इराक़ में सामूहिक विनाश के हथियार होने का आरोप लगाया।
सीआईए ने इसका दावा किया, संयुक्त राष्ट्र से प्रस्ताव पारित कराया गया, अमेरिका ने इराक़ पर हमला कर दिया। पर आज तक वहाँ सामूहिक विनाश का कोई हथियार नहीं मिला है।
कम से कम चीन के मामले में ऐसा नहीं होना चाहिए।
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