पिछले दो दिनों में भले ही कोरोना संक्रमण के मामले 4 लाख से कम आए हैं, लेकिन हालात बेहतर नहीं हैं। यदि देश के 734 ज़िलों में से 533 ज़िलों में संक्रमण ख़तरनाक स्तर की तेज़ी से फैल रहा हो तो हालात बेहद गंभीर ही होंगे। देश के 533 ज़िलों में पॉजिटिविटी रेट 10 से ज़्यादा है। 5 प्रतिशत पॉजिटिविटी रेट से ज़्यादा होने पर स्थिति बेहद ख़राब माना जाती है। केंद्र सरकार की ही रिपोर्ट कहती है कि देश के 90 फ़ीसदी हिस्से में उच्च पॉजिटिविटी रेट है।
पॉजिटिविटी रेट से मतलब है कि जितने लोगों के सैंपल लिए गए उनमें से कितने लोग संक्रमित पाए गए। मिसाल के तौर पर 10 फ़ीसदी पॉजिटिविटी रेट का मतलब है कि 100 लोगों के सैंपल लिए गए तो उसमें से 10 लोगों की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव की आई। स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता लव अग्रवाल ने एक दिन पहले ही मंगलवार को कहा कि हिमाचल प्रदेश और नागालैंड जैसे नए राज्यों में पॉजिटिविटी रेट ज़्यादा देखी जा रही है।
पाँच राज्यों में 30 से अधिक ज़िलों में 10 प्रतिशत से अधिक पॉजिटिविटी के मामले आ रहे हैं। केंद्र ने मंगलवार को कहा कि मध्य प्रदेश में 45 जिले, उत्तर प्रदेश में 38, महाराष्ट्र में 36, तमिलनाडु में 34, और बिहार में 33 ज़िलों में 10 प्रतिशत से ज़्यादा पॉजिटिविटी रेट है।
आठ राज्यों में 20 से अधिक ज़िलों में 10 प्रतिशत से अधिक पॉजिटिविटी रेट है- कर्नाटक में 28, राजस्थान में 28, ओडिशा में 27, छत्तीसगढ़ में 24, गुजरात में 23, हरियाणा में 22, पश्चिम बंगाल में 22, और असम में 20 ज़िले। अन्य आठ राज्यों में 10 से अधिक ज़िलों में 10 प्रतिशत से अधिक पॉजिटिविटी रेट है- झारखंड में 18, पंजाब में 18, केरल में 14, अरुणाचल प्रदेश में 13, आंध्र प्रदेश में 12, हिमाचल प्रदेश में 12, उत्तराखंड में 12 और दिल्ली में 11 ज़िले।
पॉजिटिविटी रेट से अलग भी देखें तो हालात बेहद ख़राब दिखते हैं। 13 राज्यों में 1-1 लाख से ज़्यादा सक्रिए मामले हैं। 6 राज्यों में 50 हज़ार से 1 लाख के बीच सक्रिए मामले हैं। 17 राज्यों में 50 हज़ार से कम सक्रिए केस हैं। देश में कुल सक्रिए मामले क़रीब 37 लाख हैं। सक्रिए मामलों की संख्या इतनी इसलिए बढ़ गई है कि हाल के दिनों में हर रोज़ 4 लाख से ज़्यादा केस आ रहे थे। हालाँकि पिछले दो दिनों में कम संक्रमण के मामले आए हैं। 24 घंटों में संक्रमण के 3,48,421 मामले सामने आए हैं। जबकि बीते दिन यह आँकड़ा 3,29,942 था।
इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर ने ग्रामीण भारत पर विशेष ध्यान देने के साथ परीक्षण के लिए मानदंडों को संशोधित किया है। इसका कहना है कि आरटी-पीसीआर परीक्षणों पर ध्यान केंद्रित नहीं होना चाहिए, बल्कि रैपिड एंटीजन टेस्ट पर होना चाहिए।
आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने कहा, 'दूसरे आरटी-पीसीआर परीक्षण करने की ज़रूरत नहीं है और हम अब आरटी-पीसीआर के 70-30 के अनुपात से अधिक रैपिड एंटीजेन टेस्ट की दिशा में चल रहे हैं।'
डॉ. भार्गव ने कहा, 'अब चूँकि लहर तेज़ है, हमने राज्यों से अनुरोध किया है कि हमें रैपिड एंटीजन टेस्ट करने हैं। यह तेज़ी से परीक्षण, तेज़ी से आईसोलेशन और ट्रांसमिशन की शृंखला को तेज़ी से तोड़ने में मदद करेगा।'
बता दें कि कोरोना की दूसरी लहर के हालात से निपटने के लिए इंग्लैंड का मॉडल अपनाया गया है। यह दो स्तरीय है। एक, लॉकडाउन जैसी सख्ती और दूसरा, टीकाकरण में तेज़ी लाना। लेकिन हाल की रिपोर्टों में ऐसा होता नहीं दिख रहा है। टीकाकरण ठीक से नहीं हो पा रहा है। प्रियंका गांधी ने तो ट्वीट कर आरोप लगाए हैं कि 30 दिनों में टीकाकरण में क़रीब 82 फ़ीसदी गिरावट आई है।
जनवरी 2021 में क्यों किया?
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) May 12, 2021
अमरीका और अन्य देशों ने हिंदुस्तानी वैक्सीन कंपनियों को बहुत पहले ऑर्डर दे रखा था। इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?
घर-घर वैक्सीन पहुंचाए बिना कोरोना से लड़ना असम्भव है। 2/2
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