यदि कोरोना मरीज़ ज़्यादा बढ़ जाएँ तो अस्पताल बेड, आइसोलेशन वार्ड, वेंटिलेटर कम पड़ने पर इसकी व्यवस्था महीने या एक साल में कर ली जा सकती है, लेकिन डॉक्टर और नर्स कम पड़ जाएँ तो क्या होगा? देश के अधिकतर राज्यों से बेहतर स्थिति होने के बावजूद महाराष्ट्र को स्थिति संभालने के लिए केरल से डॉक्टर और नर्स बुलाने पड़े। महाराष्ट्र में ऐसे हालात तब बने जब राज्य में विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अनुसार डॉक्टर उपलब्ध हैं। लेकिन उन राज्यों का क्या होगा जहाँ डॉक्टरों और नर्सों की भारी कमी है और जहाँ जल्द ही कोरोना संक्रमण तेज़ी से फैलने वाला है।
कई राज्यों के लिए यह समस्या बड़ी होने वाली है। देश में फ़िलहाल कोरोना के मामले काफ़ी तेज़ी से बढ़ रहे हैं और यह संख्या 2 लाख के पार हो गई है। कई रिपोर्टों में कहा गया है कि जून और जुलाई महीने में कोरोना के मामले उफान पर होंगे। फ़िलहाल महाराष्ट्र में हालात ख़राब हैं। राज्य में अब तक संक्रमण के मामले 70 हज़ार से ज़्यादा हो गए हैं, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि फ़िलहाल 37 हज़ार 543 लोग ही संक्रमित हैं और बाक़ी के लोग ठीक हो चुके हैं। महाराष्ट्र ने केरल सरकार को 23 मई को डॉक्टरों और नर्सों के लिए पत्र लिखा था। तब 21 मई तक पूरे देश भर में क़रीब 60 हज़ार ही एक्टिव केस थे।
अब पूरे देश भर में दो लाख पॉजिटिव केस हो चुके हैं और क़रीब 1 लाख एक्टिव मामले हैं। 'लाइव मिंट' की रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते संक्रमण के मामले के बीच लॉकडाउन में ढील देने से अब क़रीब 11 राज्य ऐसे हैं जो एक महीने के अंदर महाराष्ट्र जैसी स्थिति में आ जाएँगे जब 23 मई को महाराष्ट्र को डॉक्टरों की कमी होने लगी थी। महाराष्ट्र की इस स्थिति से मतलब है कि राज्य में जितने पंजीकृत डॉक्टर हैं उनमें से हरेक पर 0.17 मरीज़ कोरोना संक्रमित थे। यानी इस लिहाज़ से इसे एक सीमा रेखा माना जा सकता है जब राज्य के बाहर से डॉक्टर मँगाने की ज़रूरत आन पड़ी। 'लाइव मिंट' के अनुसार दिल्ली भी इस सीमा रेखा को पार कर चुकी है, लेकिन यहाँ अभी बाहर से डॉक्टर और नर्स नहीं बुलाए गए हैं। यह साफ़ नहीं है कि दिल्ली सरकार कैसे व्यवस्था संभाल रही है।
'लाइव मिंट' की रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी स्थिति में हरियाणा, तमिलनाडु, बिहार और ओडिशा पहले राज्य होंगे जो उस स्थिति में पहुँच सकते हैं। संभव है कि हरियाणा 10 दिन में, तमिलनाडु 12 दिन में, बिहार व असम क़रीब तीन हफ़्ते में ऐसी स्थिति में पहुँच जाएँगे।
दरअसल, राज्यों की स्थिति ऐसी इसलिए होने वाली है क्योंकि अधिकतर राज्यों में स्वास्थ्य व्यवस्था बहुत ही ख़राब हालत में है। इन राज्यों में डॉक्टरों और नर्सों की भारी कमी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के हिसाब से एक डॉक्टर पर 1000 से ज़्यादा जनसंख्या नहीं होनी चाहिए। स्वास्थ्य विभाग के आँकड़ों के अनुसार सितंबर 2019 तक देश में 12 लाख 1 हज़ार 354 डॉक्टर पंजीकृत थे।
इस हिसाब से हर 1134 जनसंख्या के लिए एक पंजीकृत डॉक्टर है। लेकिन एक रिपोर्ट के अनुसार पंजीकृत डॉक्टरों में से दो तिहाई ही प्रैक्टिस यानी डॉक्टरी कर रहे होते हैं। इस हिसाब से तो एक डॉक्टर पर और ज़्यादा जनसंख्या का भार पड़ रहा होगा।
अब यदि हर राज्यों की तुलना की जाए तो महाराष्ट्र में प्रति 714 लोगों पर एक पंजीकृत डॉक्टर है। इसी तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के हिसाब से जम्मू-कश्मीर+लद्दाख, आंध्र पदेश+तेलंगाना, दिल्ली, पंजाब, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, सिक्किम और गोवा में डॉक्टर उपलब्ध हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और गुजरात सहित 17 राज्यों में डॉक्टर काफ़ी कम हैं। झारखंड में जहाँ हर एक पंजीकृत डॉक्टर पर 6119 लोग निर्भर हैं वहीं, छत्तीसगढ़ में 3281, उत्तर प्रदेश में 2899, बिहार में 2859, हिमाचल में 2508, हरियाणा में 2418, ओडिशा में 2098, पश्चिम बंगाल में 1385 और गुजरात में 1016 लोग निर्भर हैं। मिज़ोरम में तो एक डॉक्टर पर क़रीब 18 हज़ार जनसंख्या और नगालैंड में 14 हज़ार से ज़्यादा जनसंख्या निर्भर है। यह आकलन 30 सितंबर 2019 को संसद में दिए गए डॉक्टरों के आँकड़ों और 2020 में अनुमानित जनसंख्या के आँकड़ों पर आधारित है।
राज्यों में नर्सों की भी ऐसी ही कमी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर 250 जनसंख्या पर 1 नर्स होना चाहिए, लेकिन इस मानक पर सिर्फ़ एक राज्य केरल ही खरा उतरता है। तमिलनाडु और दिल्ली में एक नर्स पर क्रमश: 280 और 296 जनसंख्या निर्भर है। बाक़ी राज्यों में नर्स काफ़ी कम हैं। इस मामले में तो बिहार, गोवा और झारखंड में बेहद ख़राब स्थिति है। बिहार में हर एक नर्स पर 13 हज़ार 560 लोग, गोवा में एक नर्स पर 10 हज़ार 170 लोग और झारखंड में एक नर्स पर 9 हज़ार 608 लोग निर्भर हैं।
पहले तो स्वास्थ्य व्यवस्था के मामले में अपेक्षाकृत अच्छी स्थिति वाले केरल, महाराष्ट्र, पंजाब तमिलनाडु जैसे राज्यों में कोरोना वायरस फैला था, लेकिन अब प्रवासी मज़दूरों के वापस अपने गृह राज्यों में लौटने के साथ ही चिंताएँ बढ़ गई हैं। सबसे बड़ी चिंता तो उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, हरियाणा जैसे राज्यों में ही है। इन राज्यों में जब क़रीब-क़रीब एक साथ मामले बढ़ेंगे तो डॉक्टरों और नर्सों की कमी कैसे पूरा की जाएगी? क्या इसके लिए कोई तैयारी है?
अपनी राय बतायें