राज्यसभा ने मंगलवार को चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति में बदलाव वाले बिल को पास कर दिया। सरकार ने विपक्ष और तमाम जनसंगठनों के विरोध को नजरन्दाज कर दिया। अब चुनाव आयोग में सीईसी और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति की चयन समिति में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और एक कैबिनेट मंत्री होंगे। पहले इसमें सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस भी सदस्य थे। लेकिन अब वो नहीं होंगे। एक तरह से यह समिति सरकार के बहुमत वाली होगी। क्योंकि सरकार ही मंत्री को इस चयन समिति में नियुक्त करेगी।
राज्यसभा में मंगलवार को पास किए गए इस बिल का नाम मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक 2023 था। सबसे पहले इसे 10 अगस्त को लाया गया था, लेकिन कुछ आपत्तियों के बाद सरकार ने इसे फिर पेश किया। सरकार का दावा है कि इसमें बदलाव किया गया है। इस बिल में प्रावधान है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त के वेतन और भत्ते कैबिनेट सचिव के बजाय सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर होंगे।
केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस संशोधन बिल को बहस और पारित करने के लिए राज्यसभा में रखा था। संशोधन से पहले वाले विधेयक में आयोग के लिए उम्मीदवारों के नामों को शॉर्टलिस्ट करने के लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक सर्च कमेटी का प्रस्ताव रखा गया था। लेकिन संशोधित विधेयक में कैबिनेट सचिव की जगह कानून मंत्री को उस समिति का प्रमुख बनाने का प्रस्ताव है।
सरकार ने जब इस बिल को अगस्त में पेश किया था तो विपक्ष ने इसका भारी विरोध किया था। संशोधिसकेगत बिल में इस बात का भी प्रावधान है, जिसमें कहा गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त जो भी एक्शन लेंगे या आदेश देंगे, उनको पूरा संरक्षण रहेगा यानी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकेगी।
इस संशोधित बिल में कहा गया है कि कोई भी अदालत किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ जो मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त रहा हो या है या था, उसके द्वारा तब बोला गया या किया गया कार्य आपराधिक या सिविल कार्रवाई की सीमा में नहीं आएगा। यानी अदालत इस संबंध में किसी भी याचिका पर सुनवाई करते हुए सीईसी या किसी आयुक्त के खिलाफ आदेश पारित नहीं कर सकेगी।
इस बिल को लेकर विपक्ष की आपत्ति है कि चयन पैनल में भारत के मुख्य न्यायाधीश की जगह एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री को शामिल करना सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत है क्योंकि इससे चुनाव आयुक्तों को चुनने की शक्ति मजबूती से कार्यपालिका के हाथों में आ जाएगी।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई क़ुरैशी और अन्य पूर्व चुनाव आयुक्तों ने भी चयन पैनल और चुनाव आयुक्तों के पद को कैबिनेट सचिव के स्तर तक "डाउनग्रेड" करने पर चिंता व्यक्त की थी। हालाँकि, उन्होंने यह भी कहा था कि इस विधेयक में कई विशेषताएं भी हैं।
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