कांग्रेस की फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग कमिटी ने पाँच जनवरी को जेएनयू कैंपस में हिंसा के लिए विश्वविद्यालय के कुलपति एम जगदीश कुमार को हमले का 'मास्टरमाइंड' क़रार दिया है। इसने कुलपति को तुरंत हटाने की माँग की है। कांग्रेस ने 'हिंसा भड़काने और हमलावरों के साथ साज़िश रचने के लिए' जगदीश कुमार और अन्य के ख़िलाफ़ आपराधिक जाँच किए जाने की भी माँग की है। पार्टी ने कहा है कि दिल्ली पुलिस को भी हमले के दौरान उनके रवैये के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाए।
जब से हिंसा हुई है तब से विश्वविद्यालय प्रशासन, कुलपति और पुलिस के तौर-तरीक़ों को लेकर सवाल उठाया जा रहा है। दरअसल, विश्वविद्यालय में हुई इस हिंसा ने पूरे देश को झकझोर दिया है। देश से सबसे उत्कृष्ट संस्थानों में से एक इस विश्वविद्यालय में ऐसी घटना होना सामान्य बात नहीं है। यह हमला भी समान्य तरीक़े से नहीं हुई थी। पाँच जनवरी को जेएनयू में तब दर्जनों नक़ाबपोश लोगों ने कैंपस में छात्रों और अध्यापकों पर हमला कर दिया था। इसमें विश्वविद्यालय की छात्र संघ अध्यक्ष आइशी घोष गंभीर रूप से घायल हो गईं थीं। इस हमले में घायल कम से कम 34 लोगों को हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। तब हिंसा के दौरान पुलिस के रवैये को लेकर सवाल खड़े किए गए थे। कहा जा रहा था कि पुलिस चाहती तो इस हिंसा को रोक सकती थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
यह सवाल इसलिए भी उठे क्योंकि विश्वविद्यालय के दो वार्डनों ने भी एक रिपोर्ट दी है। मेस वार्डन डॉ. स्नेहा और सैनिटेशन वार्डन डॉ. राज यादव ने छह जनवरी की तारीख़ को घटना रिपोर्ट तैयार की है। इसमें उन्होंने लिखा है कि जेएनयू कैंपस में पाँच जनवरी को शाम चार बजे ही हाथों में लाठी और रॉड लिए नकाबपोशों की भीड़ को देखा था और उसी समय उन्होंने पुलिस और जेएनयू सुरक्षा कर्मियों को इसकी सूचना दे दी थी। इसके बावजूद चार घंटे तक कोई सहायता नहीं मिली।
कांग्रेस ने भी इस मामले में रविवार को अपनी विस्तृत रिपोर्ट जारी की है। ‘एनडीटीवी’ ने इस पर ख़बर प्रकाशित की है। इस ख़बर के अनुसार कांग्रेस की रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस पर आरोप लगाया गया है कि इसने हमलावरों को कैंपस में बेरोकटोक घूमने दिया। पार्टी ने यह भी आरोप लगाया है कि कुलपति की कार्रवाइयाँ 'हमलावरों के साथ मिलीभगत की ओर इशारा करती' हैं। इसने यह भी कहा कि कुपपति ने 'लोगों को विश्वविद्यालय में बड़ी सफ़ाई से घुसपैठ कराई थी... और (उनमें) दक्षिणपंथी विचारधारा के लिए झुकाव' है।
कांग्रेस की कमिटी ने सुझाव दिया है कि कैंपस की सुरक्षा में खामियों के कारण हथियारों से लैस गुंडे घुसे और हिंसा की। इसमें साफ़-साफ़ आरोप लगाया गया है कि यह पहले से तय था और पहले से ही योजना बनाई गई थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंसा की गई ताकि छात्रों और फ़ैकल्टी में खौफ फैलाया जा सके।
कांग्रेस की यह रिपोर्ट कहती है कि हिंसा पर विश्वविद्यालय के आधिकारिक बयान और पुलिस द्वारा जारी बयान मेल नहीं खाते हैं। इसमें कहा गया है कि जेएनयू के अधिकारियों ने कहा है कि उन्होंने साढ़े चार बजे पुलिस को बुलाया लेकिन पुलिस का कहना है कि उन्हें पौने आठ बजे वहाँ जाने की अनुमति दी गई।
कांग्रेस की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पुलिस कैंपस में दोपहर से मौजूद थी लेकिन उसने कुछ नहीं किया।
सवाल इसको लेकर भी उठाए जा रहे हैं कि इतने बड़े स्तर पर हिंसा होने के बावजूद अभी तक किसी को भी गिरफ़्तार नहीं किया गया है।
दो दिन पहले भी जब पुलिस ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस की थी उसमें रात की हिंसा से ज़्यादा उससे पहले की दो गुटों में झड़पों और फीस बढ़ोतरी को लेकर उनके प्रदर्शनों का ज़िक्र किया था। पुलिस ने तब वामपंथी छात्र संगठनों के नाम भी लिए थे जबकि एबीवीपी का ज़िक्र भी नहीं किया था। ऐसा तब है जब उसमें कथित तौर पर एबीवीपी से जुड़े एक छात्र का नाम था। हमले में घायल हुईं विश्वविद्यालय की छात्र संघ अध्यक्ष आइशी घोष के ख़िलाफ़ ही हिंसा के लिए एफ़आईआर दर्ज की गई है। आइशी हिंसा में किसी भी तरह के जुड़ाव से इनकार करती रही हैं।
आइशी के ख़िलाफ़ एक दिन पहले सर्वर रूम में तोड़फोड़ किए जाने का आरोप भी लगाया गया है और इस मामले में रिपोर्ट पाँच जनवरी की रात को तब दर्ज की गई थी जब नकाबपोश लोग उनपर हमला कर रहे थे। इसको लेकर भी कांग्रेस की रिपोर्ट में सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वर रूम का मामला भी संदेह पैदा करता है और इसमें साज़िश की बू आती है। कांग्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुलपति के बयान के अनुसार ही सर्वर रूम 4 जनवरी को काम कर रहा था जिस दिन इसमें तोड़फोड़ की गई थी।
रिपोर्ट में दावा किया गया है, ‘यह लगभग वैसा ही है जैसे कुलपति ने हमलावरों को बचाने को सीसीटीवी फुटेज की रिकॉर्डिंग को रोकने के लिए सर्वर के डिस्कनेक्शन का फ़ायदा उठाया और उन्हें बिना किसी रिकॉर्ड के काम पूरा कर जाने दिया।’ हमले के दौरान रोड की लाइटें बंद होने पर भी इसने सवाल खड़े किए हैं।
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