क्या चीन की सरकारी कंपनी ह्वाबे ने भारत के पीएम केअर्स फंड में पैसे दिए हैं?
कांग्रेस पार्टी ने नरेंद्र मोदी सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए आरोप लगाया है कि कई चीनी कंपनियों ने पीएम केअर्स फंड को दान दिया है। इस फंड की ऑडिट भी नहीं होती है, लिहाज़ा यह पता नहीं चल पा रहा है कि चीन से मिले पैसों का इस्तेमाल कहाँ हुआ और किसने किया।
क्या है मामला?
याद दिला दें कि इसके पहले भारतीय जनता पार्टी ने कहा था कि राजीव गांधी फाउंडेशन को चीनी दूतावास से पैसे मिले हैं। पार्टी ने यह भी कहा था कि पैसे मिलने के कारण मनमोहन सिंह सरकार ने ऐसी नीतियाँ बनाई थीं, जिनसे चीन को आर्थिक फ़ायदा हुआ था। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस पार्टी ने चीन से 'घूस लेकर उसके पक्ष में नीतियां बनाई थीं।'“
'क्या पीएम ने विवादित कंपनी ह्वाबे से 7 करोड़ रुपए लिए हैं? क्या ह्वाबे का चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी से सीधा संबंध है?'
अभिषेक मनु सिंघवी, नेता, कांग्रेस
टिकटॉक, पेटीएम ने दिए पैसे?
उन्होंने इसके आगे सवाल उठाया, 'क्या टिकटॉक ऐप का मालिकाना हक़ रखने वाली कंपनी ने पीएम केअर्स फंड में 30 करोड़ रुपए दिए हैं? क्या पीटीएम ने इस फंड में 100 करोड़ रुपए का चंदा दिया है? इस कंपनी में चीनियों की 38 प्रतिशत हिस्सेदारी है। क्या शियोमी ने 15 करोड़ रुपए देने का वचन दिया है? क्या ओप्पो ने इस फंड में 1 करोड़ रुपए दिए हैं?' एनडीटीवी ने एक ख़बर में कहा है कि,चीनी मोबाइल फ़ोन कंपनी शियोमी ने प्रधानमंत्री राहत कोष में 10 करोड़ रुपए और राज्यों के मुख्यमंत्री राहत कोष में पैसे देने की बात कही है। वनप्लस ने 1 करोड़ रुपए देने की बात सार्वजनिक रूप से कही है।
कटघरे में मोदी
कांग्रेस पार्टी ने इसके साथ ही कहा है कि पीएम केअर्स फंड का इस्तेमाल निजी पैसे की तरह किया जाता है। न तो इसका ऑडिट होता है न ही सरकार यह बताती है कि इसे किससे पैसे मिले और उसने इन पैसों का क्या किया।
ग़लत क्या है?
पर्यवेक्षकों का कहना है कि बीजेपी के इस बयान से यह साफ़ है कि वह पीएम केअर्स फंड को चीनी कंपनियों से पैसे मिलने से इनकार नहीं कर रही है। वह बस इतना कह रही है कि इसमें कुछ ग़लत नहीं है, ग़लत तो तब है जब राजीव गांधी फ़ाउंडेशन चीनी दूतावास से पैसे लेता है।कांग्रेस पार्टी ने राजीव गांधी फाउंडेशन को पैसे मिलने से इनकार नहीं किया था, यह ज़रूर कहा था कि यह पूरा मामला पारदर्शी है और पैसे की बात फाउंडेशन की वेबसाइट पर है।
कांग्रेस-बीजेपी
दरअसल चीन के मुद्दे पर राहुल गांधी ने जिस तरह सरकार पर ताबड़तोड़ हमले किए और सीधे प्रधानमंत्री को ही कटघरे में खड़ा कर दिया, उससे व्याकुल होकर ही बीजेपी ने कांग्रेस और इसके सबसे बड़े नेता को निशाने पर लिया।बीजेपी की कोशिश है कि बहस चीनी घुसपैठ पर न होकर इस पर हो कि सोनिया और राहुल गांधी से जुड़े फाउंडेशन के तार चीन से जुड़े हुए हैं।
पेटीएम
इस पूरे मामले में यह याद आना स्वाभाविक है कि नोटबंदी के समय प्रधानमंत्री ने डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देते हुए पेटीएम कंपनी का नाम लिया था। इतना ही नहीं, पेटीएम ने एक पूरे पेज का विज्ञापन दिया था, जिसमें उसने प्रधानमंत्री की बड़ी तसवीर लगाई थी, यह विज्ञापन एक साथ कई अखबारों में छपा था।ह्वाबे
ह्वाबे का मामला भी बेहद दिलचस्प है। जब ह्वाबे ने भारत में 5-जी का काम पाने की कोशिशें शुरू कीं तो उसकी विरोधी कंपनियों ने यह तर्क दिया था कि यह कंपनी चीनी सरकार की है। युद्ध की स्थिति में यह पूरी जानकारी चीनी सरकार को दे सकती है और वहाँ से वह चीनी सेना को मिल सकती है। इसके बाद ह्वाबे ने ज़ोर देकर कहा था कि उसने आज तक कभी कोई व्यापारिक जानकारी चीनी सरकार को नहीं दी है। उसने भारत को सुरक्षा गारंटी देने की पेशकश भी की थी।टिकटॉक
इसी तरह टिकटॉक का मामला भी दिलचस्प है। चीन से तनाव बढ़ने के बाद बीजेपी के लोगों ने आम जनता से अपील की थी कि तमाम चीन ऐप अनइंस्टाल कर देना चाहिए। कुछ लोगों ने उस समय टिकटॉक का नाम भी लिया था।अब वही कंपनी भारत को पैसे दे रही है।
समझा जाता है कि यह कांग्रेस-बीजेपी की लड़ाई है, जिसका खामियाजा इन कंपनियों को भुगतना पड़ सकता है। इसके साथ ही अब सरकार पर दबाव बनेगा कि वह पीएम केअर्स फंड में इनसे पैसे न ले।
अपनी राय बतायें