जो यह ख़ुशफ़हमी पाले बैठे हैं कि भारत ने कोरोना के खिलाफ लडाई जीत ली है या जीतने वाला है, उनको भारी निराशा होने वाली है। आने वाले दिन, हफ़्ते या महीने भारत के लिये काफी भारी पड़ने वाले है। ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ़ मेडिकल साइसेंज (एम्स) के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया का कहना है कि आने वाले हफ़्ते और महीने भारत के इतिहास के सबसे चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं।
डॉक्टर गुलेरिया ने यह बात मशहूर पत्रकार करण थापर को ‘द वायर’ के लिये दिये एक इंटरव्यू में कही है । यह इंटरव्यू शनिवार रात को प्रसारित किया गया ।
बढ़ा है संक्रमण
गुलेरिया ने इस इंटरव्यू में यह माना है कि लॉकडाउन के बावजूद कोरोना संक्रमण के ग्राफ़ का बढ़ना रुका नहीं है, यह लगातार बढ़ता ही जा रहा है। यानी, संक्रमण बढ़ रहा है और इसकी रफ़्तार भी बढ़ रही है।
डॉक्टर गुलेरिया ने यह भी कहा है कि चीन और इटली में 40 दिनों के लॉकडाउन के बाद संक्रमण की रफ़्तार धीमी पड़ गयी थी, पर भारत में उल्टा हो रहा है। यहाँ बढ रहा है।
भारत में अभी चौथे चरण का लॉकडाउन चल रहा है, और लाकडाउन के 40 दिन से ज़्यादा होने के बाद भी पर संक्रमण रुकने का नाम नहीं ले रहा है।
जनता ज़िम्मेदार
डॉक्टर गुलेरिया ने संक्रमण के नहीं रुकने और इसकी रफ़्तार बढ़ते जाने का ठीकरा आम जनता पर ही फोड़ा है। उन्होंने जनता को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा कि सोशल डिस्टैंसिंग और ख़ुद को क्वरेन्टाइन करने का काम जैसा होना चाहिए था, वैसा नहीं हो सका। उन्होंने इसके लिए दसियों लाख प्रवासियों के घर लौटने को भी ज़िम्मेदार ठहराया।
चीन से भारत की तुलना किए जाने और चीन की तरह भारत में संक्रमण रोकने में कामयाबी हासिल नहीं होने पर डॉक्टर गुलेरिया ने कहा कि चीन में जिस सख़्ती से लॉकडाउन लागू किया गया, भारत में वैसी सख़्ती नहीं बरती गई। उन्होंने यह भी कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जबकि चीन ऐसा नहीं है।
योजना के मुताबिक नहीं हुआ
एम्स के निदेशक ने इस बातचीत में यह भी कहा कि सरकार ने संक्रमण की रोकथाम के बारे में जो कुछ सोचा था, वैसा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि आने वाले कुछ सप्ताह और महीने सबसे अधिक चुनौती भरे होंगे। एक मैथेमेटिकल मॉड्यूल के आधार पर सरकार ने यह दावा किया कि यदि लॉकडाउन नहीं लगाया गया होता तो 14 लाख से 29 लाख लोगों को कोरोना संक्रमण हुआ होता और लगभग 37 हज़ार से 78 हज़ार लोगों की मौत अब तक हो चुकी होती।
गुलेरिया के अनुसार, मैथेमैटिकल मॉड्यूल कुछ पूर्वानुमानों और मोटे आकलन पर बनते हैं, और ज़मीनी हकीक़त इससे अलग हो सकती हैं। ऐसा होने से जो मॉड्यूल बनाए जाते हैं, उसके नतीजे हमेशा सही नहीं होते हैं, वे ग़लत भी हो सकते हैं।
नाकाम मॉड्यूल
उन्होंने इसका उदाहरण देने के लिए कहा कि अमेरिका में इस तरह के मथैमैटिकल मॉड्यूल के नतीजे ग़लत साबित हुए हैं। एम्स के निदेशक ने यह माना कि अभी यह दावा करना जल्दबाजी होगी कि भारत ने कोरोना पर जीत हासिल कर ली है। उन्होंने कहा,
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‘आज तक हम अच्छा ही कर रहे हैं, पर यह लड़ाई अभी जारी है, क्योंकि स्थिति हमेशा बदलती रहती है और इस आधार पर वायरस फलता फूलता भी रहता है।’
डॉक्टर रणदीप गुलेरिया, निदेशक, ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ़ मेडिकल साइसेंज
उन्होंने कहा, ‘आगे आने वाले कुछ महीने अब तक के सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण होंगे।’
सरकारी प्रवक्ता की आलोचना
एम्स के प्रमुख ने स्वास्थ्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव लव अग्रवाल की परोक्ष रूप से आलोचना भी की। अग्रवाल ही रोज़ाना कोरोना पर प्रेस ब्रीफिंग करते हैं। ऐसे ही एक ब्रीफिंग में उन्होंने भारत की तुलना कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित 15 देशों से की थी। डॉक्टर गुलेरिया ने कहा कि भारत को अपनी सीमाओं में रहते हुए कोरोना से लड़ना चाहिए और यह दावा नहीं करना चाहिए कि ‘ए’ या ‘बी’ या ‘सी’ देश की तुलना में भारत ने कितना अच्छा काम किया। फिर उन्होंने कहा कि यह तुलना इसलिए की गई होगी ताकि लोगों की उम्मीदें बँधी रहें।
सामुदायिक संक्रमण
एम्स के निदेशक ने इस बातचीत के दौरान सामुदायिक संक्रमण पर गोलमोल बात करने की कोशिश की, पर उन्होंने इससे इनकार नहीं किया कि सामुदायिक संक्रमण हो रहा है। उनसे यह पूछा गया कि 1,25,000 लोगों के संक्रमित होने के बावजूद सरकार अब तक लगातार इससे इनकार करती आ रही है कि सामुदायिक संक्रण हो रहा है, क्या यह ठीक है। डॉक्टर गुलेरिया ने कहा कि यह तो भाषा विज्ञान और किसी शब्द का अर्थ समझने का मामला है।
उन्होंने कहा कि यह सच है कि ऐसे कई इलाक़े हैं जहाँ सामुदायिक संक्रमण वाकई नहीं हुआ है, लेकिन इसके साथ ही यह भी सच है कि हॉटस्पॉट में इस तरह का संक्रमण हुआ है।
उनके कहने का कुल मिला कर मतलब यह था कि हॉटस्पॉट्स में सामुदायिक संक्रमण से इनकार नहीं किया जा सकता है।
चरम पर संक्रमण
डॉक्टर गुलेरिया ने 7 मई को लाइवमिंट से बातचीत में कहा था कि जून-जुलाई में कोरोना संक्रमण अपने चरम पर रहेगा। उनसे पूछा गया कि क्या वाकई ऐसा होगा या दसियों लाख प्रवासी मज़दूरों के एक जगह से दूसरी जगह जाने और 18 मई से लॉकडाउन में रियायत मिलने से अब कोरोना अपने चरम पर अगस्त-सितंबर में होगा। डॉक्टर गुलेरिया ने इस पर कहा कि दरअसल हमें अब कोरोना के चरम पर होने की बात राष्ट्रीय स्तर पर नहीं करनी चाहिए, बल्कि अलग-अलग इलाक़ों के आधार पर करनी चाहिए। उन्होंने इस पर कहा कि वायरस अब ख़ुद को बदल रहा है और अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग ढंग से सामने आ रहा है।
ठीक होने की दर कम
कोरोना से लोगों के ठीक होने की दर पर भी बात हुई। उनका ध्यान इस ओर दिलाया गया कि इटली में 60 प्रतिशत लोग ठीक हो गए, तब वहाँ मरने वालों की संख्या 32,486 हो गई।
स्पेन में 70 प्रतिशत लोगों का सफलतापूर्वक इलाज़ किए जाने के बाद वहाँ 27,940 लोगों की मौत हो चुकी है। इसकी तुलना में भारत में तो कोरोना रोगियों के ठीक होने की दर सिर्फ 41.40 प्रतिशत है।
कम मृत्यु दर
एम्स के निदेशक ने कहा कि यह राहत की बात है कि भारत में कोरोना से होने वाली मौत की दर एक लाख पर 0.2 है, जबकि अंतरराष्ट्रीय औसत 4.2 है।
भारत में महज 6.4 प्रतिशत लोगों को अस्पताल में दाखिल कराने की ज़रूरत है। सिर्फ 0.5 प्रतिशत लोगों को वेंटीलेटर चाहिए पूरी दुनिया में 3 प्रतिशत लोगों को इसकी ज़रूरत पड़ी है।
भारत में कम ख़तरनाक वायरस
उन्होंने इस आधार पर दावा किया कि भारत में कोरोना का असर अमेरिका या स्पेन से अलग है। उन्होंने इसके कई कारण गिनाए। डॉक्टर गुलेरिया ने कहा कि इसकी यह वजह हो सकती है कि भारत में युवा लोग ज़्यादा है, यह कारण हो सकता है कि भारत में बीसीजी टीका सबको दिया जाता है। गुलेरिया ने कहा कि यह भी हो सकता है कि वायरस में म्यूटेशन हुआ हो और नए किस्म का वायरस विकसित हुआ हो। बीसीजी यानी बसील कैलमेट ग्वेरिन नामक टीका टीबी की रोकथाम के लिए दिया जाता है।
डॉक्टर गुलेरिया ने कई नए दावे भी किए, हालांकि वे स्वयं उसे लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं। उन्होंने करण थापर से बातचीत में यह दावा किया कि भारत में कोरोना वायरस दूसरे देशों के वायरस से कम ख़तरनाक है। लेकिन, इस दावे की पुष्टि अभी नहीं हो सकी है। उन्होंने यह दावा भी किया कि पहले जितने लोगों को आईसीयू और वेंटीलेटर सपोर्ट की ज़रूरत समझी जाती थी, आज वास्तविक ज़रूरत उससे कम है।
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