क्या कांग्रेस में सोनिया गाँधी बनाम राहुल गाँधी की टीम के बीच वर्चस्व की लड़ाई चल रही है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि राहुल गाँधी के अध्यक्ष रहने के दौरान उनके द्वारा संगठन में नियुक्त किये गये पदाधिकारियों को सोनिया गाँधी द्वारा हटाने और सोनिया के द्वारा पिछले महीने लिये गये कुछ निर्णयों के बाद कांग्रेस में पार्टी नेताओं को असहज करने वाली स्थिति बनती दिख रही है।
उदाहरण के तौर पर आप देखें तो राहुल गाँधी ने अशोक तंवर को हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था और वहाँ के दिग्गज नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पूरा जोर लगाने के बाद भी राहुल ने तंवर को नहीं हटाया था। लेकिन पार्टी की कमान संभालते ही सोनिया ने तंवर को हटा दिया। राहुल गाँधी की टीम के सदस्य यह शिकायत करते रहे हैं कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पार्टी की कमान युवा नेताओं के हाथ में नहीं जाने देना चाहते हैं।
अंग्रेजी अख़बार ‘द इकनॉमिक टाइम्स’ के मुताबिक़, सोनिया गाँधी के कांग्रेस की कमान संभालने के बाद उनके राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल की भी ताक़त बढ़ी है और इसकी एक झलक तब दिखाई दी जब आईएनएक्स मीडिया मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम की 24, अकबर रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ़्रेंस हुई। इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में चिदंबरम के साथ कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और विवेक तन्खा दिखाई दिये थे और बताया जाता है कि प्रेस कॉन्फ़्रेंस के आयोजन में अहमद पटेल की भूमिका थी।
नवजोत सिंह सिद्धू के मामले में भी सोनिया और राहुल की टीम आमने-सामने दिखाई दी। सिद्धू कहते रहे कि उनके कैप्टन राहुल गाँधी हैं लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जब सिद्धू के ख़िलाफ़ पूरा जोर लगा दिया तो सिद्धू को इस्तीफ़ा देना ही पड़ा क्योंकि राहुल गाँधी तब तक कुर्सी छोड़ चुके थे। तब यह ख़बर आई थी कि सिद्धू को सोनिया से मिलने का टाइम तक नहीं मिला था।
लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त मिलने के बाद से ही कांग्रेस पार्टी में उथल-पुथल मची हुई है। पहले राहुल गाँधी इस जिद पर अड़ गए कि वह पार्टी अध्यक्ष का पद नहीं संभालेंगे, उसके बाद कई पदाधिकारियों व राज्य इकाइयों के अध्यक्षों ने इस्तीफ़े आलाकमान को सौंप दिये। तब यह सवाल उठा था कि अगर राहुल अध्यक्ष नहीं रहेंगे तो क्या पार्टी के कार्यकर्ता काम करना छोड़ देंगे। क्या राहुल के भरोसे ही वह पार्टी से जुड़े हुए थे।
लंबी कवायद के बाद कांग्रेस को फिर से गाँधी परिवार का ही सहारा लेना पड़ा क्योंकि जिन पार्टी नेताओं से अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी को लेने को कहा गया, वे तैयार ही नहीं हुए और सवाल खड़ा हुआ कि आख़िर इतनी पुरानी पार्टी क्या गाँधी परिवार के ही भरोसे चल रही है।
फ़ैसलों में दख़ल दे रहे राहुल!
एक ओर तो राहुल गाँधी पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालने से इनकार कर चुके हैं वहीं दूसरी ओर वह पार्टी से जुड़े फ़ैसले भी ले रहे हैं। इसे लेकर भी सवाल भी उठ रहे हैं। हाल ही में जब श्रीनिवास बीवी को युवा कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया तो यह बात सामने आई थी कि राहुल गाँधी का इसमें दख़ल था। इसके अलावा हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के लिए बनी स्क्रीनिंग कमेटी में भी राहुल गाँधी के कहने पर लोगों का चयन किया गया। इसके अलावा सुप्रिया श्रीनेत, रागिनी नायक और शर्मिष्ठा मुखर्जी को जब पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया तो तब भी इसमें राहुल गाँधी का दख़ल होने की बात कही गई थी। जबकि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी हैं और फ़ैसलों में छाप राहुल गाँधी की दिख रही है, इसे लेकर भी पार्टी के नेता चर्चा कर रहे हैं।
भगदड़, गुटबाज़ी से परेशान
इस बीच कई राज्यों में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने इसे अलविदा कह दिया। गोवा में 15 में से 10 विधायक पार्टी छोड़कर चले गये। इनमें तो नेता विपक्ष तक शामिल थे। यही हाल महाराष्ट्र में रहा, जहाँ विधानसभा में नेता विपक्ष राधाकृष्ण विखे पाटिल सहित कई और नेताओं ने पार्टी को अलविदा कह दिया। तेलंगाना में उसके 12 विधायकों ने पार्टी छोड़कर तेलंगाना राष्ट्र समिति का दामन थाम लिया। महाराष्ट्र, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड सहित कई राज्यों में पार्टी भयंकर गुटबाज़ी से जूझ रही है।
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