सुप्रीम कोर्ट में सबरीमला पर सुनवाई तीन हफ़्ते में शुरू होगी। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सबरीमला मंदिर और इससे जुड़े मुद्दे पर तय करने के लिए वकीलों को यह समय दिया है। कहा जा रहा है कि दोनों पक्षों के वकील अब 17 जनवरी को बैठक करेंगे।
बता दें कि सबरीमला मंदिर में 10 वर्ष से लेकर 50 वर्ष तक की महिलाओं के प्रवेश को लेकर विवाद है। मंदिर से जुड़े लोगों की मान्यता है कि इस उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए। इसी को चुनौती देने पर पहले सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दिया था कि महिलाओं के प्रवेश पर रोक नहीं लगाई जा सकती। इस मामले में ज़बरदस्त विवाद हुआ। राजनीतिक मुद्दा बना। फिर इस मामले में पुनर्विचार याचिका लगाई गई। पाँच जजों की बेंच ने पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए इस मामले को नौ जजों की बेंच के पास भेज दिया है। इस मामले में नौ जजों की बेंच को सुनवाई करनी है।
इसी मामले में आज यानी सोमवार को ही सुनवाई थी। मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने अयोध्या मुद्दे का ज़िक्र करते हुए वकीलों से कहा कि वे आपसे में उन मुद्दों को तय कर लें जिन पर जिरह करनी है। अयोध्या मामले की सुनवाई के मामले में वकीलों ने ऐसा ही किया था। सीजेआई बोबडे ने कहा कि अयोध्या मामले में वरिष्ठ वकील राजीव धवन और वैद्यनाथन ने बहुत शानदार काम किया था और हमें भी इसका अनुसरण करना चाहिए।
मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश देने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए 50 से अधिक पुनर्विचार याचिकाएँ दाखिल की गई हैं। सोमवार को जैसे ही बेंच बैठी, मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने साफ़ कह दिया कि हम आज पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि हम सिर्फ़ सात सवालों पर सुनवाई करेंगे जिसे पाँच जजों की बेंच द्वारा 9 जजों की बेंच को रेफ़र किया गया है।
अदालत ने पिछले साल नवंबर में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश और दाऊदी बोहरा समुदाय में महिलाओं के खतना सहित विभिन्न धार्मिक मुद्दों की फिर से जाँच करने के लिए एक बड़ी बेंच को कहा था।
पाँच न्यायाधीशों की बेंच ने 3: 2 के बँटे हुए फ़ैसले में कहा था कि समीक्षा याचिका पर फ़ैसला करने से पहले कुछ बड़े संवैधानिक सवालों का निपटारा किया जाना होगा। इसने इस तरह के सात सवाल तय किए थे और मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया।
बता दें कि अपने 2018 के सबरीमाला फ़ैसले में कोर्ट ने पूजा की समानता के अधिकार को बरकरार रखा। इसके बाद केरल में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। परंपरावादियों का मानना है कि सबरीमाला में गर्भगृह में बच्चे पैदा करने वाली उम्र की महिलाओं का प्रवेश अपवित्र है क्योंकि भगवान अयप्पा, वहाँ स्थापित देवता ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले हैं।
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