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सीजेआई के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न मामला: महिला के पति, देवर की नौकरी बहाल

देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला के पति और देवर की नौकरी बहाल कर दी गई है। दोनों को ही दिल्ली पुलिस में हेड कांस्टेबल के पद पर बहाल किया गया है। बता दें कि चार महीने पहले दोनों को निलंबित कर दिया गया था। आरोप लगाने वाली महिला सीजेआई के दफ़्तर में जूनियर कोर्ट असिस्टेंट के पद पर काम कर चुकी थी।
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दिल्ली सशस्त्र पुलिस के अतिरिक्त आयुक्त सी. के. मेन ने अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया, ‘निलंबन आदेश को निरस्त कर दिया गया है। दोनों की ही नौकरी पिछले हफ़्ते नौकरी बहाल कर दी गई थी लेकिन अभी भी उनके ख़िलाफ़ विभागीय जाँच लंबित है।’ हालाँकि मेन ने इस पर टिप्पणी करने से मना कर दिया कि निलंबन आदेश को क्यों निरस्त किया गया। यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला ने सुप्रीम कोर्ट को दिए अपने हलफ़नामे में कहा था कि उसे नौकरी से हटाये जाने के बाद ही उसके पति और देवर को निलंबित कर दिया गया था।
बता दें कि भारत की न्यायपालिका के इतिहास में यह पहली घटना थी जिसमें किसी सीजेआई पर यौन शोषण का आरोप लगा था।
महिला ने इस साल 19 अप्रैल को लिखे अपने शिकायती पत्र में आरोप लगाया था कि सीजेआई गोगोई ने अपने निवास कार्यालय पर उसके साथ शारीरिक छेड़छाड़ की और जब उसने इसका विरोध किया तो कई बार उसका तबादला किया गया और उसे कई अन्य तरह से परेशान किया गया। महिला के मुताबिक़, 21 दिसंबर, 2018 को उसे नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया गया।
महिला ने दावा किया था कि तबादलों को लेकर वरिष्ठ अधिकारियों के फ़ैसलों पर सवाल उठाने और बिना अनुमति के छुट्टी लेने के आरोपों में उसके ख़िलाफ़ जाँच शुरू की गई थी और इन्हीं आरोपों के चलते उसे सेवा से निलंबित कर दिया गया।

यौन उत्पीड़न के आरोपों के सामने आने के बाद सीजेआई गोगोई ने कहा था, ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बेहद, बेहद, बेहद गंभीर ख़तरा है और यह न्यायपालिका को अस्थिर करने का एक बड़ा षड्यंत्र है।’
सीजेआई गोगोई ने कहा था कि वह इन आरोपों से बेहद दुखी हैं। उन्होंने कहा था कि उन्हें नहीं लगता है कि उन्हें निचले स्तर तक जाकर इसका जवाब देना चाहिए। सीजेआई ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज करते हुए इसे उन्हें कुछ अहम सुनवाइयों से रोकने की साज़िश क़रार दिया था।

क्राइम ब्रांच के एक अधिकारी ने कुछ समय पहले ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया था कि महिला के पति और देवर के ख़िलाफ़ विभागीय जाँच चल रही थी। जाँच करने वाली टीम ने पति और देवर के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का आदेश दिया था, जिसके बाद उन्हें 28 दिसंबंर, 2018 को निलंबित कर दिया गया था। नई दिल्ली जिले के डीसीपी मधुर वर्मा ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि दोनों लोगों के ख़िलाफ़ विभागीय जाँच किए जाने और महिला के सीजेआई पर आरोप लगाने के मामले का आपस में कोई संबंध नहीं है।
अख़बार से बात करते हुए महिला के देवर ने इस बात को स्वीकार किया कि कुछ दिन पहले उनकी और उनके भाई की नौकरी बहाल कर दी गई है। उसने कहा कि हमें उम्मीद है कि हमारे ख़िलाफ़ चल रही विभागीय जाँच को भी जल्द ही बंद कर दिया जाएगा क्योंकि हम निर्दोष हैं। देवर ने बताया कि अभी उनका भाई, भाभी के कान का इलाज कराने के लिए मुंबई में है। महिला के पति ने अख़बार को बताया कि उन्हें इस घटना के बारे में कोई जानकारी नहीं है क्योंकि वह छुट्टी पर हैं।
महिला के पति को 17 दिसंबर 2018 को स्पेशल ब्रांच से थर्ड बटालियन ट्रांसफ़र कर दिया गया था। 28 दिसंबर को निलंबित किए जाने के चार दिन बाद 2 जनवरी, 2019 को उनके ख़िलाफ़ विभागीय जाँच शुरू कर दी गई थी। जाँच के बाद थर्ड बटालियन के डीसीपी ने अपने आदेश में कहा था कि यह पता चला है कि महिला का पति सीजेआई के कार्यालय में बेवजह फ़ोन करता है और इसलिए यह चेतावनी दी जाती है कि वह आगे से सीजेआई कार्यालय में फ़ोन न करे।
बता दें कि इस मामले में जाँच के लिए तीन जजों की एक इन-हाउस कमेटी बनाई गई थी। लेकिन आरोप लगाने वाली महिला ने कहा था कि कमेटी के एक जज एन. वी. रमण जस्टिस गोगोई के क़रीबी हैं और सीजेआई के घर उनका आना-जाना लगा रहता है, लिहाज़ा, उसे न्याय मिलने की उम्मीद नहीं है। इसके बाद जस्टिस रमण ने ख़ुद को इस कमेटी से अलग कर लिया था। उसके बाद इस कमेटी में जस्टिस एस. ए. बोबडे, इंदिरा बनर्जी और इंदु मल्होत्रा थे।
लेकिन महिला ने जाँच प्रक्रिया से ख़ुद को अलग कर लिया था। उसने कहा था कि उसे इन हाउस कमेटी से डर लगता है और वह इसके कामकाज के तौर-तरीक़ों से सहमत नहीं है। इसके बाद कमेटी ने उसकी अनुपस्थिति में ही जाँच को आगे बढ़ाने का फ़ैसला किया था।

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने जाँच प्रक्रिया को लेकर आपत्ति दर्ज कराई थी। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कमेटी से कहा था कि आरोप लगाने वाली महिला की अनुपस्थिति में जाँच को आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिए।
6 मई को इन हाउस कमेटी ने कहा था कि वह इस नतीजे पर पहुँची है कि सीजेआई गोगोई पर जो आरोप लगाए गए हैं, वे निराधार हैं और उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिले हैं। इस पर महिला ने कहा था कि उसके साथ बहुत बड़ी नाइंसाफ़ी हुई है और वह इससे बेहद निराश है।
बता दें कि जस्टिस रंजन गोगोई सुप्रीम कोर्ट के उन 4 वरिष्ठ न्यायाधीशों में से एक हैं, जिन्होंने पूर्व सीजेआई दीपक मिश्रा के न्यायिक व्यवहार से दुखी होकर प्रेस कॉन्फ़्रेंस की थी और कहा था कि देश का लोकतंत्र ख़तरे में है। ऐसा आज़ाद भारत के इतिहास में पहली बार हुआ था जब सुप्रीम कोर्ट के जजों ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर अपनी बात रखी थी। तब इस मसले पर काफ़ी विवाद भी हुआ था।
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दबे-छुपे शब्दों में मोदी सरकार ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस करने को ग़लत बताया था लेकिन एक दूसरे तबक़े का मानना था कि सरकार और सरकार से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट पर अनावश्यक दबाव डाला जा रहा है और मनमाने फ़ैसले करवाने की कोशिश की जा रही है। यह वह समय था जब जस्टिस बीएच लोया की मौत का मामला बहुत गर्म था और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की तरफ़ संदेह की उंगलियाँ उठ रही थीं। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने लोया की मौत की एसआईटी से जाँच करवाने की माँग को खारिज कर दिया था। 
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