भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना ने शुक्रवार को उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से आह्वान किया है कि खाली पदों को भरने के लिए जल्द से जल्द नाम भेजें। उन्होंने कहा कि अभी भी बड़ी संख्या में खाली पद हैं, जल्द से जल्द पदोन्नति के लिए नाम भेजें। मुख्य न्यायाधीश के तौर पर पदभार संभालने के बाद से ही सीजेआई न्यायालयों में खाली पद भरने की मांग पर जोर देते रहे हैं ताकि लंबित मामलों का जल्द निपटारा हो सके।
वह शुक्रवार को नई दिल्ली में 39वें मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन में बोल रहे थे। सीजेआई ने कहा, 'मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि कुछ उच्च न्यायालयों की प्रतिक्रिया बेहद उत्साहजनक रही है।' उन्होंने कहा कि 126 रिक्तियों को एक साल से भी कम समय में भर दिया गया और हम 50 और नियुक्तियों की उम्मीद कर रहे हैं।
सीजेआई रमना ने कहा कि सीजेआई के रूप में कार्यभार संभालने के बाद उनका पहला संवाद खाली पदों को भरने और उच्च न्यायालयों में पदों पर नामों की सिफारिश करने की प्रक्रिया में तेजी लाने के बारे में था। उन्होंने यह भी कहा कि इसमें सामाजिक विविधता पर जोर था।
उन्होंने कहा कि कोरोना की स्थिति और लॉकडाउन के बावजूद न्यायपालिका ने न्याय तक पहुँच को बढ़ावा देने की पूरी कोशिश की। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'जब मैंने पिछले साल अप्रैल के अंत में यह पद ग्रहण किया तो हम कोविड महामारी की सबसे विनाशकारी दूसरी लहर के बीच में थे। हमें कुछ हफ़्तों के लिए थोड़ी राहत मिली और 2021 के अंत में हम फिर से तीसरी लहर से प्रभावित हुए। हम सभी मुश्किल दौर से गुज़रे। फिर भी, आप सभी द्वारा दिखाए गए धैर्य और दृढ़ संकल्प के कारण हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि संवैधानिक अदालतों का कामकाज पटरी से न उतरे।'
सीजेआई रमना ने कहा, 'प्रशासनिक रूप से यह एक बड़ी चुनौती थी। हमें रजिस्ट्रियों, अधिवक्ताओं और वादियों के सहयोगियों, अधिकारियों और कर्मचारियों की देखभाल के लिए संघर्ष करना पड़ा। साथ ही, हम यह सुनिश्चित करने के लिए स्थिर ऑनलाइन सिस्टम विकसित कर सके कि अदालतों के कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। हमने न्याय तक पहुंच को बढ़ावा देने की पूरी कोशिश की। हम इस अवधि के दौरान सुप्रीम कोर्ट में एक अभिनव FASTER प्रणाली शुरू करने में भी कामयाब रहे हैं।'
बता दें कि जजों के पद खाली होने का असर लंबित मामलों पर भी पड़ा। 2006 में उच्च न्यायालयों में जहाँ क़रीब 35 लाख केस लंबित थे वे बढ़कर अब 57 लाख से ज़्यादा हो गए हैं। ज़िला अदालतों में 2006 में जहाँ 2.56 करोड़ केस लंबित थे वे अब 3.81 करोड़ हो गए हैं।
अदालत में लंबित मामलों के मद्देनज़र सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अगस्त महीने में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल माधवी दीवान को कहा था कि सिफारिशों को कॉलिजियम तक पहुँचने में महीनों और साल लगते हैं और उसके बाद महीनों और वर्षों में कॉलिजियम के बाद कोई निर्णय नहीं लिया जाता है। उन्होंने कहा था कि इसलिए उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की कम संख्या होगी तो महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी जल्दी निर्णय लेना लगभग असंभव हो जाएगा।
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