नागरिकता संशोधन विधेयक यदि संसद से पारित हो भी जाता है तो उसका विरोध बंद नहीं होगा, उसके ख़िलाफ़ लंबे और तेज़ संघर्ष की तैयारियाँ ज़ोरों से चल रही हैं। संसद से पारित होने की स्थिति में उसे अदालत में चुनौती दी जाएगी। ऑल असम स्टूडेंड्स यूनियन (आसू) की केंद्रीय कार्यकारिणी की बैठक बीते दिनों इसी मुद्दे पर हुई कि इस विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती कैसे दी जाएगी। इसके बाद मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल का पुतला भी फ़ूंका गया। यह दिलचस्प लेकिन विडंबनापूर्ण स्थिति इसलिए है कि किसी समय सोनोवाल इसी आसू के अध्यक्ष थे।
ज़ोरदार आन्दोलन की तैयारी
इस बैठक में नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन के प्रतिनिधि भी मौजूद थे। इस बैठक में विधेयक का विरोध करने, आन्दोलन चलाने और उसे चुनौती देने की रणनीति पर भी चर्चा हुई। आसू के महासचिव लुरिनज्योति गोगोई ने मोदी सरकार की यह कह कर आलोचना की कि वह असम के लोगों की आकांक्षाओं को कुचलना चाहती है, उनकी भावनाओं को दबाना चाहती है। आसू महासचिव ने कहा :
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केंद्र सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक पारित करवा कर असम समझौते को ख़त्म कर देना चाहती है। सरकार इसे 10 दिसंबर को पारित करवा सकती है और यह वह तारीख़ है, जो असम आन्दोलन के प्रमुख नेता खड़गेश्वर तालुकदार का शहादत दिवस है।
लुरिनज्योति गोगोई, महासचिव, आसू
असम समझौता के ख़िलाफ़
असम के ज़्यादातर लोगों का मानना है कि राज्य एक बार फिर लंबे आन्दोलन की तरफ बढ़ रहा है। याद दिला दें कि 1979 से 1985 के बीच असम में ज़बरदस्त आन्दोलन चला था और पूरा राज्य अशांत हो चुका था। लंबे आन्दोलन के बाद ही राजीव गाँधी की केंद्र सरकार ने आसू और असम गण परिषद के साथ क़रार किया था।
इस विधेयक में यह प्रावधान होगा कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से आए हुए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता मिलेगी। इसके लिए अंतिम तिथि 31 दिसंबर 2014 रखी गई है, यानी उस तारीख़ तक भारत आने वालों को नागरिकता मिल जाएगी।
पूर्वोत्तर बंद!
नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स यूनियन ने मंगलवार यानी 10 दिसंबर को पूरे पूर्वोत्तर में 11 घंटों के बंद का एलान किया है। समझा जाता है कि यह तो लंबे आन्दोलन की शुरुआत भर है। इसका केंद्र बिन्दु असम होगा, जो पूरी तरह उबल रहा है। इसकी वजह यह है कि एनआरसी की तरह इस विधेयक का भी सबसे ज़्यादा असर असम पर ही पड़ेगा।
हालांकि यह विधेयक उन राज्यों पर लागू नहीं होगा, जहाँ इनर लाइन परमिट लागू है और जो संविधान की छठी अनुसूची में शामिल हैं। असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा छठी अनुसूची में शामिल है। इसके अलावा अरुणाचल, मिज़ोरम और नागालैंड में इनर लाइन परमिट लागू है।
एनआरसी पर फँसी हुई बीजेपी के लिए यह विधायक पारित करवाना बहुत ज़रूरी है। बीजेपी ने असम में हिन्दू समुदाय को खुश करने के लिए मुसलमानों को निशाना बनाना चाहा, लेकिन जब अंतिम एनआरसी सूची तैयार हुई तो उसमें 19 लाख लोग बाहर छूट गए, जिनमें से 12 लाख तो हिन्दू हैं। उसी तरह पश्चिम बंगाल में वह चुप हो गई है, क्योंकि वहाँ तो बांग्लादेश से आए हुए लोगों की बहुत बड़ी तादाद है। लेकिन यदि नागरिकता विरोधी विधेयक पारित हो जाता है तो वह हिन्दुओं को और इस तरह बड़ी आबादी को आश्वस्त कर पाएगी। यह एक तरह से डैमेज कंट्रोल होगा। इससे एनआरसी के मुद्दे पर उसे शर्मिंदगी नहीं झेलनी होगी और नुक़सान भी नहीं होगा।
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