विपक्षी दलों में लगभग सभी दल इस विधेयक का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। हालाँकि इस बात की भी चर्चा है कि जिस तरह मोदी सरकार तीन तलाक़ विधेयक और अनुच्छेद 370 को राज्यसभा से पास करवाने में सफल रही थी क्या नागरिकता संशोधन विधेयक पर भी वह ऐसा करने में सफल रहेगी?
जेडी(यू) के रुख ने बढ़ाई मुश्किल
एनडीए में सबसे बड़ा दल बीजेपी है और उसके पास राज्यसभा में 83 सांसद हैं। दूसरे नंबर पर है जेडी(यू) और उसके पास 6 सांसद हैं। जेडीयू के रुख को लेकर संशय बरक़रार है क्योंकि लोकसभा में उसके नागरिकता संशोधन विधेयक का समर्थन करने के बाद पार्टी में भूचाल आया हुआ है। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर और पार्टी प्रवक्ता पवन वर्मा ने पार्टी के फ़ैसले पर सवाल उठाए हैं। हालाँकि पार्टी के एक अन्य प्रवक्ता राजीव रंजन ने लोकसभा में विधेयक के समर्थन को लेकर कहा है कि यह पार्टी का आधिकारिक स्टैंड है। इसके बाद से ही सवाल पूछा जा रहा है कि क्या राज्यसभा में भी जेडी(यू) विधेयक का समर्थन करेगी या इसके विरोध का रास्ता अपनाएगी। इसके अलावा, शिरोमणि अकाली दल (बादल) के 3, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया (आरपीआई) के 1, लोकजनशक्ति पार्टी के 1 जबकि 12 अन्य सांसद भी हैं। इन अन्य 12 सासंदों में मनोनीत सांसद भी शामिल हैं। इनका कुल योग है 106।
क्या करेगी शिवसेना?
शिवसेना भी विधेयक को लेकर असमंजस में है। महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर हुई सियासी तकरार के बाद बीजेपी और एनडीए से नाता तोड़ने वाली शिवसेना ने लोकसभा में तो नागरिकता संशोधन विधेयक का समर्थन किया है। लेकिन बताया जा रहा है कि राज्यसभा में इसका समर्थन करने को लेकर पार्टी ने रुख बदल लिया है। शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने मंगलवार को यह कहकर सस्पेंस बढ़ा दिया कि लोकसभा में जो हुआ है, उसे भूल जाइए। वहीं, शिवसेना प्रमुख और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि उनकी पार्टी की ओर से कुछ सवाल लोकसभा में उठाए गए हैं लेकिन उनका जवाब नहीं मिला है। इसलिए शिवसेना भी अगर विधेयक का विरोध करेगी तो निश्चित रूप से मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ेंगी। शिवसेना के राज्यसभा में 3 सांसद हैं।
राज्यसभा में यूपीए की ताक़त
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) में कांग्रेस सबसे बड़ा दल है और उसके पास 46 सांसद हैं। इसके अलावा, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के पास 4, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के भी 4 सांसद हैं। द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) के 5 सांसद हैं जबकि यूपीए में शामिल कुछ अन्य सहयोगी दलों के भी 3 सांसद हैं। इस तरह यूपीए के पास राज्यसभा में कुल 62 सांसद हैं।
ये दल भी हैं विरोध में
कई राजनीतिक दल ऐसे भी हैं, जो न तो यूपीए में शामिल हैं और न ही एनडीए में। ऐसे में इन दलों की भूमिका इस विधेयक को लेकर बेहद अहम रहेगी। ऐसे दलों में राज्यसभा में सबसे ज़्यादा सांसद तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के पास हैं। टीएमसी के पास 13 सांसद हैं। इसके बाद समाजवादी पार्टी के पास 9, तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के 6, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के 5, बहुजन समाज पार्टी के 4, आम आदमी पार्टी के 3 सांसद हैं। इनके अलावा, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के 2, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) का 1 और जेडी(एस) का 1 सांसद है। इस तरह, इन दलों के कुल 44 सांसद हैं और यह लगभग तय है कि ये सभी दल इस विधेयक के विरोध में मतदान करेंगे। इस तरह विधेयक के विरोध में कुल 106 सांसद वोट डाल सकते हैं।
ये दल कर सकते हैं समर्थन
ऐसे कुछ और दल हैं जो न तो एनडीए में हैं और न यूपीए में हैं लेकिन वे इस विधेयक का समर्थन कर सकते हैं। इन दलों में ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) के 11, बीजू जनता दल (बीजेडी) के 7, वाईएसआर कांग्रेस (वाईएसआरसीपी) के 2 सांसद हैं। इस तरह ये कुल 20 सांसद हैं। अगर इन 20 सांसदों का समर्थन एनडीए को मिल जाता है तो यह आंकड़ा 126 सांसदों का बैठता है जो विधेयक पास कराने के लिए ज़रूरी 121 सांसदों के समर्थन से 5 ज़्यादा है। इस तरह, मोदी सरकार विधेयक को पास करवा सकती है क्योंकि इसी तरह वह तीन तलाक़ विधेयक और अनुच्छेद 370 को भी राज्यसभा से पास करवाने में सफल रही थी। टीडीपी के पास 2 सांसद हैं और उसका रुख साफ़ नहीं है। इसी तरह शिवसेना और जेडीयू के रुख को लेकर भी स्थिति साफ़ नहीं है। इन दोनों दलों का भी साथ अगर मिला तो तब मोदी सरकार आसानी से बिल को पास करवा लेगी।
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