क्या भारत और चीन के बीच घटता तनाव सिर्फ दिखावा है? क्या सीमा पर ऊपर से दिखने वाली शांति छलावा है? क्या दोनों देशों की सेनाओं में फिर टकराव होगा?
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने लद्दाख के हॉट स्प्रिग्स इलाक़े से अपने सैनिकों को पीछे हटाने से इनकार कर दिया है। पहले दोनों देशों के कमांडर स्तर की बातचीत में यह तय हुआ था कि गलवान घाटी, गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स से दोनों सेनाएं पीछ हटेंगी और पूरे इलाक़े को खाली कर देंगी।
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गोगरा में बनी हुई हैं चीनी सेना
पर ऐसा नहीं हुआ। चीनी सेना ने गलवान घाटी तो खाली कर दिया, पर हॉट स्प्रिंग्स से पीछे नहीं हट रही है। यह वह इलाक़ा जहाँ चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय नियंत्रण के कई किलोमीटर अंदर तक अपने सैनिकों को भेज दिया था। यानी, कई किलोमीटर का भारतीय इलाक़ा अभी भी पीपल्स लिबरेशन आर्मी के कब्जे है और वह वहां से पीछे नहीं हट रही है।याद दिला दें कि 6 जून और 22 जून को चुसुल में चीनी चौकी पर उत्तरी कमान के 16वें कोर के कमांडर लेफ़्टीनेंट जनरल हरिंदर सिंह और चीन के शिनजियांग सैन्य ज़िले के कमांडर मेजर जनरल लिन लिउ के बीच कई घंटे की बातचीत हुई थी। विशेष रूप से 22 जून को 11 घंटे की बातचीत के बाद यह तय हुआ था कि गलवान, गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटेंगी, अपने पहले की स्थिति तक लौट आएंगी।
वादा से मुकरा चीन?
यह भी तय हुआ था कि दोनों सेनाएं 2-2 किलोमीटर पीछे हटेंगे और इस तरह खाली किए हुए 4 किलोमीटर में बफ़र ज़ोन बनेगा, जिस पर किसी का नियंत्रण नहीं होगा, कोई गश्त भी नहीं करेगा।पर ऐसा नहीं हुआ। मशहूर रक्षा विशेषज्ञ अजय शुक्ल ने वाणिज्य अख़बार बिज़नेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि पैट्रोलिंग प्वाइंट 17 ए पर दोनों सेनाएं बिल्कुल एक-दूसरे के सामने खड़ी हैं, आँखों में आँखे डाले हुए। यह चांग चेनमो नदी के पास का इलाक़ा है। यही स्थिति पीपी-15 की भी है।
बफ़र ज़ोन बनाने पर भी चीन राजी नहीं है, इसका मतलब यह है कि वह पूरे इलाक़े पर गश्त करना चाहता है और इस तरह भविष्य में अपनी सुविधा के अनुसार यहाँ घुसपैठ करने की संभावना खुली रखना चाहता है।
पीछे नहीं हटेगा चीन
अख़बार में अजय शुक्ला लिखते हैं 'यहां से थोड़ी ही दूर पर स्थित गोगरा में 1,500 चीनी सैनिक मोर्चा संभाले हुए हैं। यह इलाक़ा वास्तविक नियंत्रण रेखा से 2 किलोमीटर अंदर है।' इस पूरे मामले में सबसे ख़तरनाक पहलू यह है - 'पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने साफ़ शब्दों में कह दिया है कि वह एक इंच भी पीछे नहीं हटेगी क्योंकि यह उसका इलाक़ा है।'अजय शुक्ला का तर्क है कि भारत-चीन बातचीत और समझौते की शर्तें चीन को फ़ायदा पहुँचाने वाली है, भारत के ख़िलाफ़ हैं। इस सहमति के मुताबिक़, दोनों सेनाओं ने 1-1 किलोमीटर पीछे अपने सैनिक वापस बुलाए तो फायदा चीन को है क्योंकि वह भारतीय सीमा के 2-4 किलोमीटर अंदर तक घुसा है।
इस तरह पीछे हट कर भी चीनी सेना भारतीय इलाक़े में ही है। इसी तरह पूरा बफ़र ज़ोन भारतीय सरज़मीन पर ही बनेगा, क्योंकि चीन इस इलाके को ही खाली कर रहा है।
चीन का तोपखाना
चीन की आक्रामकता और तैयारी में कोई कमी नहीं है, वह पहले से अधिक तैयार लगता है। इसे इससे समझा जा सकता है कि गोगरा के पार चीनी नियंत्रण वाले इलाक़े में भारी तादाद में चीन सैनिक जमा हैं। अख़बार के मुताबिक़, 'वे पैट्रोलिंग प्लाइंट 18, 19, 20, 21, 22 और 23 के उस पार हैं। इसके अलावा चीन ने अपनी आर्टिलरी यानी तोपखाने को पीपी-19 के पास पहुँचा दिया है।'अख़बार आगे लिखता है, 'चीन ने डेपसांग और पैंगोग त्सो इलाक़े को खाली करने से साफ़ मना कर दिया है। वह पैंगोंग त्सो में 12-15 किलोमीटर और डेपसांग में 8 किलोमीटर भारतीय सीमा के अंदर है। इस पर तो वह बात करने को ही तैयार नहीं है।'
बदली हुई एलएसी!
यदि चीन पैंगोंग त्सो और डेपसांग से पीछे नहीं ही हटता है तो पूर्वी लद्दाक के बड़े हिस्से पर उसका कब्जा हो जाएगा।इससे वास्तविक नियंत्रण रेखा बदल जाएगी। यह डेपसांग में 12-15 किलोमीटर अंदर पीपी 10, 11,11 ए, 12,13 तक सिमट जाएगी। वास्तविक नियंत्रण रेखा गलवान घाटी में 2-4 किलोमीटर अंदर पीपी -15, 17 और 17 ए तक आ जाएगी।
इसी तरह यह पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे पर 8 किलोमीटर अंदर आ जाएगी। कुल मिला कर अंतिम परिणति यह होगी इस बार चीन भारत की ज़मीन पर कब्जा करने में कामयाब हो जाएगा।
पर्यवेक्षकों का मानना है कि चीन ने इस बार यह इसलिए किया कि वह भारत को अक्साइ चिन से दूर रखना चाहता है। इस इलाके से ही उसका अहम शिनजियांग-तिब्बत हाईवे गुजरता है। इस पर पकड़ बनाए रखने के लिए ही उसने दौलत बेग ओल्डी को डेपसांग से जोड़ने वाली सड़क को काट दिया है।
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