चीन की राजधानी पेइचिंग में शुरू हो रहे शीताकालीन ओलंपिक खेलों का भारत बहिष्कार करेगा। हमारे कूटनीतिज्ञ न उसके उद्घाटन और न ही सम्मान-समारोह में शामिल होंगे, क्योंकि चीन ने भारत को अपमानित करने के लिए एक नया पैंतरा मारा है। उसने ओलंपिक के आरंभिक जुलूस में अपनी फौज के उस कमांडर को मशालची बनाया है, जो गलवान घाटी में भारत पर हुए हमले का कर्ता-धर्त्ता था।
की फाबाओ नामक इस कमांडर ने गलवान-मुठभेड़ के बाद एक इंटरव्यू में काफी शेखी बघारी थी और भारत के 20 जवानों को मारने का श्रेय अपने सिर लिया था। चीनी फौज ने उसे उसकी वीरता के लिए पुरस्कृत भी किया था। ऐसे व्यक्ति को विंटर ओलंपिक गेम्स का हीरो बनाना क्या इस बात का सूचक नहीं है कि चीन चोरी और सीनाजोरी पर उतारु है?
इतना ही नहीं, पिछले माह चीनी फौजियों ने सीमांत के एक गांव से एक भारतीय नौजवान को अगवा करके उसकी जमकर पिटाई की और भारत के विरोध करने पर उसे लौटा दिया लेकिन उसे अधमरा करके!
चीनियों ने ये सब उटपटांग काम तब किए जबकि भारत ने नवम्बर 2021 में भारत-रूस-चीन के त्रिगुट की बैठक में विंटर ओलंपिक खेलों के स्वागत की घोषणा कर दी थी। इसके अलावा उसकी जमीन कब्जाए जाने और उसके सैनिकों की हत्या के बावजूद वह चीन से शांतिपूर्वक संवाद भी कर रहा है। इसका अर्थ क्या यह नहीं है कि चीन अपनी दादागीरी पर उतारु हो गया है?
चीनी शीतकालीन ओलंपिक के उद्घाटन में भाग लेने के लिए रूस से पुतिन, पाकिस्तान से इमरान खान और पांचों मध्य एशियाई गणतंत्रों के राष्ट्रपति पेइचिंग पहुंच रहे हैं। लेकिन अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, बेल्जियम, डेनमार्क जैसे कई देशों ने इन खेलों का राजनयिक बहिष्कार पहले से इसलिए घोषित कर रखा है कि चीन में मानव अधिकारों का घोर उल्लंघन होता है।
भारत ने ओलंपिक खेलों का यह बहिष्कार पहली बार किया है और सरकार इन खेलों को अब अपने दूरदर्शन के चैनलों पर भी नहीं दिखाएगी। चीन की इस हरकत ने भारत-चीन फौजी संवाद में एक नई कड़ुवाहट को जन्म दे दिया है।
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