इसके पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तैनात सैनिकों को स्थिति से निपटने की पूरी छूट दे दी गई है, कमांडर अपने स्तर पर फ़ैसले ले सकते हैं और उन्हें गोलाबारी शुरू करने के लिए असाधारण स्थिति का इंतज़ार करने की कोई ज़रूरत नहीं होगी।
चीनी सरकार के नियंत्रण में चलने वाले और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने बेहद तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ज़ोरदार शब्दों में भारत को चेतावनी दी है।
ग्लोबल टाइम्स के मुख्य संपादक हू शीजिन ने एक लेख में कहा है कि 'यह भारत और चीन के बीच भरोसा बढ़ाने के लिए किए जाने वाले उपायों पर किए गए क़रार का उल्लंघन है। किसी सेना ने गोली नहीं चलाई लेकिन यदि गोलियाँ चली होतीं तो तसवीर दूसरी हो सकती थी।’
लेकिन हू शीजिन यहीं नहीं रुकते हैं। उन्होंने भारत को धमकी दी और कहा, 'मैं भारतीय राष्ट्रवादियों को चेतावनी दे दूँ, यदि आपके सैनिक निहत्थे चीनी सैनिकों को भी नहीं हरा सकते हैं तो बंदूक और दूसरे हथियारों के इस्तेमाल से भी आपको कोई मदद नहीं मिलेगी। इसकी वजह यह है कि चीन की सैन्य ताक़त भारत से बहुत अधिक और विकसित है।'
ग्लोबल टाइम्स के इस लेख में भारत को 1962 की याद दिलाई गई है। यह कहा गया है कि 'कुछ भारतीय यह मानते हैं कि आधुनिकीकरण के बाद भारतीय सेना 1962 में चीन के हाथों मिली पराजय का बदला ले सकती है। मैं उन्हें यह बता दूँ कि 1962 में आर्थिक मामलों में चीन और भारत की स्थितियाँ बहुत अलग नहीं थीं। पर आज चीन की जीडीपी भारत की जीडीपी की पाँच गुनी है और सेना पर चीन का ख़र्च भारत के ख़र्च का तीन गुना ज़्यादा है।'
ग्लोबल टाइम्स के इस लेख में आगे कहा गया है, 'यदि भारत ने चीन के साथ झड़प को स्थानीय लड़ाई में बदलने दिया तो यह अंडों के चट्टान से टकराने के समान होगा।'
इसी अख़बार के एक दूसरे लेख में ज़्यादा आक्रामक रवैया अपनाया गया है और अधिक तीखी बातें कही गई हैं।
इसमें यह भी कहा गया है कि 'यदि भारत ने चीन-विरोधी भावनाओं को नियंत्रित नहीं किया और अपने सबसे बड़े पड़ोसी के साथ युद्ध में उलझा तो 1962 से भी अधिक अपमानजनक स्थिति होगी।'
एक रिपोर्ट के अनुसार, बोस्टन में हार्वर्ड केनेडी स्कूल ऑफ़ गवर्नमेंट में बेलफर सेंटर और वाशिंगटन में एक नई अमेरिकी सुरक्षा केंद्र के हालिया अध्ययन में कहा है कि भारतीय सेना उच्च ऊँचाई वाले इलाक़ों में लड़ाई के मामले में माहिर है। चीनी सेना इस मामले में कमज़ोर है। बेलफर सेंटर के मार्च में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार, भारतीय लड़ाकू विमान चीन के मुक़ाबले ज़्यादा प्रभावी है।
लेकिन यह सवाल अहम है कि चीनी सत्ता प्रतिष्ठान के इस लेख में इस तरह की धमकी भरी बातें क्यों कही गई हैं? चीन कहीं जंग पर तो आमादा नहीं है?
अपनी राय बतायें